भारत ही विश्व में एकता और शान्ति स्थापित करेगा

हम लाये हैं तूफान से किश्ती निकाल के, इस देश को रखना मेरे बच्चों सम्भाल के :-
आजादी के लम्बे संघर्ष के बाद 1942 में हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने पूरी दृढ़ता के साथ एक संकल्प
लिया था, 'अंग्रेजों भारत छोड़ो' तथा 'करो या मरो' का और 1947 में वह महान संकल्प सिद्ध हुआ, भारत स्वतंत्र
हुआ। भारत के लाखों स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने अपनी कुर्बानियाँ देकर ब्रिटिश शासन से 15 अगस्त 1947
को अपने देश को अंग्रेजों की दासता से मुक्त कराया था। स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने अपने देश की आजादी के
लिए एक लम्बी और कठिन यात्रा तय की थी। इन सभी ने अपने युग की समस्या अर्थात 'भारत को अंग्रेजों की
गुलामी से मुक्त कराने के लिए' अपने परिवार और सम्पत्ति के साथ ही अपनी सुख-सुविधाओं आदि चीजों का
त्याग किया था। आजादी के इन मतवाले शहीदों के त्याग एवं बलिदान से मिली आजादी को हमें सम्भाल कर
रखना होगा। भारत की आजादी की लड़ाई में लाखों शहीदों के बलिदानी जीवन हमें सन्देश दे रहे हैं - हम लाये हैं
तूफान से किश्ती निकाल के, इस देश को रखना मेरे बच्चों सम्भाल के।
उदार चरित्र वालों के लिए यह पृथ्वी एक परिवार के समान है :-
भारत एक महान देश है इसकी महानता इसकी उदारता तथा शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व में छुपी हुई है।
विश्वव्यापी समस्याओं के ठोस समाधान भारत जैसे देश के पास ही हैं। भारत की 'वसुधैव कुटुम्बकम्' की महान
संस्कृति, सभ्यता तथा संविधान दुनियाँ से अलग एवं अनूठी है। इसलिए आज सारा विश्व भारत की ओर बड़ी ही
आशा की दृष्टि से देख रहा है। देश की आजादी के समय दो विचारधाराओं के बीच लड़ाई थी। एक ओर अंग्रेजों की
संस्कृति भारत जैसे देशों पर शासन करके अपनी आमदनी बढ़ाने की थी तो दूसरी ओर भारत के ऐसे विचारशील
लोग थे जो सारी दुनियाँ में 'उदारचरित्रानाम्तु वसुधैव कुटुम्बकम्' अर्थात उदार चरित्र वाले के लिए यह पृथ्वी एक
परिवार के समान है, के विचारों को फैलाने में संलग्न थे। भारत की आज़ादी के लिए अनेक शूरवीरों ने हँसते-हँसते
अपने प्राण त्याग दिये। इन शूरवीरों ने जो आवाज़ उठाई थी, वह महज़ अंग्रेजां के खिलाफ़ नहीं बल्कि सारी मानव
जाति के शोषण के विरूद्ध थी। भारत की आजादी से प्रेरणा लेकर 54 देशों ने अपने को अंग्रेजों की गुलामी से
मुक्त कर लिया।
 भारत जैसे विशाल देश पर सारे विश्व को बचाने का दायित्व है :-
बलिदानी स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के समक्ष अंग्रेजी दासता से देश को आजाद कराने की चुनौती थी,
जिसके विरूद्ध उन्होंने पूरी शिद्दत के साथ लड़ाई लड़ी और भारत को अंग्रेजों की दासता से मुक्त कराया।
लेकिन बदलते परिदृश्य में आज विश्व के समक्ष दूसरी तरह की समस्यायें आ खड़ी हुईं हैं। वर्तमान में विश्व की
सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक व्यवस्था पूरी तरह से बिगड़ चुकी है। अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद, भूख, बीमारी,
हिंसा, तीसरे विश्व युद्ध की आशंका परमाणु बमों का जखीरा, ग्लोबल वार्मिंग आदि समस्याओं के कारण आज
विश्व के दो अरब तथा चालीस करोड़ बच्चों के साथ ही आगे आने वाली पीढ़ियों का भविष्य अंधकारमय दिखाई दे
रहा है। आज ऐसी विषम परिस्थितियों से विश्व की मानवता को मुक्त कराने की चुनौती भारत जैसे महान देश के
समक्ष है।
 भारत ही विश्व में शान्ति स्थापित करेगा :-


