भारत की अर्थव्यवस्था पर संकट एवं समाधन

मोदी सरकार को मई, 2019 मंे अपना मत देकर भारत की जनता ने तब यह आशा भी नहीं की थी कि अर्थव्यवस्था पर वुफछ ही महीनों में संकट छा जायेगा, सकल घरेलू उत्पाद की दर 
5 प्रतिशत से कम हो जायेगी। विरोध्ी दलों ने भी चुनाव-प्रचार मंे यह मुद्दा नहीं उठाया।
इन समस्याओं वेफ पीछे जहाँ विश्व अर्थव्यवस्था मंे गिरावट है, वहाँ भारत मंे सरकार मंे निर्णय प(ति में विलंब एवं अनिर्णय है तथा निजी क्षेत्रा भयभीत होने वेफ कारण निवेश वेफ लिए अपने पुराने उत्साह से आगे नहीं आ रहा है। जहाँ एक ओर सत्ता पर काबिज शासक गण कह रहे हैं कि यह उनकी काला-ध्न रोकने वेफ मुहिम वेफ कारण है। अन्ततः एक-न-एक दिन देश को काला-ध्न से लड़ने का खतरा उठाना ही पडे़गा। पर कोई भी ध्न काला नहीं होता जब तक वह बाहर आकर अर्थव्यवस्था मंे निवेशित होता रहे।
भारत का विदेशी मुद्रा भंडार पिछले दस वर्षों से प्रायः 300 बिलियन डाॅलर अर्थात् प्रायः 
21 लाख करोड़ रुपए से अध्कि रहा तथा विदेशी ट्टण नगण्य है। हाँ, देश वेफ अन्दर सरकारों 
पर कापफी ट्टणों का भार है जिसमंे अध्किांश राज्य सरकारें वित्तीय मानकों से नीचे हैं। निर्माण-क्षेत्रा तथा वृफषि क्षेत्रा में कोई तरक्की नहीं हो रही है। निवेदश नई योजनाओं मंे निवेश करने से डर रहे हैं, कहीं कोई गलती हुई कि पुलिस हथकड़ियाँ लेकर हाजिर हो जायेगी जबकि पुलिस एवं टैक्स कर प्रशासन ही उनका अभी तक शोषण करते आ रहे थे जिन्हें व्यापार एवं कार्यालय चलाने का अनुभव नहीं है।
सर्वप्रथम सरकारों को उन लोकप्रिय योजनाओं से बचना चाहिए जिनसे देश मंे उत्पादन नहीं होता है। सामाजिक सुरक्षा सम्बन्ध्ी योजनाएँ भी समान रूप से आवश्यक है पर ये योजनाएँ वुफछ प्रतीक्षा कर सकती हैं। इसी क्रम मंे भारत सरकार को उदारतापूर्वक विदेशी सरकारों को अनुदान देने से दूर रहना चाहिए। यह कार्य भारतीय विदेश सेवा वेफ अध्किारी अपने अध्कि परिश्रम द्वारा तथा भारतीय संस्वृफति का विदेशों मंे प्रसार करवेफ कर सकते हैं। भारत को दो तीन राष्ट्रों जैसी सैन्य शक्ति बनने की आवश्यकता नहीं है जबकि देश वेफ करोड़ों लोगों का जीवनयापन अभी भी गरीबी-रेखा से नीचे हो रहा है।
जी.एस.टी. एक अच्छी शुरूआत थी पर इन्पुट टैक्स वापिस मिलने मंे विलंब करदाताओं को हतोत्साहित कर रहा है तथा वह ध्नराशि भारतीय अर्थतंत्रा मंे प्रवेश नहीं कर पा रही है। इसी प्रकार सरकारी योजनाओं मंे विलंब से ध्नराशि जनता वेफ हाथों तक पहुँचने वेफ कारण समाज मंे खरीद-शक्ति नहीं बढ़ रही है। इसी प्रकार वेफन्द्र तथा राज्य सरकारों वेफ उपक्रम देर से भुगतान करते रहे हैैं जिससे अर्थव्यवस्था मंे नगदी का संकट उत्पन्न हो गया है। इसी प्रकार न्यायालयों मंे लंबित मामलों मंे आब( करोड़ों रुपया अर्थतंत्रा मंे आ सकता है।
