संस्कृतभारती का प्रथम विश्वसम्मेलन
संस्कृत के क्षेत्र में विश्वव्यापी एवं प्रभावी कार्य करने वाला संगठन है संस्कृत भारती। शैक्षिक संगठन होने के साथ-साथ यह एक सामाजिक संगठन भी है। अपने कार्यकर्ताओं के आधार पर ही संगठन अपने लक्ष्य की ओर अग्रेसर होता है जिनके हेतु कई बैठके गोष्ठियों एवं सम्मेलनों का आयोजन किया जाता है। इसी क्रम में आयोजित किया गया था संस्कृतभारती का प्रथम विश्वसम्मेलनम्। 9 से11 नवंबर को दिल्ली के छत्तरपुर मंदिर परिसर में आयोजित सम्मेलन में संस्कृत भारती के दायित्ववान् कार्यकर्ताओं का जो सभी संस्कृत में बोलते हैं आह्वान किया गया था। संस्कृतभारती का कार्य भारत के 593 जिलों में है साथ ही भारत से इतर 17 देशों में भी संगठन कार्य कर रहा है। यद्यपि संस्कृतभारती का अधिवेशन हर 3 वर्ष बाद होता है पर इस बार इस अधिवेशन को विश्वसम्मेलन का स्वरूप दिया गया। सम्मेलन में कुल 4207 प्रतिनिधियों नें सहभागिता की, विश्व प्रभाग से 76 प्रतिनिधियों की उपस्थिति रही। इन प्रतिनिधियों की व्यवस्था हेतु 1200 कार्यकर्ता लगे थे। सम्मेलन के औपचारिक उद्घाटन की पूर्व संध्या पर भारतीय युद्ध कला का प्रदर्शन आयोजित था जिसमें मुख्य अभ्यागत के रूप में गृह राज्य मंत्री किरेन रिजिजू उपस्थित रहे। जिन्होंने संस्कृत में अपना भाषण प्रारम्भ किया।
इस सम्मेलन के दो भाग थे पहला, जिसमें प्रतिनिधि ही भाग ले सकते थे और दूसरा प्रदर्शनी जो समस्त जनसाधारण के लिए खुली थी। 9 नवम्बर को प्रदर्शनी का उद्घाटन विदेश एवं संसदीय कार्य मंत्रालय के राज्यमंत्री वि मुरलीधरन् जी द्वारा किया गया जिसमें संस्कृतभारती के अखिल भारतीय अधिकारियों के साथ प्रसिद्ध स्तम्भलेखक तरुण विजय (President National Monument Authority) जी रहे। जबकि सम्मेलन के औपचारिक उद्घाटन में केंद्रीय स्वास्थ्य, परिवार कल्याण एवं विज्ञान तंत्रज्ञान मंत्री डॉ. हर्षवर्धन जी, केंद्रीय राज्यमंत्री प्रतापचंद्र षडंगी जी एवं अन्य गणमान्य उपस्थित थे | उद्घाटन सत्र में भारतीय परंपरा के अनुसार दीपप्रज्वालन के बाद वैदिक मंगलाचरण हुआ। सम्मेलन को शुभकामनाएं देते हुए माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने अपना संदेश भेजा था जिसे संस्कृत संवर्धन प्रतिष्ठान के शैक्षिक निदेशक एवं भूतपूर्व अ.भा.अध्यक्ष, संस्कृतभारती डॉ चाँदकिरण सलूजा जी ने पढ़ा। इस अवसर पर डॉ हर्षवर्धन जी ने कहा कि मैंने इस संस्कृत संगम को देखकर मेरी आत्मा तृप्त हो गई | संस्कृतभारती संस्कृत के माध्यम से समाज में संजीवनी का संचार करती है | संभाषण शिबिरों के माध्यम से समग्र विश्व में संस्कृत की अलख संस्कृतभारती के कार्यकर्ताओं ने जगाई है। इससे बड़ा हर्ष और गौरव होता है। आदरणीय प्रतापचन्द्र षडंगी जी ने अपना समग्र भाषण संस्कृत में दिया और संस्कृत की महत्ता और उसके विभिन्न पक्षों को बताया। संस्कृतभारती के अखिल भारतीय महामंत्री श्रीश देवपुजारी जी ने 3 वर्षों का कार्यवृत्त प्रस्तुत किया | उन्होंने बताया कि भारत के 542 जिलों के 3883 स्थानों से प्रतिनिधि इस सभा में उपस्थित हैं। 