प्राचीन काल में हमारे देश का सारे विश्व में ''जगत गुरू'' के रूप में अत्यन्त ही गौरवशाली इतिहास था।
हमारे देश के गौरवशाली इतिहास को विदेशी शक्तियों द्वारा कुचला तथा नष्ट किया गया। भारत ही विश्व का
ऐसा देश है जिसने सबसे पहले सारे विश्व को अध्यात्म, दर्शन, धर्म, योग, आयुर्वेद, संगीत, कला, न्याय, भाषा
आदि का ज्ञान दिया। सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश होने के नाते (1) 'वसुधैव कुटुम्बकम्' अर्थात् सारा 'विश्व एक
परिवार है' की भारतीय संस्कृति तथा (2) भारतीय संविधान (अनुच्छेद 51 को शामिल करते हुए) का संरक्षक होने
के नाते, मानवजाति के इतिहास के इस निर्णायक मोड़ पर, संयुक्त राष्ट्र महासभा में संयुक्त राष्ट्र संघ को और
अधिक शक्तिशाली बनाने के साथ ही उसे प्रजातांत्रिक बनाने पर जोर देने का दायित्व भारत पर है। ऐसा करके
भारत भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51 के प्राविधानों का पालन करने के साथ ही भारत की 'वसुधैव कुटुम्बकम्'
की महान संस्कृति को भी सारे विश्व में फैलायेंगा। विश्व भर की उम्मीदें भारत से जुड़ी हुई हैं क्योंकि उन्हें लगता
है कि भारत ही वो अकेला देश हैं जो न केवल भारत के 40 करोड़ वरन् विश्व के 2 अरब से ऊपर बच्चों तथा आगे
आने वाली पीढ़ियों के भविष्य की सुरक्षा सुनिश्चित कर सकता है।
 हमें अपनी संस्कृति तथा संविधान के अनुरूप सारे विश्व को एकता की डोर से बांधना है :-
महात्मा गांधी ने कहा था कि ''कोई-न-कोई दिन ऐसा जरूर आयेगा, जब जगत शांति की खोज करता-
करता भारत की ओर आयेगा और भारत समस्त संसार की ज्योति बनेगा।'' साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि
''यदि हम वास्तव में संसार से युद्धों को समाप्त करना चाहते हैं तो हमें उसकी शुरूआत बच्चों से करनी होगी।''
हमारा मानना है कि भारत ही अपनी संस्कृति, सभ्यता तथा संविधान के अनुच्छेद 51 के बलबुते सारे विश्व को
बचा सकता है। इसके लिए हमें प्रत्येक बच्चे के मस्तिष्क में बचपन से ही 'वसुधैव कुटुम्बकम्' की महान संस्कृति
के विचारों को डालने के साथ ही उन्हें यह शिक्षा देनी होगी कि हम सब एक ही परमपिता परमात्मा की संतानें हैं
और हमारा धर्म है ''सारी मानवजाति की भलाई।' अब दो विश्व युद्धों तथा हिरोशिमा और नागासाकी जैसी
दुखदायी घटनाएं दोहराई न जायें।
(।
 आइये, हम सब मिलकर संकल्प लेते हैं, विश्व संसद के गठन का :-
वर्तमान समय की मांग है कि विश्व के सभी राष्ट्रों के हित को ध्यान में रखते हुए सभी राष्ट्रों का दायित्व
है कि वे विश्व को सुरक्षित करने के लिए अति शीघ्र आम सहमति के आधार पर करवाई करें। इस मुद्दे पर कोई
राष्ट्र अकेले ही निर्णय नहीं ले सकता है क्योंकि सभी देशों की न केवल समस्यायें बल्कि इनके समाधान भी एक-
दूसरे से जुड़े हुए हैं। इसलिए वह समय अब आ गया है जबकि विश्व के सभी देशों के राष्ट्राध्यक्षों को एक मंच पर
आकर इस सदी की विश्वव्यापी समस्याओं गरीबी, अन्तर्राष्ट्रीय मानव तस्करी, आतंकवाद, बिगड़ता पर्यावरण,
परमाणु शस्त्रों की होड़, तृतीय विश्व युद्ध की आशंका आदि के समाधान हेतु एक वैश्विक लोकतांत्रिक व्यवस्था


(विश्व संसद) का गठन करना चाहिए। हमें पूरा विश्वास है कि भारत ही विश्व में शान्ति स्थापित करने के लिए
सबसे प्रभावशाली, अह्म तथा अग्रणी भूमिका निभायेगा। हमारा मानना है कि सम्पूर्ण मानव जाति के कल्याण
के लिए आवाज़ उठाना ही आजादी के शूरवीरों तथा महान शहीदों के प्रति सच्ची श्रद्धांजली होगी। भारत ही विश्व
में आगे बढ़कर एकता और शान्ति स्थापित करेगा।


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