कहानी -रोशनी के साये

कमरे के एक कोने में बाहरी वातावरण से असंपृक्त मास्टर रामविलास पुरानी आसनी पर बैठे थेविचारों के प्राधान्य उनका सिर कदाचित् बोझिल हो उठा तो उकडूं बैठकर उन्होंने सिर झुका लिया है, जो घुटनों के बीच थमा था। 'अजी सुन्त हो का टेसन नाई जइऔ ' रुकमिन ने कमरे बाहर से आवाज लगाईउन्हें मालूम था कि आवाज सही कानों तक पहुँच गई होगी, पर असर कुछ देर में करेगीपति की इसी लापरवाही का उलाहना देते हुए उन्होंने स्वगत कहा, 'जिंदगानी बीत गई हर छोटी-बड़ी बात की याद दिलाउत ' पत्नी की हांक की चोट से रामविलास विचारों की काल्पनिक दुनिया से टूटकर ठोस जमीन पर आ गिरेकल्पना में अपने टूटे सपनों को संजोना उनका स्वभाव बन गया था। जब चारों ओर निराशा का अंधकार हो तो ... उन्होंने विचारों को एकदम झटक दिया। प्रकृतस्थ होकर बोले, 'जाना काहे नहीं है, प्रकाश की माँ ' उठते-उठते सोचने लगे कि ये स्त्रियाँ भी अजीब होती हैं, इनसान को आराम से दो श्रण एकांत में विचारों का सुख भी नहीं उठाने देतींखुद सदा कटु यथार्थ पर पैर टिकाए रहती हैं और चाहती हैं कि मर्द भी उनके साथ खड़े रहे।


पत्नी के पास पहुँचते हुए पूछा, 'भला क्या टैम हुआ होगा?' पति के सरोकार से रुकमिन के मन में उत्साह जगाबोली, 'गंगादीन मील की छुट्टी करके दरवज्जे के सामने से कबको निकल चुको हैमतलब ये कि पाँच बजे भए बहुत देर हुइ चुकी हैआठ की गाड़ी हैटेसन हियां से पाँच मील दूर है। पैदल एक घंटा तो लगै जइऔ टैम बचै तो टेसन पर थोड़ी आराम कर लिया। रामविलास ने अपने कपड़ों का ओर देखारुकमिन समझ गईबोली, 'तुम हाथ-मू धोबौ, हम अभई आई ' इतना कहकर वह पास की कोठरी में घुस गई। कमरे के बाहर निकलकर रामविलास ने हाथ- मुँह धोयाफिर पैरों पर दृष्टि गईसोचा स्टेशन तक पैदल जाने में धूल-धूसरित हो ही जाएंगे, वहीं धो लें तो ठीक रहेगा'आवौ', कमरे के अंदर से आवाज आईमास्टर उसी ओर चल दिए सोचा, इस बुढ़िया को कितना सिखाया, पर उसकी जुबान पर बैठा फर्मखाबादी-बोली का रस जाता ही नहीं। उसकी संगत में उनकी खुद की बोली खिचड़ी हो गई हैहोली-दिवाली, शादी-ब्याह में पहनी जानेवाली इकलौती पोशाक-कुरता, धोती और अंगोछा लिए रुकमिन खड़ी थी। बिना कुछ कहे कपड़े पति की ओर बढ़ा दिए बड़ी श्रद्धा से मास्टर ने कपड़े पकड़े और एक ओर हटकर पहन लिए सोचा, इन 'धरौआ', जैसा कि रुकमिन इन्हें कहती है, कपड़ों में भी अब कोई नयापन या चमक नहीं रह गई हैबस इतना ही है कि ये कहीं से फटे नहीं हैंईंटों के ऊपर रखे बक्से के नीचे पड़ी चप्पलें निकालकर उन्होंने पहनी और चलने को उदयत हुए 'जरा रुकिओ', इतना कहकर रुकमिन चौके में गईकुछ खटर-पटर किया और जब लौटी तो उसके हाथों में एक लोटा और कटोरी थीकटोरी आगे बढ़ाते हुए बोली, 'लेओ मूं जुठार के पानी