कौन पड़ेगा कितना भारी 

कौन पड़ेगा कितना भारी 
यूपी के सियासी महाभारत में जंगजूओ ने अपने-अपने निशाने साध लिऐ है कोई जाति का शस्त्र लेकर मैदान में है कोई आरक्षण का लालीपाप लेकर आया है हर किसी कि निगाहे बोटरो को अपने पाले में ला कर चुनावी रण जीतना है। कोई नचनिया नचा रहा तो कोई बायदो का खयाली पुलाव परोस रहा है जनता बेचारी एक बार फिर ठगी जाने के लिऐ मजबूर दिख रही है।उ ार प्रदेश विधानसभा चुनाव में 12.58 करोड़ मतदाता भाग लेंगे। प्रदेश में मुख्य मतदेय स्थलों की संख्या 1 लाख 28 हजार 112 एवं मतदान केंद्रों की संख्या 87,313 है। कई स्थानों पर मतदेय स्थलों की संख्या बढ़ जाने के कारण वहां सहायक मतदेय स्थल बनाये जाएंगे। प्रदेश में 18-19 साल के युवा मतदाताओं की संख्या 52.53 लाख है। ये पहली बार वोट डालेंगे। चुनाव आयोग की पैनी नजर के बीच सभी राजनैतिक दल अपने-अपने क्षेत्र में पूरे दमखम के साथ चुनावी रणविजय के लिये जी जान से जुट गये है। यूपी में राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (एनआरएचएम) के साथ बीते छह सालों में जमकर खेल हुआ। मुलायम से लेकर मायावती तक के कार्यकाल के दौैरान केंद्र ने सूबे को 8657 करोड़ रुपये दिए, लेकिन अफसरों व चिकित्सकों ने पांच हजार करोड़ की बंदरबांट कर ली। इसका राजफाश सीएजी की रिपोर्ट में हुआ इसी बात को चुनावी जंग का हथियार बनाने के लिऐ आतुर काग्रेस और भाजपा को दूसरी दिशा में मोडने के लिए  सपा ने भी अपना दाव चला है। प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश यादव की सोच के कारण अंग्रेजी और कंप्यूटर शिक्षा का विरोध करने वाली समाजवादी पार्टी ने अब न केवल इनके समर्थन में खड़ी हो गई है, बल्कि पार्टी ने तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जे. जयललिता की तर्ज पर छात्रों को मुफ्त लैपटाप और टैबलेट देने का ऐलान कर युवाओं को आकर्षित करने की कोशिश भी की है। चुनाव के 24 पेज के घोषणापत्र में महिलाओं, युवकों, किसानों, छात्रों, गरीबों, मुसलमानों और रिक्शा चालकों तक की जरूरतों के साथ साथ प्रदेश में स्व'छ शासन और बेहतर कानून व्यवस्था का वादा किया गया है। सपा ने कहा है कि प्रदेश में सरकारी सेवाओं में भर्ती की आयु सीमा 35 वर्ष होगी और 35 वर्ष की उम्र के बाद भी नौकरी न मिलने पर बेरोजगार नौजवानों को 12 हजार रुपये सालाना बेरोजगारी भ ाा दिया जायेगा। घोषणापत्र में मायावती सरकार के पांच साल के भ्रष्टाचार की निश्चित समय सीमा में जांच कराने के लिए एक आयोग के गठन के साथ ही लोकायुक्त संस्था को बहुसदस्यीय करने की बात कही है। पार्टी ने मुसलमानों को जनसंख्या के आधार पर आरक्षण देने और आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई की आड़ में जेलों में बंद यूपी के बेकसूर मुस्लिम युवकों को रिहा कराने के वादे के साथ ही उन्हें मुआवजे के साथ इंसाफ देने का भरोसा दिलाया है।
प्रदेश में 2००7 के विधानसभा नतीजों पर नजर डाली जाये तो स ाा रूढ़ बहुजन समाज पार्टी 2०6 सीटों पर समाजवादी पार्टी 97 सीटों पर भारतीय जनता पार्टी 51 सीटों पर कांग्रेस 22 सीटों पर तथा अन्य दल 27 सीटों पर सिमट कर रहे गये थे। विगत 22 वर्षो बाद पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने वाली बहुजन समाज पार्टी के सामने इस बार सहयोगी दलों कें नाम पर अपना एजेण्डा पूरा न कर पाने का बहाना नही है। इसलिए 3०.43 प्रतिशत मत हासिल करके सबसे मजबूत दल के रूप में अपना दबदबा बनाये रखने वाली बहुजन समाज पार्टी ने अपने चुनावों की तैयारियॉ स ाा मिलते ही शुरू कर दी थी। तब से लगातार सोशल इंजीनीरिंग के तहत बनी भाईचारा समितियों सक्रिय समर्पित कैडर 20 प्रतिशत