मनरेगा का पर्याप्त धन न मिलने से गरीब दम तोड़ रहा
चित्रकूट। भारतीय कमुनिस्ट पार्टी जिला फांसी चित्रकूट के सदस्य/कार्यकर्ता पार्टी के प्रदेश अव्वाहन पर ज्ञापन प्रस्तुत हैं। केंद्र और प्रदेश की झूठी नकारा और झांसे बाद सरकारों के कारनामों से हर तबका परेशान है।सरकार की गौधन नीति से किसान नहीं हर आदमी परेशान है आवारा पशु के झुंड किसानों की फसलों को नष्ट कर दिए हैं या नष्ट कर रहे हैं। जिससे किसानों की नष्ट हुई फसलों का मुआवजा सरकार को या बीमा कंपनियों को देना चाहिए।पीड़ित किसान भीषण सर्दी में ठिठुरते हुए फसलों की रखवाली कर रहे हैं ।खूंखार सांड उन पर हमले बोल रहे हैं। हर दिन किसी न किसी के मारे जाने या घायल होने की खबरें मिल रही है किसान जब उन्हें पकड़कर बंद करते हैं तो उन पर मुकदमे दर्ज किए जा रहे हैं। कई जगह इन पशुओं को लेकर किसानों में आपसी झगड़े भी हो रहे हैं सरकार और संघीयों द्वारा नियंत्रित पशुशालाएं धन दोहन का जरिया बनी हुई है। वहां से गायों/ बछड़ों को भगा दिया जाता है या फिर चारा पानी नहीं दिया जाता वे भूख से तड़क कर मर रहे हैं। भाजपाई और संघी गोभक्तो का चोंगा पहनकर पशु व्यापारियों को प्रताड़ित कर रहे हैं और पुलिस से मिलकर उन से धन वसूल रहे हैं इनमें से शायद ही कोई हो जो गाय को पलता हो । दूसरे किसान कामगार भी बेहद परेशान हैं। खुद मुख्यमंत्री ने चौदह दिन के भीतर गन्ने के बकाया का मय व्याज के भुक्तान कराने अथवा मिल मालिकों के खिलाफ मुकदमा लिखे जाने का वादा किया था लेकिन पुराने बकाए का भुक्तान तो दूर , नए और बकाए हो गए। पहले धान बाजरा की उचित कीमतें न मिलने से परेशान किसान अब आलू आदि की कीमतों में गिरावट का खामियाजा भुगत रहा है। ग्रामीण और मजदूरों को रोजगार देने वाली मनरेगा का पर्याप्त धन न मिलने से गरीब दम तोड़ रहा है। धन के आभाव में गरीब व किसान आत्महत्या करने में मजबूर हो रहे हैं। रामराज लाने का सपना दिखाकर सत्ता में आयी सरकार प्रदेश में अपराधों की बाढ ने लोगो को परेशान कर दिया है। हर तरह के अपराध चरम पर हैं सबसे बड़ी दुर्दशा बहू बेटियों की है। प्रतिदिन कहीं ना कहीं बलात्कार और सामूहिक बलात्कार की दिल दहलाने वाने घटनाएं हो रही है । दलितों पर अत्याचार हो रहे है पुलिस प्रशासन में खुलकर भ्रष्टाचार हो रहा है जिससे आम आदमी तबाह और बर्बाद हो रहा है । रोजगार घट रहे हैं साडे चार लाख स्थान केंदीय सेवाओं में तो चालीस लाख राज्यों की सेवाओं में खाली पड़े हैं। रोजगार देने के नाम पर सामान आरक्षण का झुनझुना पकड़ा दिया। नए नियम बनाने तक भर्ती प्रक्रिया रुकी रहेगी। दो करोड़ को रोजगार देने का वादा पकौड़े तलने की नसीहत में बदल गया। किसानों की आमदनी दोगुना होना तो दूर पुनः कर्ज के जाल में फस गया। नोट बंदी एवं जिस t और खनन प्रक्रिया के भ्रष्टाचार मैं डूबे रहने से मजदूर मिस्त्री आदि बेकार बैठे हैं ऊपर से महगाई डायन बनी हुई है।