पिओ।' रामविलास ने आश्चर्य से देखा कि कटोरी में गुड़ की एक डली रखी थीकल रात डरते-डरते गुड़ माँगा था, तो बुढ़िया साफ नाट गई थी कि घर में गुड़ का एक कन भी नहीं है। वे मन ही मन हँसे। चीजों को दाबकर रखना और मौके पर निकालना, औरतों की निराली कला होती हैनि:संग भाव से मास्टर ने गुड़ की डली उठाकर मुँह में डाल लीथोड़ी देर तक चुभलाई, फिर पत्नी के हाथ से लोटा ले लियामुँह ऊपर उठाकर लोटे से धार बांध 'गड़गड़' करते हुए पानी पी लिया। पीकर लगा जैसे आत्मा तृप्त हो गई होपत्नी की ओर कृतज्ञ-भाव से देखा और कहा, 'अच्छा चलता हूँ' 'दही मछरी।' पत्नी की शुभकामनाएँ लेकर वे घर से ___ बाहर निकल पड़े बासठ साल के मास्टर रामविलास किसी कोण से सत्तर से कम के नहीं दिखाई देतेआर्थिक अभावों ने उनकी कमर तोड़कर असमय ही बूढ़ा बना दिया हैबासठ के तो अब हैं, बूढ़े तो वे कई साल पहले हो चुके थे रास्ते में संतराम की दूकान पड़ीदेखा तो कई स्मृतियाँ फूट पड़ींसंतराम उनका दोस्त थाबहुत बड़ी परचून की दूकान थीवे उसकी दूकान पर जाकर बैठते थे। संतराम का बेटा मोहन और उनका पुत्र प्रकाश घनिष्ट मित्र थे। दोनों का एक-दूसरे के घर में आना जाना थापता नहीं, किन क्षणों में संतराम ने मन ही मन तय कर लिया था कि अपनी बेटी सरिता की शादी प्रकाश के साथ ही करेगा यह बात तो आरती के ब्याह के समय खुली। मास्टर ने आरती के लिए एक लड़का देखा। बात बन गई तो लेन-देन और व्यवहार तय करने वे लड़के वालों के यहाँ गए। संतराम अनपेक्षित रूप से साथ गया। उसने वहाँ जाकर खूब धुएँ के बादल उड़ाए। वर पक्ष को लगा कि मास्टर के पास माल-मत्ता है। उसी के अनुरूप उन्होंने अपनी मांगें रखीं। संतराम स्वीकृतिसूचक सिर हिलाता रहा। रामविलास ने फंड से अधिकतम फैसा निकाल लिया एक साल बाद तो रिटायर होना ही थाथोड़ी जमा-पूँजी थी, उसे मिलाकर वर पक्ष की माँगें पूरी तो हो रही सगन्ध थीं, परंत बारात के स्वागत भोजन और साज-सज्जा का खर्च कैसे पूरा होगा, यह उनकी समझ में नहीं आ रहा था। हताश हो संतराम से बात कीउसने कहा, 'क्यों परेशान होते हो भैया, आरती जैसी आपकी बेटी वैसे ही मेरी खाने-पीने का सारा जिम्मा मेरा, हलवाई मेरा, सारा सामान दूकान का। साजसजावट का भार में मोहन पर डालूँगा, एक 'डेकोरेटर' उसका दोस्त है। सब हो जाएगा' वादा यह रहा कि किसी को इस बात की कानों कान खबर भी न होगीपत्थर में जो क लागी देख रामविलास को खटका हआ था। पछा 'भाई हम तुमसे उऋण कैसे हो पाएँगेहमें अपनी हैसियत में रहने देते तो मेरी आत्मा पर बोझ तो नहीं रहता।' संतराम ने कृत्रिम क्रोध से कहा, 'ऐ मास्टर जी, क्यों मुझे बेगाना बना रहे हो ।' रामविलास से फिर कुछ बोला न गयासंतराम और मोहन ने सारा भार अपने ऊपर ले लियासरिता भी आरती के लिए तरह-तरह के कीमती उपहार