दलित वोट बैंक के साथ सरकार की नई नई नीतियों उपल िधयों को सरकारी तंत्र के सहारे गॉव गॉव में पहुचाने की मुहिम में करोड़ों रूपया झोकने के बाद सबसे आगे दिख रही है। फिर भी बसपा में हालात अ'छे नही दिखने के पीछे नम्बर दो के नेता बाबू सिंह कुशवाहा की विदाई से लेकर भ्रष्टाचार के आरोप में आधा दर्जन मंत्रियों के पद गवाने के साथ साथ आधा दर्जन से अधिक मंत्री लोकायुक्त की जांच के घेरे में होने तथा 11० से अधिक विधायकों तथा आधा दर्जन मंत्रियों की टिकट काटे जाने केे कारण मचा घमासान चिन्ता सबब बन सकता है। ब्राहा्रण चेहरे के नाम पर सतीश मिश्रा एवं उनके कुनबे को ही सारी मलाई मिलने के कारण ही ब्राहा्रण समाज की नाराजगी दबंग क्षत्रियों को जब तक बसपा में रहे तब संत और बसपा छोड़ते ही शैतान मानने की प्रक्रिया के कारण क्षत्रिय समाज का असंतोष तथा पॉच साल मेें उपजी स ाा की नाराजगी के साथ कांग्रेस द्वारा मुस्लिम आरक्षण के दाव से बचना होगा। बसपाई सेना में मुख्य सेनापति मायावती के बाद मात्र सतीश चन्द्र मिश्रा, नसीम उद्दीन सिद्दीकी और स्वामी प्रसाद मौर्या ही स्टार प्रचारक शेष बचने के कारण स्टार प्रचारकों का टोटा दिख रहा है। विपक्ष द्वारा भ्रष्टाचार के आरोपों में माया सरकार को बुरी तरह घेरने के कारण चुनावी परिणामों पर प्रभाव पडऩे की बात कही जा रही है। एक सर्वेक्षण एजेंसी द्वारा किये सर्वेक्षण में 9 प्रतिशत वोटों के खिसक जाने की बात सामने आने से बसपा के लिये खतरे की घंटी बचती नजर आ रही है। अपने वोटरों पर मीडिया का प्रभाव न मानने वाली बसपा पहली बार छीजते जनाधार के डर से भयभीत होकर उसी मीडिया की शरण में विज्ञापनों की सौगात लेकर पहुंचने को मजबूर होना जताता है कि  उ ार प्रदेश कें विभिन्न क्षेत्रों का सर्वेक्षण में जो तस्वीर उभर कर आयी है। उसमें बसपा सिमटती नजर आ रही है। लेकिन राजनैतिक दांव पेच के जाल में उलझे मतदाताओं के वोट आखिर किसके पाले में अधिक पड़ते है कहना इतना आसान नहीं है। चुनावी ऊट किस करवट बैठेगा यह तो मतगणना के बाद ही तय होगा।
लोकसभा चुनाव में प्रदेश की दूसरे नम्बर की पार्टी बनकर उभरी कांग्रेस उ ार प्रदेश मेंं बीस वर्षो का अपना वनवास समाप्त करने के लिये पूरे दमखंभ के साथ चुनावी जंग में उतर गयी है। कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी ने विगत दो वर्षो में युपी को चुनावी दंगल के लिये मथडाला है। गाँव -गाँव और पाँव-पाँव के नारे के साथ हर गरीब के आँगन में दस्तक देकर बसपा और सपा को उसके ही गण में जबरदस्त तरीके से घेरा है। कांग्रेस ने प्रदेश में अपनी सरकार लाने के लिये लोकसभा चुनाव के परिणाम आते ही अपनी रणनीति तय कर दी थी। केन्द्रीय मंत्री मण्डल में बेनीप्रसाद वर्मा, श्रीप्रकाश जय सवाल सलमान खुर्शीद, जितिन प्रसाद, आर.पी.एन. सिंह, प्रदीप जैन आदित्य की ताज पोसी के साथ दलित नेता पी.एल. पुनिया को अनुसूचित जाति एवं जनजाति आयोग का चेयरमैन बनाकर अपने छत्रपों की सेना तैयार की प्रदेश को दस जोन में बॉटकर अन्य रा'यों के प्रभारी तैनात करके लगातार मानीटर्रिग के साथ राहुल गांधी के सम्पर्क में नेतृत्व में सम्पर्क अभियान केन्द्रीय मंत्रियों और सांसदों के द्वारा जन जागरण अभियान किसानों मजदूरों  तथ बुनकरों के लिये मनरेगा, बुनकर पैकेज, बुन्देलखण्ड पैकेज, मुस्लिमों के लिये आरक्षण तथा भोजन का कानूनी अधिकार बिल के साथ-साथ प्रदेश मेंं चल रही केन्द्र चल रही 16 जनकल्याणकारी योजनाओं पर निरन्तर नजर रखने के साथ परम्परा गत मुस्लिम दलित ब्राहा्रणों के वोटों की वापसी के लिये सम्मेलनों तथा पश्चिमी उ ार प्रदेश में रालोद से चुनावी गठबंधन का दाँव खेला है। कांग्रेस की रणनीति सपा को हर हाल