हमें वोट दो तो हम

हमें वोट दो तो हम -

लैपटॉप देंगे ..

स्कूटी देंगे ..

हराम की बिजली देंगे ..

कर्जा डकार जाना.. हम माफ कर देंगे ..

ये देंगे .. वो देंगे .. 

ये क्या खुल्लम खुल्ला रिश्वत नहीं ? 

कोई चुनाव आयोग है भी कि नहीं इस देश में !

*आयोग की कोई गाइडलाइंस है भी की नहीं? वोट के लिए आप कुछ भी प्रलोभन नहीं दे सकते ?*

 ये जनता की गाढ़ी कमाई का पैसा है,इसकी *जवाबदेही* होनी चाहिये।

रोकिए भाई ये सब .. 

वर्ना *बन्द कीजिये ये चुनाव वुनाव के नाटक .. मतदान ।*

हम मध्यमवर्गीय तंग आ चुके हैं ,क्या हम इन सबके लिए ईमानदारी से भर भरकर टैक्स कब तक चुकाते रहेंगे?

डिफाल्टर की कर्जमाफी .. फोकट की स्कूटी .. फोकट का दहेज ,हराम की बिजली

.. हराम का घर ..  दो रुपये किलो चावल .. चार - छह रुपये किलो दाल .. 

कितना चूसोगे हमें ? 

देश में जो उच्च वर्ग है उससे करोड़ों का टैक्स लेते तुम डरते हो.. राइट ऑफ कर देते हो उनका कर्जा ,

क्योंकि ! वे तुम्हारे आका हैं !

फोकटिया तुम्हारा वोट बैंक हैं , इसलिए फोकट का  खाना .. घर .. बिजली .. कर्जा माफी दिए जा रहे हैं ...... और 

हम किस पाप की सजा भोग रहे हैं ? 

जबकि  होना ये चाहिये कि हमारे टैक्स से सर्वजनहिताय काम हों,देश के विकास में काम हों तो टैक्स चुकाना अच्छा लगता.. 

लेकिन आप तो पूरे देश के उच्च वर्ग और गरीब को .. दुनिया के सबसे बड़े हरामखोर ही बनाए जा रहे हैं ।

*चुनाव आयोग एवं सर्वोच्च न्यायालय से निवेदन हैं,कर्मशील देश के वाशिंदों को तुरंत कानून लाकर कुछ भी

फ्री देने पर बंदिश लगाई जावे ताकि देश के नागरिक अकर्मण्य न बने*

एक मध्यमवर्गीय जन का दर्द .. एक आम मध्यमवर्गीय की पीड़ा

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