लाई। घर के कामों में लगी रहीउसी प्रफुल्ल वातावरण में जब सरिता और प्रकाश आमने-सामने पड़ जाते तो बात करते ही हँसने का कोई न कोई विषय उन्हें मिल ही जाताऐसी ही किसी क्षण को पकड़कर संतराम ने मास्टर से कहा, 'देखो तो, कैसी सीता-राम की जोड़ी लग रही है ।' रामविलास संतराम के भाव समझकर सनाका खा गएउसकी सहायता का निहितार्थ उनकी समझ में आ गया, पर मौके की नजाकत देखकर वे चुप रहे। आरती का ब्याह धूमधाम से संपन्न हो गया और वह विदा होकर ससुराल चली गई'ऐ बुड्ढे मरना है क्या, जो बीच सड़क पर चल रहा है।' बगल से तांगा काटते हुए तांगे वाला चिल्लाया। उन्हें पता ही नहीं चला कि कब फुटपाथ पर चलते-चलते वे सड़क पर आ गएवे परेड़ की मुर्गी-बाजार वाली सड़क पर मुड़ेइस सड़क पर फुटपाथ नहीं बचा हैवहाँ मुर्गी के व्यापारियों ने कब्जा कर रखा हैवे दूकानों के किनारे-किनारे चलने लगेजाली के कटघरों में बंद मुर्गियाँ पंख फड़फड़ा रही थींरामविलास की स्मतियाँ भी पंख फडफडाती उनके साथ चलने लगींपकाश एम.ए. फाइनल में थापरीक्षा निकट आ गई थीउसने माँ-बाप को अंतिम चेतावनी दी कि दो दिन के अंदर छह माह की बकाया फीस न भरने पर उसे परीक्षा में नहीं बैठने दिया जाएगा। घर में रुपए न थे और न ही इतनी शीघ कोई प्रबंध हो सकता था। संतराम दे सकता था, पर मास्टर अपने होनहार बेटे को उसके पास गिरवी नहीं रखना चाहते थे। जब कुछ न सूझा तो रुकमिन ने सोने की अपनी दो चूड़ियाँ दे दी और कहा कि उन्हें बेचकर फीस भर दो___ मास्टर ने एतराज किया तो रुकमिन ने कहा, 'अरे अपने परकास पै तो ऐसी सैकड़ों चूड़ियाँ निछावर हैंवो बनौ राय बस ।' माँ ने अपनी प्रत्याशाएँ प्रकट नहीं की थीं। परीक्षाएँ निपट गई मई में परिणाम आ गयाप्रकाश ने प्रथम श्रेणी पाई थीउधर मास्टर जी भी सेवानिवृत्त हो गएएक महीने बाद फंड का शेष पैसा ग्रेच्युटी, बीमा आदि का भुगतान हा गयापंशन नहीं थी__ प्रकाश नौकरी की कोशिश जोर-शोर से कर रहा थाइसी बीच कलकत्ता से एक प्राइवेट फर्म में नौकरी के लिए बुलावा आयापहले साक्षात्कार होना था। प्रकाश को इस पद पर चुने जाने की पूरी उम्मीद थीपिता का भी पुत्र पर पूरा भरोसा था। यह तय हआ कि इस हिसाब से प्रकाश कलकत्ते जाए कि नौकरी मिलने पर तत्काल 'ज्वाइन' कर ले। अत: अपने पहनने के पूरे कपड़े, अन्य सामान और एक माह का जरूरी खर्च लेकर प्रकाश जाने को प्रस्तुत हुआसंतराम, सरिता और मोहन विदा करने आए थेमोहन तो तांगा लेकर आया थाउसी पर दोनों जन स्टेशन गए थेविचारों में डूबते-उतराते रामविलास स्टेशन पहुंचेपुल पारकर प्लेटफार्म पर आए पस्त हो गए थे, सो नल से पानी पिया, मुँह धोयानल ऊँचा लगा था, अत: पैर धोने की सुविधा नहीं थीअंगोछे से पैर झाड़-भर लिए स्टेशन की घड़ी में सात बजे थे। अगर गाड़ी टाइम से आए तो अभी