में नुकसान पहुंचाने की है। जहां वह कम वोटों के अंतर से सपा की हार का कारण बन सकती है। कांग्रेस ने तो प्रत्याशियों के चयन में ही समाजवादी पार्टी से जुड़े पुराने नेताओं-कार्यकर्ताओं को तव'जो देकर अपनी रणनीति के तहत मुलायम सिंह यादव के गढ़ इटावा, मैनपुरी, औरैया, फर्रुखाबाद और कन्नौज जैसे जिलों में यादव बिरादरी के नेताओं को पार्टी प्रत्याशी बनाकर भी पार्टी ने अपने मिशन को आगे बढ़ाया है। कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी प्रदेश की चुनावी सभाओं में मुख्यमंत्री मायावती के साथ ही मुलायम की पिछली सरकार की गलतियों को गिनाना भी पार्टी की रणनीति का ही हिस्सा है। उन सीटों पर उन्हीं सवालों को प्रमुखता से उठाया जाएगा जिन पर सपा के लिए जवाब देना भारी पड़े। कांग्रेस पार्टी किसी और को समर्थन से 'यादा, दूसरे के ही सहयोग से सही अपनी सरकार बनाने को 'यादा तव'जो देगी। कांग्रेस उ ार प्रदेश में चुनाव बाद दूसरे दल से मिलकर सरकार नहीं बना पाती तो प्रदेश में राष्ट्रपति शासन और फिर नये चुनाव का विकल्प होगा। कासगंज उ ार प्रदेश के चुनावी समर में कांग्रेस को विजयी बनाने की कोशिशों में जुटे पार्टी महासचिव राहुल गांधी ने खाद्य सुरक्षा विधेयक की आलोचना करने पर रा'य की मुख्यमंत्री मायावती को जमकर खरी-खोटी सुनाई। उन्होंने कहा कि इस विधेयक के लागू होने के बाद देश में कोई भी गरीब भूखा नहीं सोएगा। इसके तहत हर परिवार को 35 किलोग्राम अनाज दिया जाएगा, लेकिन मायावती कहती हैं कि इससे किसी को फायदा नहीं होगा।  इसमें उमड़ी भीड़ से उन्होंने सीधा संवाद किया। उन्होंने कहा, मैं गांव में, गरीब के घर, दलित के घर यूं ही नहीं जाता, वहां भोजन ऐसे ही नहीं करता, उनके घर का गंदा पानी पीने के पीछे कुछ और कारण भी हैं। मायावती पर कटाक्ष करते हुए कहा कि मुख्यमंत्री किसी गांव में किसी गरीब के घर नहीं जातीं, इससे गरीब जनता के दर्द का कैसे अहसास किया जा सकता है? राहुल ने कहा कि केंद्र सरकार जब मनरेगा योजना लाई थी तब बसपा मुखिया मायावती ने सवाल उठाए थे कि पैसा कहां से आएगा, लेकिन जब किसी बड़े व्यक्ति को जमीन की जरूरत होती है तो सरकार जमीन छीन लेती है। उसके लिए कोई नहीं पूछता कि धन कहां से आएगा। कांग्रेस ने इंतजाम किया देशभर में मनरेगा योजना लागू हुई। करोड़ों रुपया भेजा, मगर यूपी को मदद के लिए दिए गए हजारों करोड़ रुपये बसपा का हाथी हजम कर गया। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री ने आपके घरों में भूख नहीं देखी है। इसलिए वह बिना सोचे समझे कहती हैं कि खाद्य सुरक्षा विधेयक से किसी का फायदा नहीं होगा। सचाई यह है कि इससे देश के हर गरीब का फायदा होगा। उन्होंने कहा कि हम भ्रष्टाचार पर पूरी तरह सजग हैं। इसीलिए यूपीए सरकार ने सूचना का अधिकार देकर भ्रष्टाचार को रोकने का क्रांतिकारी कदम उठाया था। इसके पीछे जनता को हक देने का मकसद था। प्रदेश प्रभारी दिग्विजय सिंह मुस्लिमों को मुसलमानों को साढ़े चार फीसदी आरक्षण देने की चर्चा करते हुए सचेत किया कि सपा ने मुसलमानों को सिर्फ लड़ाने के अलावा उन्हें कुछ नहीं दिया। वे बोले कि मौका परिवर्तन का है। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष रीता बहुगुणा जोशी ने कहा केंद्र सरकार द्वारा रा'य विभाजन के प्रस्ताव पर उठाए सवाल उचित हैं। साथ ही आरोप लगाया कि इस मसले पर मुख्यमंत्री मायावती की नीति व नीयत ठीक नहीं है। विस चुनाव नजदीक होने के कारण बसपा प्रमुख ने आनन फानन में प्रदेश बंटवारे का दांव केवल राजनीतिक लाभ उठाने के लिए ही चला। इस मुद्दे पर सदन में सार्थक बहस कराने के अलावा जनमत संग्रह भी कराया जाना चाहिए था।  कांग्रेस छोटे रा'यों की विरोधी नहीं है। अब तक बने 14 नए प्रदेशों में से 11 कांग्रेस के शासनकाल में ही गठित किए गए। इसके अलावा बुंदेलखंड व पूर्वाचल के गठन का प्रस्ताव कांग्रेस विधायकों द्वारा पहले भी लाया जा चुका है, लेकिन तब बसपा की ओर से कोई पहल नहीं की गई। 
