अंधकार को चीरता ज्योति पर्व दीपावली
मनुष्य चिरकाल से अंधकार से लड़ने और उस पर विजय पाने की दृढ़ संकल्प शक्ति और सतत उद्योग कास्मरण दिलाता है यह प्रकाश पर्व दीपावली। दीप प्रकाश का आदिम लघु स्त्रोत हेै। दीपावली में उसे प्रज्वलित कर के अंधकार से प्रकाश की ओर बढ़ने के अपने प्रस्थान बिन्दु का, उसे आधार ओैर आश्रय देने वाली भूमि का-अपने मूल का हम स्मरण करते हैं।हम मिट्टी के दीप न सिर्फ जलाते हैं अपितु हमने उसे पूरी आस्था और सम्मान के साथ अपने धार्मिक पर्वों में और अपनी दैनिक उपासना में अनिवार्य स्थान दिया है। भारतीयों के प्रत्येक शुभ कार्य दीप प्रज्जलित कर क ेही प्रारम्भ किए जाते हैं। बहुत अधिक प्रकाश देने वाले विद्युत बल्बों और ट्यूब लाइटों के रहते हुए भी हम दीपावली के पर्व में मिट्टी क ेदिए जलाकर भगवती लक्ष्मी की आराधना करते हैं। दीपक के रूप में अपनी आदिम लघुता का स्मरण हमें अपने मूल से गगनचुम्बी वृक्ष की भांति जोड़े रखता है और निरहंकार बनाए रखता है। क्योंकि अहंकार पतन का कारण है इसलिए उत्थान का मी सदैव उससे दूर रहकर अपनी विनम्र लघुता का स्मरण करते चैवीसवें तीर्थंकर भगवान् महावीर और वैदिक धर्म के उन्नायक महर्षि दयानंद सरस्वती का महापरिनिर्वाण हुआ था और उन्होंने अमर यशः शरीर पाया था।भारतीय संस्कृति में राम को धर्म का मूर्त रूप-'रामो विग्रहवान् धर्मः'कहा गया है और रामनाम को सत् का सत्य का पर्याय माना गया है।शवयात्रा में हम 'रामनाम सत्य है' काउद्घोष करते चलते हैं। राम अर्थात परमात्म तत्व ही सत्य है, और उसका अंश भूत आत्म तत्व भी सत्य है,सनातन है, अमर है। राम का उल्टा होता है मरा। जो मरता है वह नश्वर देह है। 'रामनाम सत्य है' यह उद्घोष हमें स्मरण दिलाता है कि राम नाम अमर है, आत्मा अमर है, मनुष्य का धर्म से सत्कर्मों से अर्जित नाम अमर है।कबीर ने कितनी सटीक बात कहीहै-'हम न मरें मरि है संसारा' अर्थात संसार मरेगा, संसार के नश्वर जड़पदार्थ नष्ट होंगे, यह पांच भौतिक जड़ देह मरेगी किन्तु हमारी आत्मा नहीं मरेगी क्योंकि हमको मिला है अमर कर देने वाला रामनाम, धर्ममय अनष्वर यषः षरीर मिल गया है। रामका विलोम है रावण-पुश्पक विमान परउड़ने वाला, त्रिलोक में निर्वाध संचरणकरने वाला, उनकी सम्पदा हथियाकरसोने की लंका के रूप में नष्वर ऐष्वर्यका संग्रह करने वाला, मरणधर्मा जड़षरीर की अपूरणीय वासनाओं औरलालसाओं की पूर्ति में रात-दिन लगारहने वाला परोत्पीड़क तनुपोशक रावणमर गया किन्तु अयोध्या के पुश्कलऐष्वर्य-सम्पन्न राज्य को तिनके केसमान त्यागकर वन की कंकरीली भूमिपर नंगे पैर चलने वाले दीनदुखियों केत्राता आतंकियों के उत्खाता जितेन्द्रियअपरिग्रही लोक संग्रही राम अमर होगए। उन्हें पाकर मानवता कृतार्थ होगयी, धर्म मूर्तिमान हो उठा भगवत्तासाकार हो गयी और इसके साथ हीमानव की 'मृत्योर्माऽमृत गमय' कीसाधना सफल हो गयी, सिद्द हो गयी।आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी नेअपने ग्रन्थ आलोक पर्व के आलोक पर्वकी ज्योतिर्मयी देवी आलेख में लिखाहै- मार्कण्डेय पुराण के अनुसार पुराणके अनुसार समस्त सृश्टि की मूलभूत आद्याशक्ति महालक्ष्मी है। वह सत्व,रज और तम तीनों गुणों का मूलसमवाय है। वही आद्याषक्ति है। वहसमस्त विष्व में व्याप्त होकरविराजमान है। वह लक्ष्य और अलक्ष्यइन दो रूपों में रहती है। लक्ष्य रूप मेंयह चराचर जगत् ही उसका स्वरूप हैऔर अलक्ष्य रूप में यह समस्त जगत्की सृश्टि का मूल कारण है। उसी से विभिन्न षक्तियों का प्रादुर्भाव होता है।