एक घंटा और बाकी था। वे एक बेंच पर बैठ गए। पत्नी की अनुपस्थिति का लाभ उठाकर फिर स्मृतियों के पृष्ठ पलटने लगे। एक दिन प्रकाश का तार आया था कि उसे नौकरी मिल गई है। पति-पत्नी ने ईश्वर को धन्यवाद दियाबेटी की शादी के बाद सत्यनारायण की कथा नहीं करा पाए थे। दोनों अवसरों को मिलाकर कथा का औचित्य और बढ़ गया। कथा में संतराम का पूरा परिवार और पड़ोसी आए थेइसी बहाने सबको सूचना प्राप्त हो गई कि प्रकाश को कलकत्ता में नौकरी मिल गई हैलोगों ने सोचा कि नौकरी कलकत्ता में है तो अच्छी ही होगीस्कूल खुल गए थेरामविलास ने दौड़-धूपकर चार ट्यूशन पकड़ लिए। पैसा अच्छा था, पर उन्हें छह घंटे घर के बाहर ट्यूशन पढ़ाने में व्यतीत करने पड़ते थेइससे रुकमिन को परेशानी होने लगीमोहल्ले के लोग कहते कि जब लड़का कमा रहा है तो मास्टर जी को इस उम्र में खटने की क्या जरूरत है। एक दिन रुकमिन ने टोक ही दिया 'काए, तुमैं टूसन करन की का जरूरत है? अब तो हमारो लल्ला कमाउन वारों हुइ गओ है।' 'ठीक है वह कमाने वाला हो गया है, पर क्या हम लोगों को पता है कि वह कौन सी नौकरी कर रहा है, उसे कितना वेतन मिल रहा है, घर आने की कब बारी आएगी। आज तीन महीने हो गए हैं, उसकी एक भी चिट्ठी आई, ऐसे में मैं खुद हाथ-पैर न चलाऊँ तो थोड़ी बहुत जो जमा-पूँजी है, वह भी खत्म हो जाएगी।' यह पहला मौका था, जब रुकमिन चुप हो गई थीइसका अर्थ यह था कि वह भी किसी सीमा तक बेटे को दोषी मानती थीहर रविवार को रामविलास अपने मित्र संतराम के घर जाते थेवहाँ उनकी खूब खातिरदारी होती थी। सरिता तक आग्रह करके उन्हें खिलाती थीएक रविवार ऐसा भी आया, जो रामविलास पर आघात करने के लिए अपनी नियति में वज्र छिपाए थासंतराम के घर पर जब वे पहुँचे तो बैठक में अकेला संतराम बैठा था। अन्य दिनों की तरह उनके पहुँचने के निश्चित समय पर मोहन और सरिता उसकी प्रतीक्षा नहीं कर रहे थेमित्र के चेहरे पर अजनबीपन था। फिर भी वे बैठ गएअचानक संतराम ने पूछा, 'रामविलास! प्रकाश कब वापस आ रहा है?' प्रश्न और संबोधन दोनों रखे और अप्रत्याशित थेसदैव 'भैया' कहने वाला संतराम उन्हें उनके ठेठ नाम से पुकार रहा है। रामविलास बात की तह तक न पहँच सके. अत: चप रहे संतराम ने शुष्क कंठ से फिर कहा, 'कल मोहन के नाम प्रकाश का पत्र आया था। उसने कलकत्ते में शादी कर ली है। जब से सुना है, सरिता रोए मरी जा रही हैइतना बड़ा धोखायही संस्कार दिए थे तुमने अपने लाड़ले को ' अपने पुत्र की शादी की अप्रत्याशित सूचना और वह भी गैरों से पाकर रामविलास सन्न रह गएउन्हें लगा कि जैसे उनके हृदय में भीतर ही भीतर घाव हो गया होखैर, संतराम जैसे स्वार्थी को अच्छा सबक मिला। पर सरिता का क्या दोष है रामविलास ने साहस करके कहा, 'संतराम जी, मैं बेटी सरिता से कुछ बात करना