मुलामय सिंह के सबसे ताकतवर साथी रहे बेनी प्रसाद वर्मा, रसीद मसूद, राजब बर तथा मायावती के साथी पी.एल. पुनिया, कांग्रेस के प्रमुख योद्धा बनकर उभरे है। इनके साथ ही कांग्रेस के स्टार प्राचरकों में डा0 रीता बहुगुणा जोशी, प्रमोद तिवारी, सलमान खुर्शीद, सलीम शेरवानी की मौजूदगी के बीच प्रियंका गांधी भी राहुल की मुहिम को गति देने के लिऐ प्रचार की कमान संभालने के साथ भोजपुरी फिल्मों की स्टार काजल निषाद को गोरखपुर से टिकिट दी है  तो गाविंदा, संजय दत्त, राजबब्बर, रजामुराद, मुजफ्फर अली, नगमा को प्रचार अभियान में उतारा है । अन्य दलों से कांग्रेस को सबसे आगे ले जाने की राह दिखाती है। सर्वेक्षण में कांग्रेस उ ार प्रदेश  मे 2०12 के चुनाव में अच्छी सीटें जीतती नजर आती है। 
प्रदेश की नम्बर दो पार्टी का तमंगा हासिल करने वाली समाजवादी पार्टी के लिये उ ार प्रदेश में सबकुछ अब ठीक ठाक नजर नही आ रहा है। सपा सुप्रीमों मुलामय सिंह यादव ने पहली बार विधानसभा चुनाव तैयारियॉ काफी पहले से शुरू कर दी। जन आन्दोलनों के साथ टिकटों की घोषणा पहले करकें बाजी मारने की जो चाल चली वह उल्टी पड़ती नजर आ रही है। इसकी बानगी सुलतानपुर जनपद के लम्बुआ विधानसभा सीट पर घोषिण उम्मीदवार का नाम आठवी बार बदल जाने के कारण जाना जा सकता है। है।प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश यादव ने पार्टी में भितरघातीयो पर नजर रखने के लिऐ जासूसो की सेवा लेकर जता दिया है कि पार्टी सबसे पीले है।।टिकटों को लेकर समाजवादी पार्टी में पारिवारिक कलह  अब पार्टी सांसद बाल कुमार पटेल (मिर्जापुर) और आरके सिंह पटेल (बांदा) के बीच प्रतिष्ठा की लड़ाई बन गयी हैं। इस बार विधानसभा चुनाव के लिए चित्रकूट से बालकुमार ने भतीजे वीर सिंह पटेल (ददुआ के पुत्र) को आगे किया था। वीर सिंह जिला पंचायत अध्यक्ष भी रह चुके हैं। प्रतापगढ़ के पट्टी क्षेत्र से बालकुमार ने बेटे राम सिंह के लिए टिकट की मांग की थी। सपा ने दोनों का टिकट फाइनल भी कर दिया था। एक हफ्ते पहले सपा ने चित्रकूट का टिकट संशोधित करते हुए सुनील को प्रत्याशी बना दिया और वीर सिंह को पट्टी का टिकट पकड़ा दिया गया। बालकुमार खेमे ने सपा के इस फैसले को व्यक्तिगत हमले के रूप में लेते हुए विरोध प्रदर्शन शुरू किया तो बीर सिंह को टिकिट मिल गयी । 
टिकटों कें बटवारे की महाभारत ने समाजवादी पार्टी के कई क्षत्रपों को सपा से नाता तोडऩे को विवश कर दिया। सर्वाधिक विद्रोह की स्थिति इटावा,ऐटा, मैनपुरी, तथा सुलतानपुर में देखने को मिली है। सपा सुप्रीमों ने 2०12 के चुनावी जंग जीतने कें लिये कमान अपने बेटे अखिलेश सिंह यादव के हाथों में सौप कर उ ाराधिकारी की घोषणा कर दी है। आन्दोलनों और क्रांतिरथ के पहुॅचने पर जुटी भीड़ अगर वोटों में त दील हो जाती है तो समाजवादी पार्टी को प्रदेश की स ाा में लौटने का सपना पूरा होने में देर नही लगेगी। सपा जातिगत समीकरणों के बल पर 2०12 के चुनाव जीतने की जोर अजमाईस में नाराज आजम खॉ को पार्टी में वापिस लाके छिटकते मुस्लिम आधार को जोडऩे की कोशिश कर रही है। लेकिन आजम खान के आने से पश्चिमी उ ार प्रदेश के सबसे ताकतवर मुस्लिम नेता रसीद मसूद के विद्रोह के साथ ही पूर्वी उ ार प्रदेश में पीस पार्टी तथा मुस्लिम उल्लेमा कांउसिल ने खतरे की घंटी बजा दी है। सपा के पास अपन ेक्षत्रपों के रूप में स्टार प्रचारकों में शिवपाल सिंह