प्याऊ का शास्त्रीय महत्व

 


भारतीय सस्क्रति तथा हिदू मान्यता में माघ, वैशाख और कार्तिक मास की विशेष महिमा बताई गई है। धर्म सिंधु ग्रंथ में वैशाख मास के स्नान, दान, तप,व्रत कथा आदि के श्रवण-मनन का विशेष महत्व बताया गया है। ग्रंथों के अनुसार जो मनुष्य वर्ष भर धर्म, कर्म, दान, तप, व्रत और नियमों का पालन नहीं कर पाते वे वैशाख संयुक्त अघिक मास में सकल धर्म का पुण्य प्राप्त कर सकते हैं।


आपको बता दें कि वैशाख के समान कोई मास नहीं है, सत्ययुग के समान कोई युग नहीं है, वेद के समान कोई शास्त्र नहीं है और गंगाजी के समान कोई तीर्थ नहीं है। धर्म ग्रंथों के अनुसार स्वयं ब्रह्माजी ने वैशाख को सब मासों से उत्तम मास बताया है। भगवान विष्णु को प्रसन्न करने वाला इसके समान दूसरा कोई मास नहीं है। जो वैशाख मास में सूर्योदय से पहले स्नान करता है, उससे भगवान विष्णु विशेष स्नेह करते हैं। सभी दानों से जो पुण्य होता है और सब तीर्थों में जो फल मिलता है। उसी को मनुष्य वैशाख मास में केवल जलदान करके प्राप्त कर लेता है।