चाहता हूँ। जरा दो मिनट के लिए बुला दें।' मास्टर की अतिरिक्त नम्रता से अप्रभावित हुए बिना संतराम ने कहा, 'अब किसी और नाटक की जरूरत नहीं है' रामविलास ने दृढ़ता से कहा, 'एक बात सुन लो, संतराम मैं सरिता से बिना मिले नहीं जाऊँगायह मेरे जीवन-मरण का प्रश्न है ' कुछ देर सन्नाटा व्याप्त रहासरिता जैसे यह वार्तालाप सुन रही हो, इसलिए स्वत: आ गई। उसके एक हाथ में पानी का गिलास था। रामविलास की ओर मुखातिब होकर सहजता से कहा, 'नमस्ते ताऊ जी, लीजिए पहले पानी पीजिए।' रामविलास ने उसके हाथ से गिलास लेकर दो छूट पानी पिया और गिलास मेज पर रखते हुए कहा, 'जीती रहो बेटीमुझे एक बात सच-सच बता दो तो मेरे दिल की फांस निकल जाएगी' 'पूछिए ताऊ जी', सरिता उनके पास ही बैठ गई। 'बेटी क्षमा करना, मुझे ऐसा प्रश्न पूछना पड़ रहा है। पर मजबूर हूँक्या प्रकाश ने तुमसे शादी करने का कोई वादा किया था?' _ 'नहीं तो, यह किसने कहा?' 'क्या प्रकाश के विवाह कर लेने से तुम्हें काई दुःख हुआ है?' ___ 'हाँ, ताऊ जी हआ। मैंने क्या-क्या सपने देख रखे थे। प्रकाश की शादी होगी तो हम लोग खूब धमाल करेंगे, भाभी आएगी तो उसे तंग करेंगे। मुझे नेग मिलेगा। पर ताऊ जी मुझे तो यह सोचकर रोना आता है कि आप पर और ताई जी पर शादी की बात से क्या गुजरेगी' मास्टर ने देखा कि संतराम भन्नाया हुआ अंदर जा रहा है। उन्हें अवसर मिल गया। पूछा, 'बेटी और क्या लिखा था प्रकाश ने पत्र में ।' 'मोहन भैया के लिए लिखा है कि यदि वह नौकरी करना चाहे तो कलकत्ता चला जाए। और जब तक यहाँ है, आप लोगों की खैर-खबर लेता रहेलिखा था कि कुछ परिस्थितियाँ ऐसी बनी कि मालिक की बेटी से अचानक शादी करनी पड़ीआप लोगों को कोई सूचना या निमंत्रण देने का अवसर ही नहीं मिला इसी शर्म के कारण वे आपको पत्र नहीं लिखते। लिखा है, कुछ महीने बाद आपको ऐसी खुशखबरी देंगे कि आप उनके सब अपराध भूल जाएंगे।' प्लेटफार्म पर अचानक चहल-पहल बढ़ जाने से रामविलास वर्तमान में आ गएपूछने पर पता चला कि 'राजधानी' आ रही हैप्रकाश को लाने वाली 'हावड़ा मेल' तो लेट है 'राजधानी' आई और सुख के दिनों की तरह थोड़ी देर रुक कर चली गई। मास्टर के विचार पुन: अतीत की मुंडेर पर जा बैठे दूसरे दिन जब संतराम का नौकर आया तो रामविलास का माथा ठनका। उसने एक लिफाफा दिया और चला गयामास्टर ने धड़कते दिल से लिफाफा खोला। उसमें दो बिल रखे थेएक तो संतराम द्वारा बेटी की शादी में दिए गए सामान का था, दूसरा साज-सज्जे वाले का थारामविलास समझ गए कि उनका दोस्त घटते पानी में मछली मार रहा हैवे यह भी कह सकते थे कि सामान तो बगैर माँगे भेजा गया था, फिर पैसे किस बात के। दूसरे दिन बैंक से रुपये निकालकर दोनों बिलों का खुद जाकर भुगतान कर दिया और संतराम से रसीद ले ली। रुकमिन ने जब यह