यादव तथा राजा भईया के अलावा और कद्दावर नेता के न होने के कारण परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। यादव मुस्लिम गठजोड़ के बल पर तीन बार स ाा हासिल करने वाले मुलायम सिंह यादव के लिये 2०12 का चुनाव बहुत महत्वपूर्ण है। नेता प्रतिपक्ष शिवपाल सिंह यादव ने प्रदेश के बदतर हालात के लिए कांग्रेस तथा बसपा को जिम्मेदार मानते हुए दोनों दलों के नेताओं पर करारे प्रहार करते रहे है। राहुल गांधी को राजनीति में अनाड़ी बताते हुए कहा कि राहुल और उनकी मां सोनिया गांधी इतने शक्तिशाली हैं तो अमेठी-रायबरेलीका विकास करा ही सकते है। राहुल का विकास का वादा सिर्फ चुनावी स्टंट है। राहुल गांधी द्वारा सपा सरकार में विकास न होने की बात कहे जाने पर यादव ने कहा कि सपा सरकार के दौरान विकास दर सात फीसदी रही। केंद्र सरकार ने धन नहीं दिया। सरकार ने अपना राजस्व बढ़ाकर विकास कार्यो में धन की कमी नहीं आने दी। कन्या विद्या धन, बेरोजगार भ ाा तथा अन्य जनहितकारी योजनाएं शुरू करके गरीबों का भला किया। नेता प्रतिपक्ष यादव ने कहा कि जब उनकी दी हुई तहरीर पर एफआइआर दर्ज नहीं हुई तो आम जनता की हालत क्या होगी। इस बार मुलामय सिंह के साथी रहे बेनी प्रसाद वर्मा, राजब बर, अमर सिंह और रसीद मसूद उनके साथ नही है। छोटे लोहिया जानेश्वर मिश्र भी इस दुनिया से विदा हो चुके है। इस लिऐ इस संकट काल में अकेले अपने दम पर चुनावी रण की वैतरणी पार करने की चुनौती पहाड़ की तरह उनके सामने खड़ी है। देखना है कि सपा इस चुनौती को कैसे मुकाबला करती है। मुलायम सिंह यादव ने दावा किया है कि समाजवादी पार्टी की सरकार बनना तय है। सर्वेक्षण में समाजवादी पार्टी की सीटें अपने दम पर स ाा हासिल करती नजर  नहीं आती है। चर्तुकोणीय मुकाबले में जनता किसे सिंघासन पर बिठाती है यह तो वोटर ही तय करेगें। उधार के नेताओं से चुनावी जंग जीतने के लिये मध्यप्रदेश से उ ार प्रदेश की कमान सम्भालने वाली उमा भारती के सहारे नय्या पार लगाने की कवायद कर रही भारतीय जनता पार्टी की विश्वसियनियता का सबसे बड़ा सवाल बना हुआ है। 51 सीटें लेकर तीसरे पायदान पर रहने वाली भापा को चौथे पायदान पर माना जा रहा है। जनस्वाभिमान यात्राऐं निकालकर कलराज मिश्र और राजनाथ सिंह के सहारे क्षत्रीय तथा ब्राहा्रण मतों के साथ अल्पसंख्यक आरक्षण के कारण पिछडो के हको पर डाका बता कर मुकाबले के आने को तैयार भाजपा मे चिन्तन और मथंन की दौर ही चल रहा है। मुद्दे और झण्डे गायब है। भाजपा कभी राम मन्दिर का राग अलापती है तो कभी छोड़ती है। कभी गंगा का नारा देती है तो कभी अन्ना के साथ खड़ी होती है। तो कभी अन्ना से किनारा करती है। माया के सौ घोटाले की पुस्तिका पेश करती है तो कभी लगता है कि माया को कम सीटें मिली तो भाजपा सहारा देगी। इन द्वंदों के चलते भाजपा की स्थिति उ ार प्रदेश में धोबी के गधे की तरह हो गयी जो घर का ना रहा ना ही घाट का । इन हालातों में 2०12 के चुनाव में भाजपा जब तक अपनी नीति और रीति साफ नही रखेगी तब तक रण विजय का सपना सार्थक होना कठिन ही है। भाजपा के सामने कांग्रेस ने मुस्लिम आरक्षण का एक ऐसा मुद्दा फेक दिया है जिसको लपक कर भाजपा चुनावी वैतरणी पार कर सकती है। क्षत्रपों के नाम पर भाजपाई सेना में कलराज मिश्र, विनय कटियार, ओम प्रकाश सिंह, मुख्तार अ बास नकवी, मुरली मनोहर जोशी, राजनाथ सिंह, उमा भारती जैसे तेज तररार अनेक चेहरे है। जो भीड़ जुटाने के साथ-साथ अपनी वाणी से जनमत को प्रभावित कर सकते है। भारतीय जनता पार्टी की वरिष्ठ नेता उमा भारती कहती है कि उ ार प्रदेश का चुनाव विकास और सुशासन पर लड़ा जाना चाहिए । मै गरीब के घर की बेटी हूॅ। मैं गाय और गरीब की इ'जत करती हॅू। मेरा अपमान गरीब का अपमान है। कृपा कर विरोधी मुझे गाली चुनाव के बाद दें। इस समय उ ार प्रदेश की जनता को मुद्दों से न भटकाए।