कालिदास एवं मल्ल्किा के अमर प्रेम की मार्मिक गाथा है ‘‘आषाढ का एक दिन’’

स्वर्ण संगीत एवं नाट्य समिति लखनऊ की ओर से नाट्य महोत्सव के प्रथम दिवस में आयोजक संस्था द्वारा भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय ;संस्कृति विभागद्ध, नई दिल्ली के सहयोग से सुप्रसि( नाटककार स्व0 मोहन राकेश की नाट्य रचना ''आषाढ़ का एक दिन'' का नाट्य मंचन नगर की सुप्रसि( नाट्य निर्देशिका एवं उ0प्र0 संगीत नाटक अकादमी अवार्डी अचला बोस के सशक्त निर्देशन में राय उमानाथ बली प्रेक्षागृह कैसरबाग, लखनऊ में सांयकाल 06ः30 बजे मंचित किया गया। मुख्य अतिथि के रूप में माननीया श्रीमती जयलक्ष्मी शर्मा असिस्टेन्ट प्रोफेसर लखनऊ विश्वविद्यालय पत्नी उप मुख्यमंत्री डाॅ0 दिनेश शर्मा एवं विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित डाॅ0 अनिल रस्तोगी सुप्रसि( सिने चरित्र अभिनेता एवं दर्पण थियेटर लखनऊ ने संयुक्त रूप से द्वीप प्रज्जवलित कर तीनो दिवस के नाटको के कलाकारों को इस भव्य नाट्य महोत्सव  के सफल आयोजन हेतु आर्शीवाद प्रदान किया तथा सुप्रसि( नाटककार एवं निर्देशक तथा सिने अभिनेता स्व0 गिरीश कर्नाड एवं वरिष्ठ रंग निर्देशिका श्रीमती रत्ना भट्टाचार्या के चित्र पर माल्यार्पण किया। कथानक के अनुसार कालीदास और मल्लिका के अमर प्रेम को पूर्ण रूप से उजागर करने का प्रयास किया गया। वहीं कालीदास और मल्लिका के अतिरिक्त मल्लिका की मां अम्बिका तथा विलोम के पात्रों को इस रचना में डालकर और अधिक विकसित करने का प्रयास किया है। लेकिन इस रचना का गहन अध्ययन करने पर यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि मातुल और राजकुमारी प्रियंगुमंजरी और निक्षेप तथा राजपुरूष दन्तुल के अलग-अगल चरित्रों को रेखाकिंत कर इस नाट्यकृति को और अधिक मार्मिक बना दिया है।
महाकवि कालिदास ग्राम प्रान्तर में रहकर काव्य रचनाओं के लिए समर्पित हैं वह उस भूमि से अनेक सूत्रों से जुडे़ हैं। उदाहरणार्थ मेघ, आकाश, हरिण शावक, हरियाली, उपत्तिकाएं परन्तु इससे भी अधिक महत्वपूर्ण सूत्र जो उन्हें अपनी भूमि से जोड़ता है वह है उनकी प्रेरणा श्रोत ''मल्लिका''। मल्लिका उस प्रदेश की सबसे विनीत, सबसे सुशील, भोली भाली लड़की है। प्रदेश की राजहंसिनी। ''मल्लिका'' के लिए कालिदास उसकी महत्वाकांक्षी है। वह अपने स्वार्थी को छोड़कर कालिदास को उन्नति के सर्वोच्च शिखर पर देखना चाहती है।
''कालिदास'' को राज कवि का आसन देने के लिए आचार्य वरूरूचि स्वयं आते है। कालिदास ग्राम प्रान्तर नहीं छोड़ना चाहते। ''मल्लिका'' उन्हें जाने के लिए प्रेरित करती है। ''आर्यविलोम'' चाहते है कि कालिदास, जिनके मल्लिका से सम्बन्ध के लिए ग्राम प्रान्तर में अपवाद है, मल्लिका से विवाह कर ले परन्तु मल्लिका अपने स्वार्थ की घोषणा नहीं करती क्योंकि कालिदास का जीवन एक नयी दिशा ग्रहण कर रहा है।
कालिदास चले जाते हैं। राजकवि का आसन प्राप्त होने के उपरान्त उनका विवाह राजमहिषी प्रियंगुमंजरी से हो जाता है। राजकुमारी के साथ विवाह की बात जब निक्षेप द्वारा मल्लिका को बतलाई जाती है तब भी इस भोली भाली लड़की के विचार नहीं बदले।
''उनके प्रसंग में मेरी बात कहीं नही आती। मैं अनेकानेक साधारण व्यक्तियों में से हूं। वे असाधारण हैं, उन्हें जीवन में असाधारण का ही साथ चाहिए था''
मल्लिका की मां अम्बिका का देहान्त हो जाता है। इस एकांकी जीवन में भी उसे कालिदास की प्रतिक्षा रहती है। काश्मीर के राजनीतिक उथल पुथल में  कालिदास मातृ गुप्त के सत्ता ओर प्रभुता के कलेवर से मुक्त होकर आते हैं तब तक मल्लिका का घर विलोम का घर है। एक छोटी मल्लिका ;अभाव की सन्तानद्ध  बड़ी हो रही है। कालिदास अथ से प्रारम्भ होने की कामना को पूर्ण नहीं कर पाते क्योंकि ''समय किसी की प्रतिक्षा नही करता''। नाटक का प्रारम्भ ''आषाढ़ का ए िदिन'' मल्लिका के प्रवेश से प्रारम्भ होकर आषाढ़ के एक दिन एकाकी मल्लिका पर समाप्त होता है। नाटक में मल्लिका की मार्मिक भूमिका एवं कालिदास में अशोक लाल तथा अम्बिका की भूमिका में अचला बोस, नाट्य निर्देशिका ने बडे़ ही सजीव और मार्मिक ढंग से मंच पर प्रस्तुत किया। राज पुरूष दन्तुल के रूप में आनन्द प्रकाश शर्मा आर्य मातुल की भूमिका में अभिषेक शर्मा आर्य विलोम की भूमिका में अभिषेक सिंह निक्षेप की भूमिका में अभिषेक गुप्ता तथा राजकुमारी प्रियंगुमंजरी की भूमिका में दीपिका बोस ने बड़े ही सजीव ढंग से प्रस्तुत किया। अन्य कलाकारों में अनुस्वार की भूमिका में सुजीत कुमार तथा अनुनासिक की भूमिका में सौरभ शुक्ला ने भी मंच पर अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज करायी। सेट परिकल्पना एवं मंच सज्जा नाटक के अनुरूप  जहां एक ओर शिव कुमार श्रीवास्तव ''शिब्बू'' ने नाटक के पात्रों को जीवन्त करने में कोई कसर नही छोड़ी। वही दूसरी ओर संगीत निर्देशन की कमान संभाली थी। नगर के सुप्रसि( संगीत निर्देशक निखिल कुमार श्रीवास्तव ने भावपूर्ण पाश्र्व संगीत का संयोजन बड़े ही प्रभावी ढंग से प्रस्तुत किया। प्रकाश परिकल्पना में गिरीश चन्द्र श्रीवास्तव ''गिरीश अभीष्ट'' ने प्रकाश के प्रभाव नाटक के कई दृश्यों मे बडे ही प्रभावी ढंग से किया। इस नाटक को सात दिवसीय कार्यशाला एवं मंच प्रस्तुतिकरण परिकल्पना सुप्रसि( निर्देशिका स्निग्धा मुखर्जी ने किया। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि स्वर्ण संगीत एवं नाट्य समिति की पहली प्रस्तुति अत्यन्त प्रभावी रही। 


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