राष्‍ट्रीय कॉरपोरेट सामाजिक दायित्‍व पुरस्‍कार प्रदान किए जाने के अवसर पर राष्‍ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद का संबोधन

     सबसे पहले मैं राष्‍ट्रीय पुरस्‍कारों के जरिए कॉरपोरेट सामाजिक दायित्‍व (सीएसआर) में उत्‍कृष्‍टता को मान्‍यता देने के लिए की गई इस पहल के लिए वित्‍त एवं कॉरपोरेट कार्य मंत्री और उनकी टीम की सराहना करता हूं। मैं सभी विजेताओं के साथ-साथ उन लोगों को भी बधाई देता हूं, जिनका सम्‍मानित उल्‍लेख राष्‍ट्रीय सीएसआर पुरस्‍कारों की विभिन्‍न श्रेणियों में किया गया है। मैं संपदा एवं रोजगार सृजन के अलावा सामाजिक हित में उल्‍लेखनीय योगदान देने के लिए संपूर्ण कॉरपोरेट सेक्‍टर की सराहना करता हूं। कंपनियों द्वारा अच्‍छे कार्यों में आपस में प्रतिस्‍पर्धा करना निश्चित तौर पर खुशी की बात है।


    वैसे तो 'सीएसआर' शब्‍द का प्रचलन हाल के वर्षों में ही शुरू हुआ है, लेकिन हमारे देश में इसके पीछे की अच्‍छी भावना का लम्‍बा इतिहास रहा है। हमारे देश में अपनाई जा रही सभी धार्मिक परम्‍पराओं में कर्म-सिद्धांत का संदेश दिया जाता है। हमारे लिए यह कर्म-सिद्धांत दरअसल प्रकृति के सिद्धांत के अनुरूप है, जो सद्भाव एवं शांति को बढ़ावा देते हैा। भारत में प्रत्‍येक बच्‍चे ने महान हस्तियों जैसे कि 'दानवीर' कर्ण की प्रेरक गाथाएं सुनी हैं, जो अपनी अपार उदारता के लिए जाने जाते हैं। अत: जिसे हम अब सीएसआर कहते हैं, वह दरअसल हमारे डीएनए में शुरू से ही अंतर्निहित है।


    आरंभिक उद्योगवाद के उद्यमियों ने इस विरासत को आगे बढ़ाया था। अत्‍यंत मेहनती कारोबारी घराने जैसे कि टाटा, बिड़ला और बजाज के साथ-साथ देश के स्‍वतंत्रता संग्राम से जुड़ी अन्‍य संबंधित हस्तियां अपनी सामाजिक जिम्‍मेदारियों के प्रति अत्‍यंत संवेदनशील थीं। महात्मा गांधी ने न केवल देश की विभिन्न धार्मिक परंपराओं की गहरी समझ, बल्कि अपने से जुड़े विभिन्‍न उद्योगपतियों की उदारता के आधार पर भी ट्रस्टीशिप के सिद्धांत को विकसित किया था।


यह उचित है कि कॉरपोरेट मामलों का मंत्रालय इस वर्ष गांधीजी की 150 वीं जयंती के अवसर पर राष्ट्रीय सीएसआर पुरस्कारों की शुरुआत कर रहा है। मुझे यह जानकर खुशी हुई कि इसके बाद इन पुरस्कारों को हर साल महात्मा की जयंती पर 2 अक्टूबर को प्रदान किया जाएगा। गांधीजी का ट्रस्टीशिप सिद्धांत विशेष रूप से ईशावास्य उपनिषद और भगवद गीता से प्रेरित है। दान देने के सबसे अच्छे तरीके के बारे में भगवद गीता में वर्णन है :


दातव्यमिति यद्दानं दीयतेऽनुपकारिणे।


देशे काले च पात्रे च तद्दानं सात्विकं स्मृतम्।  [अध्याय 17, श्लोक 20]


इसका अर्थ है :


किसी प्रतिफल की इच्छा किये बिना और अपना कर्तव्य समझते हुए सही व्यक्ति, सही स्थान और सही समय पर किया गया दान कार्य ही सात्विक कहलाता है।