यूपी का ये चुनाव विकास के मुद्दों पर हो, विकास की बात हो, विकास पर राजनीति हो। जो उ ार प्रदेश की जनता के लिए सबसे अहम् है। मुद्दाविहीन चुनाव विकास के मुद्दों पर हो भाजपा हर हाल मे इसी कोशिश में लगी है सरकार की नाक के नीचे हुए घोटाले की अनदेखी में बसपा,सपा, कांग्रेस, को घसीटने से स्थिति भी भारतीय जनता पार्टी के लिए बेहतर होगी। आक्रमक चुनावी अभियान के दम पर उमा भारती ने सुस्त पड़ी भाजपा को नया रंग दिया है । राजनैतिक जमीन पर यूपी में पंचकोटि मुकाबला का सबब बन रहे छोटे दलों में अमर सिंह की लोकमंच , डा० आयूब की पीस पार्टी, अनुप्रिया पटेल का अपनादल, राजा बन्देला की बुन्देलखंड कांग्रेस, स्वदेश कोरी का हमारा दल, उदित राज की इण्डियन जस्टिस पार्टी, कौमी एकता दल, परिवर्तन मोर्चा, महानदल, विश्वदेवा की महाभारत पार्टी सहित छोटे-छोटे अनेक दलों ने मुकाबला रोचक बना दिया है । 
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पूर्वांचल की राजनीति के उलझे पेंच 
देश की बागडोर सम्हाली लेकिन नहीं बदल सके पूर्वांचल की तस्वीर
पूर्वांचल शब्द जितना प्यारा लगता है उतने ही नाजुक है । की राजनीति पर अगर गौर से देखें तो  यह इलाका आर्थिक व औद्योगिक पिछड़ेपन से अभी भी जूझ रहा है। छोटी जोत, खेतिहर मजदूरों की बेशुमार तादाद, पूंजी का संकट, कल कारखानों की समस्या, बाढ़ तथा बीमारी ने यहां के लोगों के जीवन में दुख ही दिए। तरक्की किसे कहते हैं यह इस इलाके के लोग नहीं जानते। पूर्वांचल की कृषि प्रधान भूमि इतना अन्न तो उपजा ही लेती है कि उसके बाशिंदों को भरपेट भोजन मिल सकता था लेकिन सामंती और जागीरदारी तौर तरीकों ने अमीरी और गरीबी की खाई इस कदर बढ़ा दी कि दो जून की रोटी के लिए असंख्य लोगों को पलायन करना पड़ा। कमाने के लिए यूपी और बिहार से लाखों मजदूर पहले बैंकाक, रंगून, कलकत्ता, बम्बई, अहमदाबाद और सूरत जाते थे। अब पंजाब, हरियाणा, नोएडा, गाजियाबाद, गुडग़ांव की ओर भी उन्होंने रुख किया है। सदियों से विस्थापन का दर्द यहां के वाशिन्दों को अन्दर से तोड़ चुका है । जीवन में अंधियारा ही अंधियारा है । मुम्बई में राज ठाकरे और बाल ठाकरे की अलगाववादी मानसिकता का शिकार बना तो साल दर साल आने वाली बाढ़ और इंसेफ्लाइटिस जैसी बीमारी ने इस इलाके को प्राकृतिक आपदा के मुहाने पर लाकर खड़ा कर दिया है। केंद्र और रा'य सरकारों का रवैया निहायत गैर जिम्मेदाराना है। प्रदेश की तमाम पार्टियां इसके लिए समान रूप से जिम्मेदार हैं। किसी ने पूर्वी उत्तर प्रदेश के विकास की पहल नहीं की। न तो यहां उद्योग धंधे लग सके न ही स्थानीय स्तर पर रोजगार के बेहतर अवसर जुटाये जा सके । हाँ चीनी मिलो को बेचकर बसपा ने रीढ़ तोड़ दी है । 
शुरुआत कांग्रेस से ही करें। नेहरू जी रहे हों या फि र श्रीमती इदिरा गांधी इनके कार्यकाल में पूर्वांचल का अपेक्षित विकास न हो सका। हां राजीव गांधी ने जरूर पुर्वाचल को कुछ दिया। गोरखपुर में खाद कारखाना और एन ई रेलवे के मुख्यालय को छोड़ दें तो समूचे इलाके में नये उद्योग धंधे न लग सके। वाराणसी व इलाहाबाद कभी देश का गौरव समझे जाते थे विगत कई दशकों से इनकी विकास यात्रा ठप्प है। न बीएचयू का गौरव कायम रह सका न ही इलाहाबाद यूनिवर्सिटी का जो पूरब का आक्सफोर्ड समझा जाता था।  