जो जलदान नहीं कर सकता यदि वह दूसरों को जलदान का महत्व समझाए तो भी उसे श्रेष्ठ फल प्राप्त होता है। जो मनुष्य इस मास में प्याऊ लगता है वह विष्णुलोक में स्थान पाता है। ऐसा भी कहा जाता है कि जिसने वैशाख मास में प्याऊ लगाकर थके-मांदे मनुष्यों को संतुष्ट किया है, उसने ब्रह्मा, विष्णु और शिव आदि देवताओं को संतुष्ट कर लिया।
ग्रीष्मे चैव बसंते च पानीये यः प्रयच्छति भविष्योत्तर पुराण के इस वचन के अनुसार ग्रीष्म ऋतु में और बसंत ऋतु में जो पानी पिलाने की व्यवस्था करता है, उसके पुण्य का हजारों जिÐाएं भी वर्णन नही कर सकती हैं। गर्मी बढ़ने के साथ-साथ सभी को चाहे वह पशु पक्षी अथवा वृक्ष ही क्यों न हो, उन्हें पानी की आवश्यकता भी बढ़ने लगती है। प्रायः देखा जाता है कि जगह-जगह पर लोगों की प्यास बुझाने के लिए इस विषय पर भारतीय संस्कृति के आधरभूत शास्त्र क्या कहते हैं? यह जानना अत्यंत महत्वपूर्ण है। प्याऊ द्वारा प्यास बुझाने की प्रक्रिया को भारतीय संस्कृति प्रपा दान कहती है। अमरकोष में प्रपा का अर्थ पानी यशाली का अर्थ पानी के घर से है। जहां पानी की अधिकारिक व्यवस्था हो, उसे प्रपा कहा जाता है। भविष्योत्तर पुराण में लिखा गया है कि फाल्गुन मास के बीत जाने पर चैत्र महोत्सव से ग्राम या नगर के बीच में रास्ते में या वृक्ष के नीचे अर्थात छाये में पानी पिलाने की व्यवस्था की जानी चाहिए। समथ्र्यवान व्यक्ति को चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़ इन चार महीनों में जल पिलाने की व्यवस्था अवश्य करनी चाहिए।
यदि कम धन वाला व्यक्ति है, तो उसे तीन पक्ष अर्थात बैशाख शुक्ल पक्ष, ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष व ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष मे ंअवश्य जल पिलाने की व्यवस्था करनी चाहिए। ऐसा करने से प्यासा व्यक्ति संतुष्ट होता है ओर इस फल के लोगांे के भागी प्याऊ कर्म में संलग्र लोग होते हैं।
त्रयाणामपि लोकानामुद्रक जीवनं स्मृतमं
पवित्रममृतं यस्मातद्देर्य पुण्य मिच्छता।।
स्कंद पुराण के इस वचन के अनुसार तीनों लोकों में जल को जीवन, पवित्र और अमृत माना गया है इसलिए पुण्य की कामना वाले लोगों को जल पिलाने की व्यवस्था करनी चाहिए। शास्त्रों मे प्रत्येक मौसम के अनुरूप दान का अत्यंत महत्व बतलाया गया है जिससे गरीब से गरीब व्यक्ति भी सुख पूर्वक रह सके तथा सामाजिक विकास में सभी की भागेदारी हो सके। सर्दी के मौसम में कंबल का दान,लकड़ी और अग्रि की व्यवस्था, वर्षा ऋतु में छतरी का दान, या किसी गरीब व्यक्ति के घर को आच्छादित कराना या घर बनवाकर देना तथा ग्रीष्म ऋतृ में जल देना, गरीब व्यक्तियों को घड़े का दान करना, सतू का दान करना , अत्यंत श्रेयस्कर बताया गया है। गरूण पुराण तो यहां तक कहता है कि किसी को जल पिलाने के लिए अगर जल खरीदना भी पड़े, तो भी उसकी यथा शीघ्र जल पिलाना चाहिए। गर्मी के मौसम में पानी पिलाने की व्यवस्था केवल मनुष्यों के लिए ही नहीं बल्कि पशु, पक्षियों इत्यादि सभी के लिए करने का प्रयास करना चाहिए। शास्त्र तो कहते हैं कि पेड़ पौघों को भी समुचित पानी देना चाहिए। गर्मी पौधे सूखते हैं वहां संक्रामक रोगों की अभिवृद्ध होती है। वैसे लोगों को जो पानी में मिलावट करते हैं कुंए या तालाब पाटकर अपना पर या चैपाल बना लेते हैं, पानी की अनावश्यक बहते देख उसे सुरक्षित रखने का उचित प्रतिकार नहीं करते, नदी या तालाब मंे दूषित जल छोड़कर उसे गंदा करते हैं, किसी प्रपा (प्याऊ) दान करने वाले मनुष्य को पानी पिलाने में बाधा उत्पत्र करते हैं। ग्रीष्म में छाया में खड़े पशु, पक्षी एवं मानव को हटा देते हैं, पानी न देना पड़े इसके लिए असत्य बोलते हैं, इन सभी को शास्त्र पापी की उपमा देते हैं। तथा इनके कुल या खानदान में जल दोष से संबंधित रोगों की अभिवृद्धि होती है।
बसंत ग्रीष्मर्यार्मध्ये यः पानीयं प्रयच्छति।
पले पले सुवर्णस्य फल माप्रोति मानवः
अर्थात बसंत और ग्रीष्म यानी गर्मी के चार महीनों में घड़े के दान, वस्त्र का दान तथा पीने योग्य जल का जो दान करता है, उनको सुवर्ण (सोना) दान का फल प्राप्त होता है। प्यास से व्याकुल व्यक्ति जिस क्षेत्र से होकर गुजरता है। उस क्षेत्र का पुण्य क्षीण हो जाता हैं इसलिए पुण्य की रक्षा हेतु भी प्याऊ की व्यवस्था करनी चाहिए। बहुत से शास्त्रों में जल पिलाने वाले को गोदान का फल प्राप्त करने का अधिकारी माना गया है। गर्मी के दिनों में मंदिरों में भ्ीा लोग जल की व्यवस्था करते हैं। भविष्योत्तर पुराण के अनुसार
यावद् विंदूनि लिंगस्य पतितानि न संशयः
स बसेच्छाडरे लोकं तावत् कोटयो


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