आजादी के बाद बड़ी संख्या में उद्योग जगत के कारोबारी परिवारों ने गांधीजी की सलाह को मानते हुए अपने लाभ का एक हिस्सा समाज के कल्याण कार्य में लगाए। आजादी के शुरूआती वर्षों में इस प्रकार की सहायता की अत्यधिक आवश्यकता थी। कारोबारी परिवारों ने विशेषकर शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में सरकार और सार्वजनिक क्षेत्र के प्रयासों को समर्थन प्रदान किया।


सीएसआर की समृद्ध परम्परा का निर्माण करने और पूरे उद्योग जगत को इससे जोड़ने के लिए एक नीति तैयार की गई। कंपनी अधिनियम को 2013-14 में संशोधित किया गया। इस संशोधन के माध्यम से कंपनियों को अपने लाभ का 2 प्रतिशत सामाजित कल्याण कार्यों में खर्च करना अनिवार्य बनाया गया।


कार्यान्वयन के प्रारंभिक चरण में सीएसआर के प्रति कंपनियों का उत्साह प्रसंशनीय था। 2014-15 के बाद से प्रत्येक वित्त वर्ष में उद्योग जगत ने सामाजित कल्याण के लिए 10,000 करोड़ रुपये प्रदान किये हैं। सामाजिक क्षेत्र के विभिन्न उपक्षेत्रों में इस प्रयास से लाभ हुआ है। शिक्षा, पर्यावरण, स्वास्थ्य गरीबी उन्मूलन और पोषण, पेय जल व स्वच्छता के क्षेत्र में सीएसआर द्वारा किए गए कार्यों को देख कर मैं खुश हूं।


    नेशनल सीएसआर पुरस्कार का उद्देश्य स्पर्धा को प्रोत्साहित करना और सीएसआर गतिविधियों में उत्कृष्टता को बढ़ावा देना है। पुरस्कारों की तीन श्रेणियों- सीएसआर में उत्कृष्टता, चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों / आकांक्षी जिलों में सीएसआर का योगदान- को अच्छी तरह चुना गया है। 'आकांक्षी जिलों का परिवर्तन' सरकार की नीतिगत प्राथमिकता रही है। इस अभिनव कार्यक्रम के तहत 131 जिलों को अधिक फोकस के साथ विकास कार्यक्रम के लिए चुना गया है। मुझे खुशी है कि यह पुरस्कार इन आकांक्षी जिलों में किए गए अनुकरणीय सीएसआर कार्य को मान्यता देते हैं। मुझे यह देखकर भी खुशी है कि राष्ट्रीय सीएसआर पुरस्कारों के विजेता और राष्ट्रीय सीएसआर पुरस्कार उद्योगों और क्षेत्रों की विविधता का प्रतिनिधित्व करते हैं।


     वास्तव में यह प्रसन्नता की बात है कि समाज के जिन वर्गों को मदद की सबसे ज्यादा जरूरत है, वे सीएसआर गतिविधियों के मुख्य लाभार्थियों में हैं। इस प्रकार, कॉरपोरेट जगत ने राष्ट्रीय लक्ष्यों के लिए एक बहुमूल्य योगदान दिया है। कॉरपोरेट जगत अधिक समतामूलक समाज बनाने के लक्ष्य की दिशा में देश की प्रगति में मदद कर रहा है। कॉरपोरेट जगत में दीर्घकालिक प्रभाव वाली टिकाऊ परियोजनाओं पर ध्यान केंद्रित किया है।


     सामान्य रूप से सीएसआर कार्यक्रम को सार्वजनिक स्वास्थ्य, शिक्षा, आजीविका, जल संरक्षण, स्वच्छता और प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन जैसी राष्ट्रीय प्राथमिकताओं के साथ जोड़ा गया है। कार्यक्रम वैश्विक प्राथमिकताओं के अनुरूप भी है। मैं गरीबी दूर करने, ग्रह की रक्षा करने और सभी की समृद्धि सुनिश्चित करने के लिए संयुक्त राष्ट्र द्वारा निर्धारित सतत् विकास लक्ष्यों (एसडीजी) का उल्लेख कर रहा हूं। 169 लक्ष्यों के साथ 17 लक्ष्यों को 2030 तक हासिल किया जाना है। मुझे विश्वास है कि हम समय पर सभी लक्ष्यों को प्राप्त करेंगे। वास्तव में, स्वच्छता के मानकों पर भारत ने समय से पहले ही लक्ष्य प्राप्त कर लिया है। एक प्रभावी सीएसआर व्यवस्था बनना वास्तव में इस संदर्भ में समयानुसार विकास है। मुझे पूरी उम्मीद है कि सीएसआर गतिविधियों से सतत् विकास की चुनौतियों का सामना करने के अभिनव समाधान निकलेंगे।