इस इलाके ने डाक्टर राम मनोहर लोहिया, डाक्टर सम्पूर्णानंद, वीपी सिंह, चंद्रशेखर, राजनारायण, पंडित कमलापति त्रिपाठी, वीर बहादुर सिंह, राजमंगल पाण्डे, बाबू गेंदा सिंह, शिब्बन लाल सक्सेना सरीखे जननायक दिए लेकिन विकास के नये मानक न गढ़ सका। भारतीय जनता पार्टी, वामपंथी दलों खासकर भाकपा, पुरानी सोशलिस्ट पार्टी और सपा व बसपा के राजनीतिक उत्थान के दौर में पूर्वांचल ने कई नेता दिए। कांग्रेस के पुराने नेताओं में चंद्रशेखर और वीपी सिंह का नाम शुमार किया जा सकता है। जो देश के प्रधान मंत्री तक बने। यह अलग बात है कि इन्होंने अन्य दलों के नेतृत्व को सम्हालते हुए देश की सर्वो'च सत्ता हासिल की लेकिन इसके बावजूद पूर्वी उत्तर प्रदेश के विकास को नयी दिशा नहीं मिल सकी। समाजवादी पार्टी के पूर्व महासचिव और लोकमंच के संस्थापक अमर सिंह खुद को पुरबिया कहते हुए थकते नहीं हैं। वे पिछले कई महीनों से पूर्वांचल के पिछड़ेपन को मुद्दा बनाकर राजनीति कर रहे हैं। अगर उनकी यह राजनीति रंग लायी तो पूर्वांचल की दशा सुधर सकती है। वैसे लाख टके का सवाल यह भी है कि जब अमर सिंह सपा के महासचिव थे और प्रदेश क्या देश के ताकतवर नेताओं में उनकी गिनती होती थी तब उन्हें पूर्वांचल के पिछड़े पन की याद क्यों नहीं आयी। भारतीय जनता पार्टी के कई धुरंधर नेता पूर्वांचल से संबंध रखते हैं। पूर्व प्रदेश अध्यक्ष डा0 रमापति राम त्रिपाठी और मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष सूर्य प्रताप शाही पूर्वांचल से ही आते हैं। योगी आदित्यनाथ भाजपा के प्रमुख नेताओं में एक रहे हैं और उनका गोरखपुर सहित पूर्वी उत्तर प्रदेश के कई जिलों में खासा असर है। इनका अपना संगठन हिन्दु युवा वाहिनी इनके इशारे पर कुछ भी करने को हमेशा तैयार रहता है। योगी आदित्यनाथ ने हमेशा प्रदेश नेतृत्व को ठेंगे पर रखा। पूर्वी उत्तर प्रदेश की प्रमुख समस्या के रूप में उभर कर सामने आया इंसेफ्लाइटिस उनकी सामाजिक गतिविधियों का प्रमुख हिस्सा रहा है। उनके दबाव में ही केन्द्र सरकार तथा स्वाथ्य मंत्रालय ने इस रोग की रोकथाम के लिए इस इलाके में पहल की। सपा और बसपा दोनों ने अपने कार्यकाल में पूर्वांचल का इस्तेमाल सिर्फ अपनी राजनैतिक ताकत बढ़ाने के लिए ही किया। इस इलाके के आर्थिक एवं औद्योगिक विकास की तरफ न तो कभी मुलायम सिंह यादव का ध्यान गया न ही मायावती का। भाजपा के वरिष्ठ नेताओं राजनाथ सिंह, कल्याण सिंह, कलराज मिश्र, ओमप्रकाश सिंह, विनय कटियार आदि ने भी कभी पूर्वांचल के समुचित विकास पर नहीं बल दिया। इस चुनाव में एक नयी बात यह देखने को मिली जहां चुनाव की घोषणा से पहले ही मुख्यमंत्री मायावती द्वारा प्रदेश को चार हिस्सों में बांटे जाने का प्रस्ताव विधान सभा द्वारा पारित कराकर केंद्र को भेजे जाने की पूर्वांचल के लोगों ने सराहना की वहीं चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस के महासचिव राहुल गांधी नें पूर्वी उत्तर प्रदेश के पिछड़ेपन के लिए पूर्ववर्ती सरकारों के कामकाज को जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने अपनी जनसभाओं में बार-बार यह कहा कि उत्तर प्रदेश से रोजगार की तलाश में लोगों को मुम्बई और दिल्ली सहित देश के अन्य इलाकों में जाना पड़ता है। उन्हें अगर स्थानीय स्तर पर ही रोजगार मुहैय्या करा दिया जाय तो इस इलाके की तस्वीर बदल सकती है। पूर्वांचल की तस्वीर तब पहली बार बदलती हुई दिखाई दी थी जब बीर बहादुर सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे। उनके कार्यकाल में पूर्वी उत्तर प्रदेश खासकर गोरखपुर नें खासी तरक्की की थी। इसी प्रकार देवरिया के विकास को नयी दिशा तब मिली थी जब विभिन्न सरकारों में राजमंगल पाण्डेय कैबिनेट मंत्री बने थे। मौजूदा बसपा सरकार में सुखदेव राजभर के विधान सभा अध्यक्ष और स्वामीप्रसाद मौर्य के बसपा प्रदेश अध्यक्ष होने के बावजूद पूर्वांचल का अपेक्षित विकास न हो सका। जाति और धर्म की छौक लगाकर दो दशको से क्षेत्रीय दल और उनके परिवार जन तो कुबेरपति बने लेकिन उन्हें जिताने वाली जनता और गरीब होती चली गयी । 


 