9 नवंबर को सायं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह सुरेश जी सोनी का उद्बोधन हुआ जिसमें संस्कृत के विषय में विस्तृत तथ्यों एवं कार्यशैली का बोध कराया । रात्रि में पद्मविभूषण डा. सोनल मानसिंह के निर्देशन में लोकनृत्यों की प्रस्तुति संस्कृत में हुई।
उसी काल में सम्मेलन के भिन्न सभागृह में अखिल भारतीय अध्यक्ष का चुनाव हुआ एवं प्रोफेसर गोपबन्धु मिश्र जी को अखिल भारत अध्यक्ष चुना गया। उपाध्यक्ष के रूप में प्रोफेसर श्रीनिवास वरखेड़ी जी को नियुक्त किया गया एवं अन्य मुख्य दायित्वों की घोषणा हुई। 10 नवंबर को विश्व सम्मेलन में भारत के उपराष्ट्रपति श्री वेंकैया नायडू जी का आना हुआ सबसे पहले उन्होंने प्रदर्शनी का अवलोकन किया और उसके बाद मुख्य कार्यक्रम में पधारे। इस सत्र में हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री जयराम ठाकुर जी को भी संस्कृत को द्वितीय राजभाषा बनाने के लिए सम्मानित किया गया। स्वामी अवधेशानंद गिरि जी की गरिमामय उपस्थिति इस सत्र में रही। अपने भाषण में आदरणीय वेंकैया नायडू जी ने संस्कृत में आरम्भ करते हुए आंग्ल भाषा एवं हिन्दी में भाषण में कहा -
प्राथमिक शिक्षा मातृभाषा में ही होनी चाहिए उसी से हम अपनी संस्कृति से जुड़े रह सकते हैं। यद्यपि मैंने संस्कृत नहीं पढ़ी तथापि मञ्च पर हुए संस्कृतभाषणों को मैं समझ पाया क्योंकि तेलुगू भाषा में बहुत से शब्द संस्कृत के हैं। माता, जन्मभूमि, मातृभाषा, गुरु तथा अपनी मातृभूमि इसके साथ मैं संस्कृत को जोड़ता हूं। इन सभी के बारे में अपने मन में अत्यंत आदर होना चाहिए यह हमारे आत्म गौरव के विषय हैं। इस सत्र में अखिल भारतीय महामंत्री श्रीश देवपुजारी, विश्व सम्मेलन की स्वागत समिति के अध्यक्ष एवं केंद्रीय मंत्री डॉ हर्षवर्धन, कुलपति प्रो. गोपबंधु मिश्र एवं हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री मंच पर समुपस्थित थे। इस सत्र के बाद प्रसिद्ध नृत्यांगना एवं सांसद सोनल मानसिंह जी के द्वारा शास्त्रीय नृत्य की प्रस्तुति कराई गई।
11 नवंबर को 18 स्थानों पर श्रेणीश: बैठक हुईं। जिसमें अपने अपने कार्य विभागों के अनुसार कार्य चर्चा हुई। सम्मेलन के समापन सत्र में मानव संसाधन विकास मंत्री डॉ रमेश पोखरियाल निशंक मुख्य अतिथि के रूप में रहे। संस्कृत की महत्ता बताते हुए उन्होंने विशेष रूप से कहा नूतन शिक्षण नीति में संस्कृत का उचित स्थान मिले भारतीयता हो ऐसा मैं ध्यान रखूंगा। समापन सत्र के अंत में विश्व सम्मेलन के सर्व व्यवस्था प्रमुख डॉ बिहारीलाल शर्मा जी ने धन्यवाद ज्ञापन किया।