     जैसा कि आप सभी जानते हैं कि हमारी सरकार के प्रयासों के कारण भारत विश्व के देशों की व्यापार सुगम्यता रैंकिंग में भारत लगातार सुधार कर रहा है। सरकार सीएसआर व्यवस्था को अधिक प्रभावी बनाने के लिए इसे नया रूप देने के प्रति भी संवेदनशील है। सितंबर में, सीएसआर गतिविधियों के दायरे में शोध इन्क्यूबेटरों की अधिक श्रेणियों को शामिल करके इसे व्यापक बनाया गया था। शोध और विकास पर यह जोर अन्वेषकों की काफी मदद करेगा।


कंपनी की संस्कृति में सामाजिक कल्याण को आत्मसात करना समान रूप से महत्वपूर्ण है। इसलिए मैं आपसे मांग करूंगा कि आप अपने कर्मचारियों को समाज के अंतिम समूह की सेवा के लिए प्रेरित करें और उन्हें इसके लिए संवेदनशील बनाएं। एकमात्र इस कदम से आम लोगों के बीच धन के सृजनकर्ताओं के प्रति काफी सद्भावना उत्पन्न होगी।


इस अवसर पर मैं आपके साथ एक दृष्टिकोण को साझा करना चाहता हूं। जब हमारे समाज में जरूरतमंदों की मदद की बात हो, हमारे पास इच्छा शक्ति है तथा अब तो हमारे पास कार्यक्रम भी है। हमें सर्वाधिक मदद किसकी करनी चाहिए? मेरे दिमाग अनाथ बच्चे और दिव्यांग हैं, जबकि सरकार उनकी और समाज की मदद के लिए सबकुछ किया है, जो कर सकती थी और विशेष रूप से कंपनी क्षेत्र उनके लिए और भी अधिक कार्य कर सकता है। क्या हम इस प्रकार योजना बना सकते हैं कि एक निर्धारित समय के भीतर प्रत्येक अनाथ बच्चे को व्यक्तिगत देखभाल मिल सके? प्रत्येक बच्चे की देखभाल के लिए और अपने जनसांख्यिकीय लाभ पाने के लिए 2030 को एक समय-सीमा के रूप में निर्धारित कर सकते हैं। मैं आपके सोच-विचार और कार्य के लिए यह सुझाव रखता हूं।


प्रथम राष्ट्रीय सीएसआर पुरस्कार समारोह में शामिल होकर मुझे प्रसन्नता हो रही है। मैं एक बार फिर पुरस्कार विजेताओं के साथ-साथ सम्मानित तौर पर उल्लिखित व्यक्तियों, ज्यूरी सदस्यों और कंपनी कार्य मंत्रालय को बधाई देता हूं। आप सभी ने यह दर्शाया है कि सामाजिक और पर्यावरण के तौर पर जवाबदेह होकर भी लाभ अर्जित करना संभव है। आज आपके सामने आकर मैं यह पा रहा हूं कि प्राचीन सुक्तियां सही थीं :


गौरवं प्राप्यते दानात् न तु वित्तस्य सञ्चयात्


स्थितिरुच्चैः पयोदानां पयोधीनामधः स्थितिः


 


इसका अर्थ है  :


“धन दान करने से सम्मान मिलता है, न की इसे जमा करके। जल का त्याग करने के बाद बादल को ऊंचा स्थान मिलता है, जबकि जल का संग्रह करने के बाद महासागरों को निचला स्थान मिलता है।”   


आप इससे भी अधिक ऊंचाइयां प्राप्त कर सकते हैं और दूसरों को प्रेरित भी कर सकते हैं। मैं कामना करता हूं कि आपके प्रयासों को सर्वाधिक सफलता मिले।


धन्यवाद,


जय हिंद!


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