बहुमत के साथ होगी कांग्रेस की वापसी-सुनील वर्मा
उत्तर प्रदेश का दर्द बड़ा गहरा है । देश को अनेक प्रधानमंत्री देने वाला यह क्षेत्र जातिवादी राजनीति के भवर में डूब रहा है । गुण्डा और लुटेरों ने लोकतंत्र को यूपी में मजाक बना दिया है । कभी सांपनाथ तो नागनाथ का खेल दो दशकों से उत्तर प्रदेश में चल रहा है । राहुल गांधी ने इस खेल पर विराम लगाने के लिए तीन वर्षो में कड़ी मेहनत की है । गरीब के घर में बैठकर बैशाख जेठ की तपती धूप और अन्धी लू से रूबरू होकर गाँव और गरीबों के बदलाव की एक नई मुहिम छेड़ी है । जिसके कारण पूरे सूबे में जातिवादी राजनीति उलट गयी है । विकास की बात पर रीझे मतदाता 2०12 में नया इतिहास रचने जा रहे है । हल्काई कहते है जागत रह्त भय्या, वाकई में यूपी को घीसू -माधव की तरह जातिवदी नशे से जागने का वक्त आ गया है । लोग जाग चुके है । बदलाव के लिए निकल पड़े है राहुल गाँधी के साथ जिसका परिणाम नया इतिहास रचेगा यूपी में कांग्रेस की बहुमत के साथ सरकार होगी। यह बात कांगे्रस के वरिष्ठ नेता सुनील वर्मा ने लोकमाया से रूबरू होते कही । वर्मा को भरोसा है कि उत्तर प्रदेश हर गाँव हर घर सपा और बसपा औड़म-बौड़म राज से निजात चाहता है । एक लुटेरा है तो दूसरा डाकू उसे किसी भी हालत में बदलना है । 



यूपी में परिवर्तन होगा - उदित राज
केतने गोली खाइके मरिगै
केतने दामन फांसी चढिग़ै
कितने पीसत होइहें जेल मे चकरिया
लोकगीत को कोट करते हुये इण्डियन जस्टिस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष उदित राज कहते है कि यूपी में बदलाव का वक्त आ गया है । जिस मायावती को बड़े नाज के साथ सत्ता के सिंहासन पर बैठाया था । उसने लूट का ऐसा जाल बुना कि गरीब का हल बख्खर तक निलाम हो गया । दौलत की बेटी से दलित कन्नी काट चुका है । इस चुनाव में सबक सिखाके रहेगा । अपने स्वार्थो के लिये बसपा ने हमेशा अपना रंग और ढंग बदला है । अब जनता किसी भी हालत में झांसे में नही आने वाली है। 



छोटे राज्य के बिना विकास नही - राजा बुन्देला
बुन्देलखंड कांग्रेस पहली बार चुनावी संग्राम में उतरी है। उसके पास संसाधन भले ही कम हो लेकिन इच्छा शक्ति बहुत है । जिसके दम पर इस चुनाव में निर्णायक भूमिका अदा करेंगे । यह बात बुन्देलखंड कांग्रेस के अध्यक्ष राजा बुन्देला ने लोकमाया से बात करते हुये कही । श्री बुन्देला को भरोसा है कि बुन्देलखंड की आवाम इस बार राज्य के नाम पर उनकी पार्टी को वोट देगी । बुन्देलखंड राज्य के लिये त्याग और बलिदान का वक्त है । अभी नही तो कभी नही के नारे के साथ बुन्देलखंड के लोगों को उनके अपने राज्य को दिलाने के लिये वर्षो से चल रहे संघर्ष को एक मुकाम पर ले जाने के लिये चुनावी जंग में उतरे है ।  छोटे राज्यों के बिना देश के विकास का सपना पूरा नही होने वाला है ।


यह आलेख बिना अनुमति प्रकाशन प्रतिबंधित है।.................................................................................................................................................



यह स्टोरी 2012में कई पत्र और पत्रिकाओं में प्रमुखता से प्रकाशित हुई थी,दस्तावेज-2012 के तहत तत्कालीन समय के राजनैतिक माहौल को समझाने के उद्देश्य  से पुनः प्रकाशित कर रहे है।


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लेखक का पता


सुरेन्द्र अग्निहोत्री
ए-305, ओ.सी.आर.
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मो0ः 9415508695,8787093085



 


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