खबर सुनी तो उसके ऊपर एक और गाज गिरीप्रकाश की शादी की अप्रत्याशित खबर से वे उबर न पाई थी कि संतराम ने अपना रंग दिखा दिया। उन्होंने खाट पकड़ ली। रामविलास उनकी तीमारदारी में लग गए। इसी कारण चार में से तीन ट्यशन छट गईयह बात रुकमिन के लिए और घातक क एक दिन कटना भारी हो गयापर समय को कौन बाँध पाया है, वह व्यतीत होता चला गयाकुछ महीनों बाद प्रकाश की चिटठी आई कि उसकी पत्नी आकांक्षा ने दो जुड़वा पुत्रियों को जन्म दिया है। इस समाचार से रुकमिन हरी हो उठीउसकी आधी बीमारी दूर हो गईसुगन्ध इधर समस्याओं ने मुँह और ज्यादा फाड़ लिया था। जो कुछ पैसा बचा था, रुकमिन की बीमारी में खर्च हो गया। एक ट्यूशन के सहारे घर की गाड़ी खिंच रही थी। अचानक प्रकाश की एक और चिट्ठी आ गई पिछले पत्र को आए नौ महीने भी नहीं हुए थे तो संतान के संबंध में तो कोई समाचार नहीं हो सकता था। दोनों ऊहा-पोह में पड़ गएतत्काल पत्र खोलने का कोई साहस नहीं कर सका। खैर चिट्ठी तो खोलनी ही थी। प्रकाश ने लिखा था कि कलकत्ते से उसका तबादला दिल्ली हो गया कि कलकत्ते से उसका तबादला दिल्ली हो गया हैवह सपरिवार हावड़ा मेल से अमुक तारीख को दिल्ली जाएगा कानपुर स्टेशन पर वह तथा आकांक्षा माता-पिता के दर्शन करना चाहते हैंआकांक्षा गर्भवती है, अत: रुकना संभव न होगावे लोग फिर कभी आएंगे। रामविलास जानते थे कि यह 'फिर कभी नहीं आएगाबहू के गर्भवती होने की बात सुनकर रुकमिन गदगद हो गई। बोली, 'मास्टर जी, लिख के धल्लेओ, अबकी लड़िकइ हुइ ।' कुछ देर अपने में मग्न रहने के बाद रुकमिन फिर बोली, 'न होय तो टेशन पै जाइकै मिल लीजौ। जा बहाने बेटा, बहू और पोतिन को देख लिऔ। फिर वासे तो हमारी हालतो नाई छिपी हैजाई अंगान मय बड़ो भओ हय' रामविलास पत्नी का इशारा समझ गए, पर बोले कुछ नहींकुछ देर सन्नाटा छाया रहा। अंत में उन्हीं को बोलना पड़ा 'नहीं रुकमिन, मैं अपना दुखड़ा लेकर मिलने नहीं जा पाऊँगा।' पिता का स्वाभिमान बेटे के सामने हाथ फैलाने से रोक रहा था पर बीमार पत्नी की जिद के आगे वे थोड़ा झुकेसिर्फ मिलने के लिए स्टेशन जाना स्वीकार कर लिया। रामविलास ने घोषणा सुनी कि 'हावड़ा मेल' दस मिनट के भीतर आने वाली हैयह सुनकर कोई उत्साह नहीं जागा। यूँ भी बीमार पत्नी के आग्रह पर बेटे से मिलने आए थे। सोचने लगे हम पुत्र को पालते-पोसते हैं, शिक्षा की डोर से बांधकर उसे पतंग की तरह महत्वाकांक्षाओं के आकाश में ऊँचा उठाते हैंफिर एक अनजान कन्या विवाह रूपी पेंच डालकर वह पतंग काट ले जाती है। माता-पिता के हाथ में रह जाती है पतंग से बिछडी डोर ममता का सारा जोर लगाने पर भी उस डोर से कटी पतंग वापस नहीं पाई जा सकती। रुकमिन उसी डोर से कटी पतंग खींचना चाहती है, क्योंकि पतंग का निर्माण करते समय, हर माँ की तरह, उसने