देश के अन्नदाता किसानों पर चर्चित कविता

देश के अन्नदाता किसानों पर चर्चित कविता
अलीगढ़ दो हजार दस का पन्द्रह अगस्त, 
साॅप फुफकारते रहे सत्ता समारोह मंे व्यस्त।
अन्नदाता डेढ़ पखावाड़े से सत्याग्रह पर,
सत्ता की राइफल्स ने ढ़ाया जमकर कहर।
प्रतुल के शब्दों मंे भूख की बाते भूल जाओ,
कानूनी शासन पहले खाओं।
धरती पुत्रो ने किया आत्मबलिदान,
अन्नदाताओं को एक जुटता का दिया ज्ञान।
रक्षक आकर नही कह पायेगें दोड़,
घर,खेत आंगन और हल को छोड़।
एकता के पंख ने सिगूर को छुड़ाया,
अब अलीगढ़, मथुरा की बारी हैं।
त्रासदी गाथाये अब नही लिखना पड़ेगी,
अन्न उपजाने वाला की बात सुनना पड़ेगी।
नही चलेगा अन्याय पूर्ण न्याय,
पूंजीपति के कुफलपक्ष का अध्याय।
हलधर के कुफलपक्ष का अध्याय।
हलधर है धरती का भाग्य विधाता,
गैड़े की चमड़ी को कर्तव्य याद दिलाना आता।
आक्रोशित आॅखे जब भभक पड़ेगी,
हर खेत से धूॅ-धूॅ कर लपटे उठेगी।
तक कैसा होगा रास और कैसे रंग,
राजधानी तक हो जायेगी आॅच से बदरंग।
बन्द करो गान, माफ न हो उनकी कजा,
लोक के साथ जुड़ों, धनपशुओं को दो सजा,
इतिहास की पगडंडियों मंे मिलते लाला बांके लाल,
 इनकी कविता थी पगड़ी संभाल ओय जट्टा पगड़ी सभाल।
अंग्रेजों की किसान विरोधी नीतियों का था इन्हें मलाल,
पंजाब के किसानों ने प्रेरणा लेकर अंग्रेज का किया हलाल।
पिचके पेट, अधफटे कपड़े वाले चहरे,
चाहे जितने हुक्कामो, बिठा दो पहरे।
अकूत मुनाफाखोरो की दाल अब नही गल पायेगी,
अन्याय शोषण भष्टाचार का नंगा नाच नही कर पायेगी
जिसके दादी और पिता ने शहादत पायी है,
उसने किसानों के घर जाने की हिम्मत दिखायी है।
जिनकी मातमपुर्सी करने और हिफाजत की जिम्मेदारी है।
वो दूतों के दम पर अपनी बता रहे लाचारी है।
श्रम पुत्रों, अन्नदाताओ का मिट्टी पर गिरेगा खून लाल,
इतिहास गवाह है नही चल पायेगा आपतकाल।
अगस्त क्रान्ति का माह किसान क्रान्ति की चल रही नाव,
सिगूर के बाद देश में आ गया नया बदलाव।



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15 अगस्त 2010 को लिखी गयी 


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