जैतपुर किले के भग्नावशेष आज भी पेशवा बाजीराव और मस्तानी के प्रेम की कहानी बयां करते हैं


कमल-कुमुदिनियों से सुशोभित मीलों तक फैली बेलाताल झील के किनारे खडे
जैतपुर किले के भग्नावशेष आज भी पेशवा बाजीराव और मस्तानी के प्रेम की
कहानी बयां करते हैं। ऋषि जयंत के नाम पर स्थापित जैतपुर ने चंदेलों से
लेकर अंग्रेजों तक अनेक उतार-चढाव देखे हैं।

मुगल सुबेदार का आक्रमण

जैतपुर का इतिहास उस समय अचानक मोड लेता है जब इलाहाबाद के मुगल सुबेदार
मुहम्मद खां बंगश ने 1728 ई. में जैतपुर पर आक्रमण किया और जगतराज को
किले में बंदी बना लिया। राजा छत्रसाल उस समय वृद्ध हो चले थे। मुगल सेना
की अपराजेय स्थिति को देखकर उन्होंने एक ओर तो अपने बडे पुत्र हृदयशाह,
जो उस समय अपने अनुज जगतराज से नाराज होकर पूरे घटनाक्रम के मूकदर्शक
मात्र बने थे, को पत्र लिखा तो दूसरी ओर उन्होंने मराठा पेशवा बाजीराव से
सहायता की विनती भी की।

राजा छत्रसाल का पत्र पाते ही पेशवा अपनी घुडसवार सेना के साथ जैतपुर आते
हैं और एक रक्तरंजित युद्ध में मुहम्मद खां बंगश पराजित होता है और उसका
पुत्र कयूम खान जंग में काम आता है। उसकी कब्र मौदहा में आज भी विद्यमान
है।

मस्तानी का युद्ध

जैतपुर के युद्ध में पेशवा ने एक महिला को भी लडते हुए देखा और उसके
कद्रदान हो गए। पेशवा ने छत्रसाल से उस महिला योद्धा की मांग की। यह
योद्धा मस्तानी थी, जो छत्रसाल की पुत्री थी। डा. गायत्री नाथ पंत के
अनुसार छत्रसाल ने मध्य एशिया के जहानत खां की एक दरबारी महिला से विवाह
किया था, मस्तानी उसी की पुत्री थी। मस्तानी प्रणामी संप्रदाय की अनुयायी
थी, जिसके संस्थापक प्राणनाथ के निर्देश पर इनके अनुयायी कृष्ण और पैगंबर
मुहम्मद की पूजा एक साथ करते थे। छत्रसाल ने ड्योढी महल में एक समारोह
में पेशवा और मस्तानी का विवाह कराकर उसे पूना विदा किया।

छत्रसाल की पुत्री मस्तानी जब ढेर सारे अरमान लिए पूना पहुंची तो पूना
उसको वैसा नहीं मिला, जैसा उसने सोचा था। पेशवा की माता व छोटे भाई ने इस
संबंध का पुरजोर विरोध किया। पेशवा ने मस्तानी का नाम नर्मदा रखा किंतु
यह मान्य नहीं हुआ। पेशवा और मस्तानी के एक पुत्र हुआ जिसका नामकरण पेशवा
ने कृष्ण किया किंतु पारिवारिक सदस्यों के विरोध के कारण कृष्ण का
रूपांतरण भामशेर बहादुर किया गया। रघुनाथ राव के यज्ञोपवीत संस्कार और
सदाशिवराव के विवाह संस्कार के अवसर पर उच्चकुलीन ब्राह्मणों ने यह
स्पष्ट कर दिया कि जिस संस्कार में बाजीराव जैसा दूषित और पथभ्रष्ट
व्यक्ति उपस्थित हो वहां वे अपमानित नहीं होना चाहते। इसी प्रकार एक
दूसरे अवसर पर जब बाजीराव शाहू जी से भेंट करने के लिए उनके दरबार में गए
तो मस्तानी उनके साथ थी, जिसके कारण शाहू जी ने उनसे मिलने से इंकार ही
नहीं किया बल्कि मस्तानी की उपस्थिति पर असंतोष भी व्यक्त किया।

बाजीराव-मस्तानी का प्रेम इतिहास

बाजीराव-मस्तानी का प्रेम इतिहास की चर्चित प्रेम कहानियों में है। पेशवा
ने विजातीय होते हुए भी मस्तानी को अपनी अन्य पत्नियों की अपेक्षा बेपनाह
मुहब्बत दी। पूना में उसके लिए एक अलग महल बनवाया। मस्तानी के लगातार
संपर्क में रहने के कारण पेशवा मांस-मदिरा का भी सेवन करने लगे। पेशवा
खुद ब्राह्मण थे और उनके दरबार में jज्यादातर सरदार यादव थे, क्योंकि
शिवाजी की मां जीजाबाई यदुवंशी थीं और उसी समय से मराठा दरबार में
यदुवंशियों की मान्यता स्थापित थी। दोनों जातियों में मांस-मदिरा को घृणा
की दृष्टि से देखा जाता था। एक दिन पेशवा के भाई चिमनाजी अप्पा और पुत्र
बालाजी ने मस्तानी को भनिवारा महल के एक कमरे में नजरबंद कर दिया, जिसे
छुडाने का विफल प्रयास बाजीराव द्वारा किया गया।

मस्तानी की याद पेशवा को इतना परेशान करती कि वो पूना छोडकर पारास में
रहने लगे। मस्तानी के वियोग में पेशवा अधिक दिनों तक जीवित न रहे और 1740
में पेशवा मस्तानी की आह लिए चल बसे। पेशवा के मरने पर मस्तानी ने चिता
में सती होकर अपने प्रेम का इजहार किया। ढाउ-पाउल में मस्तानी का सती
स्मारक है।

बाजीराव-मस्तानी से एक पुत्र भामशेर बहादुर हुए जिन्हें बांदा की रियासत
मिली और इनकी संतति नवाब बांदा कहलाई। भामशेर बहादुर सन 1761 में पानीपत
के युद्ध में अहमद शाह अब्दाली के विरुद्ध मराठों की ओर से लडते हुए मारे
गए। इनकी कब्र भरतपुर में आज भी विद्यमान है जो उस समय जाटों के अफलातून
सूरजमल की रियासत थी। भामशेर बहादुर द्वितीय, जुल्फिकार अली बहादुर और
अली बहादुर द्वितीय इस वंश के प्रमुख नवाब हुए। भामशेर बहादुर द्वितीय
मराठा समाज में पले बढे थे। उन्होंने बांदा में एक रंगमहल बनवाया जो कंकर
महल के नाम से जाना जाना जाता है। उन्होंने दूर-दूर से शास्त्रीय गायकी
के उस्तादों को बुलाकर बांदा में आबाद किया। उस मुहल्ले का नाम
कलावंतपुरा था जो आजकल कलामतपुरा हो गया है।


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