भी आशा का एक दुमछल्ला उस पतंग से चिपका दिया थाधडधड़ करती 'हावडा मेल' प्लेटफार्म पर आकर रुकी। यात्री चढ़ने-उतरने लगे भागमभाग मच गईचारों ओर जैसे जीवन उमड़ा पड़ रहा हो रामविलास भी चैतन्य होकर गाड़ी की ओर बढ़े'बाबू जी नमस्ते __रामविलास ने दाईं ओर मुड़कर देखा, पकाश खड़ा था। उसने झककर पैर छए, उन्होंने आशीर्वाद दिया। चाहते थे कि पुत्र को गले लगा लें, पर बेटे ने जैसे दूर खड़े रेखा खींच दी होहोकर बीच में एक सीमा रेखा खींच दी होतभी कटे बालों को पीछे झटकते हुए बहू आकर खड़ी हो गई प्रकाश ने परिचय दिया। रामविलास अपने गंदे पैरों के बारे में सोचकर संकोच में गड़ गएबहू इन गंदे पैरों को छुएगी तो क्या सोचेगी? उनकी तमाम दुविधाओं को विराम देते हुए बहू ने हाथ जोड़कर प्रणाम कर लिया'माँ नहीं आई?', प्रकाश ने पूछा 'हाँ, बीमार है।' 'इलाज तो चल रहा है? 'हाँ ।' 'बाबू जी आपका भी स्वास्थ्य ठीक नहीं लगताकितने कमजोर हो गए हैं कोई टानिक वगैरह लेते रहें, तो ठीक रहेगा वैसे अंग्रेजी दवाइयों से तो आपको शुरू से ही चिढ़ है' माता-पिता के स्वास्थ्य के संबंध में पत्र की चिंता उचित है। पर जिस बेटे को नौकरीशदा पिता के घर में नियमित रूप से एक गिलास दुध नसीब नहीं हआ हो, वही बेटा सेवानिवृत्त, आर्थिक साधनों से विपन्न बूढ़े पिता से टानिक लेने के लिए कहे तो इससे बड़ी विडंबना और क्या होगी। रामविलास ने सिर झटका, जैसे विचारों की भनभनाती मक्खियों को उड़ा देना चाहते हों'अरे, तुम दोनों यहाँ खड़े हो, उधर तुम्हारे बच्चे और सामान ' वास्तव में वे बच्चों को देखना चाहते थे'बच्चे सो रहे हैं। सामान की रखवाली नौकर कर रहा है' ससुर की चिंता को काटकर बहू ने उत्तर दियारामविलास ने बेटे को आँख भर देखा। बालों में अभी से कुछ सफेदी सी झलकने लगी हैलगा कुछ दुबला हो गया हैहो भी क्यों न संयुक्त परिवार से छिटकी एकल गृहस्थी का बोझ अकेले ही जो उठा रहा है गाड़ी की सीटी में औपचारिकताएँ डूब गई। बहू-बेटा प्रणाम कर जल्दी-जल्दी अपने डिब्बे की ओर चल दिएशाख से उडा पक्षी यदि आधार और दिशा भल जाए तो भी उसका उडना बंद नहीं होता। गाडी चल दी। रामविलास खड़े-खड़े गाडी को जाते हुए देखते रहेअंतिम डिब्बे के पीछे उन्होंने एक बड़ा-सा 'क्रास' का चिहन देखा। लगा जैसे वह प्लेटफार्म पर छूटे लोगों की उपस्थिति को नकारते हुए चला जा रहा हो तन-मन दोनों से हारे रामविलास खाली बेंच पर जाकर बैठ गये। पत्नी ने सुदामा बनाकर भेजा था, पर बेटा कृष्ण न बन पायावे आशा रहित होकर पत्नी के पास तत्काल लौटने का साहस न जुटा सकेपर जाना तो होगा पत्नी की तमाम आशाओं को मन ही मन नकारते हुए वे अंतिम डिब्बे का 'कास' लादे अपने घर की ओर चल दिए


सुगंध से साभार


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