दीपावली का पर्व आद्याशक्ति केविभिन्न रूपों के स्मरण का दिन है।जिन लोगों ने संसार का भरण पोशणकरने वाली वैश्णवी शक्ति को मुख्यरूप से उपास्य माना है, उन्होंने उसआदिभूता शक्ति का नाम महालक्ष्मीस्वीकार किया है। दीपावली के पुण्यपर्वपर इस आद्याषक्ति की पूजा होती है।(आलोक पर्व-पृ.11)यह सारा दृष्य जगत्ज्ञान, इच्छाऔर क्रिया के रूप में त्रिपुटीकृत है।ब्रह्म की मूल षक्ति में इन तीनों कासूक्ष्म रूप में अवस्थान होगा। त्रिपुटीकृत जगत् की मूल कारण भूता इस शक्ति को त्रिपुरा भी कहा जाता है।महालक्ष्मी भी यही हैं। ज्ञानरूप में अभिव्यक्त होने पर यह सत्वगुण प्रधानसरस्वती के रूप में, इच्छा रूप मेंरजोगुण प्रधान लक्ष्मी के रूप में औरक्रिया रूप में तमोगुण प्रधान काली क ेरूप में उपास्य होती है। लक्ष्मी इच्छा रूप में अभिव्यक्त होती है। जो साधकलक्ष्मी रूप में आद्याशक्ति की उपासना करते हैं उनके चित्त में इच्क्षा तत्व की प्रधानता होती है पर बाकी दो तत्व ज्ञान और क्रिया भी उसमें सहायक होते हैं इसीलिए लक्ष्मी की उपासना ज्ञानपूर्वाक्रिया परा होती है। अर्थात वह ज्ञानद्वारा चालित और क्रिया द्वारा अनुगमित इच्छा शक्ति की उपासनाहोती है। ज्ञानपूर्वा क्रिया परा कामतलब है कि इच्छा षक्ति ही मुख्य तया उपास्य है, पर पहले ज्ञान की साधनाऔर बाद में क्रिया का समर्थन इसमेंआवष्यक है। यदि उल्टा हो जाए अर्थात्इच्छा षक्ति की उपासना क्रियापूर्वा औरज्ञानापरा हो जाए तो उपासना का रूपबदल जाता पहली अवस्था में उपास्या लक्ष्मी समस्त जगत् के उपकार के लिएहोती हैं। उस लक्ष्मी का वाहन गरुड़ होता है। गरुड़ शक्ति, वेगऔर सेवावृत्ति का प्रतीक है। दूसरी अवस्था में उसका वाहन उल्लूहोता है। उल्लू स्वार्थ, अंधकार-प्रियता और विच्छिन्नता का प्रतीक है। लक्ष्मी तभी उपास्य होकरभक्त को ठीक-ठीक कृत कृत्य करती है, जब उसके चित्त में सबके कल्याण की कामना रहती है। यदि केवल अपना स्वार्थ ही साधक के चित्त में प्रधान हो तो वह उलूक वाहिनी षक्ति की ही कृपा पा सकता है। फिर तो वह तमोगुण का षिकार हो जाता है उसकीउपासना लोक कल्याण मार्ग से विच्छिन्न होकर बंध्या हो जाती है।दीपावली प्रकाष का पर्व है। इसदिन जिस लक्ष्मी की पूजा होती है वहगरुड़-वाहिनी है-शक्ति, सेवा औरगतिषीलता उसके मुख्य गुण हैं। प्रकाषऔर अंधकार का नियत विरोध है।अमावस्या की रात को प्रयत्नपूर्वकलाख-लाख प्रदीपों को जलाकर मां लक्ष्मी के उलूक वाहिनी रूप की नहीं,गरुड़ वाहिनी रूप की उपासना करते हैं। हम अंधकार का, समाज से रहने का, स्वार्थपरता का प्रयत्न पूर्वकप्र त्याख्यान करते हैं और प्रकाष का,सामाजिकता का और सेवावृत्ति का आह्वान करते हैं। हमें भूलना नहीं चाहिए कि यह उपासना ज्ञान द्वारा चालित और क्रिया द्वारा अनु गमित होकर ही सार्थक होती हैं।
सर्वस्याद्या महालक्ष्मीस्त्रिगुणा सर्वस्याद्या महालक्ष्मीस्त्रिगुणा
परमेष्वरी। लक्ष्यालक्ष्यस्वरूपा सा परमेष्वरी। लक्ष्यालक्ष्यस्वरूपा सा
व्याप्य कृत्स्नं व्यवस्थिता।। (आलोक
पर्व पृ.13-14) पर्व पृ.13-14)