यह बहुत कठिन कार्य है कि वृफषि क्षेत्रा मंे वृ(ि दर बढ़े क्योंकि भारत की वृफषि मानसून पर निर्भर है। इस वर्ष वर्षा अच्छी हुई है। आशा है भूतकाल की भाँति इस बार भी अंततोगत्वा भारत का वृफषि क्षेत्रा ही भारतीय अर्थव्यवस्था को संकट से उबारेगा।
वेफन्द्रीय सरकार ने सीध्े वृफषकों वेफ खातों मंे पैसा भेजकर एक उत्तम कदम उठाया है पर अभी भी किसानों द्वारा बैंक से भुगतान लेते समय पंचायत प्रधन वेफ दलाल एवं अन्य उनका बैंक तक पीछा करते रहते हैं। भारत का किसान गरीब है, अतः उर्वरकों तथा कीटनाशकों वेफ दामों मंे साथ-साथ कटौती भी आवश्यक है। दोनों प्रकार की योजनाओं को साथ-साथ चलना चाहिए। अभी भी किसानों को पफसल बीमा तथा वृफषि उत्पादों पर निम्नतम समर्थन मूल्यों का पूरा-पूरा लाभ नहीं मिल पा रहा है। इसवेफ लिए वृहद् सरकारी ढाँचा तैयार करने की आवश्यकता है क्योंकि निजी खरीददार एजेन्सियाँ बीच मंे कापफी गोलमाल करती हैं।
जहाँ तक सूक्ष्म लघु तथा मध्यम औद्योगिक इकाइयों का सम्बन्ध् है। उन्हंे अभी भी 
महाप्रबंध्क, उद्योग से कोई अनुदान या लाभ नहीं पहुँच पा रहा है। ये सरकारी संगठनों में उद्योगों को प्रोत्साहन देने की मानसिकता ही नहीं है। उन्हें प्रशिक्षण देकर उनकी मानसिकता मंे परिवर्तन की अहम आवश्यकता है तथा भ्रष्ट अध्किारियों तथा कर्मचारियों वेफ लिए तुरंत दंड की व्यवस्था भी होनी चाहिए।
अभी भारतका सूचना प्रौद्योगिकी तथा वस्त्रा उद्योग क्षेत्रा कापफी विदेशी मुद्रा अर्जित कर रहा था पर इन्हें भी क्रमशः चीन तथा बंगलादेश से कड़ी टक्कर मिल रही है। यदि इन क्षेत्रों ने भी अपने उत्पादों की गुणवत्ता मंे सुधर नहीं किया तथा उत्पादों को सस्ता नहीं किया तो यह कामध्ेनु भी हमारी खतरे मंे पड़ सकती है।
ऐसा न हो कि अर्थव्यवस्था को मजबूत करने वेफ लिए हम लघुसूत्राी कदम उठायें।
वित्तीय उत्तरदायित्व एवं बजट प्रबन्ध् अध्निियम 2003 ;एपफ.आर.बी.एम. एक्टद्ध की धरा 4 मंे वेफन्द्रीय सरकार पर यह प्रतिबंध् लगाता है कि हमारे वित्तीय घाटा किसी भी हालत मंे 3 प्रतिशत से अध्कि न हो तथा वेफन्द्रीय सरकार का ट्टण किसी भी हालत मंे सकल घरेलू उत्पाद वेफ 40 प्रतिशत से अध्कि न हो। चूँकि राज्य सरकारें सामान्यतः देश वेफ भीतर ही ट्टण लेती हैं, उनका तथा वेफन्द्र सरकार वेफ ट्टण का बोझ किसी भी हालत मंे 60 प्रतिशत से अध्कि न हो। वेफन्द्र सरकार भी राज्य सरकारों को विदेशों से ट्टण लेने वेफ लिए आध्े प्रतिशत से अध्कि अपनी गांरटी न दे।
इस प्रकार वेफ वित्तीय अनुशासन मंे ही वेफन्द्र सरकार तथा राज्य सरकारों को आगे बढ़कर परस्पर सहयोग द्वारा भारत की अर्थव्यवस्था को वर्तमान संकट से उबारना होगा जो कि संभव है।
                      


 


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