विश्वविद्यालयों को अपने दीक्षांत समारोहों के समय भारतीय प्रकृति के परिधान पर विचार किये जाने की आवश्यकता-हृदय नारायण दीक्षित

लखनऊ ।   उत्तर प्रदेश विधान सभा के अध्यक्ष, श्री ने कहा कि विश्वविद्यालयों को अपने दीक्षांत समारोहों के समय भारतीय प्रकृति के परिधान पर विचार किये जाने की आवश्यकता है। श्री दीक्षित ने यह विचार इंटीग्रल यूनिवर्सिटी के दीक्षांत समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में भाषण के दौरान व्यक्त किया।
उन्होंने कहा कि उच्च शैक्षणिक डिग्री प्राप्त करने के उपरान्त छात्रों को आम आदमी के सुख-दुख में शामिल होना चाहिए। उच्च शिक्षा प्राप्त लोग बहुधा व्यस्तताओं के कारण आम आदमी की कठिनाइयों के प्रति दूर रहते है।
श्री दीक्षित ने विश्वविद्यालयों में ज्ञान-विज्ञान की शिक्षा के बाद दर्शन शास्त्र की पढ़ाई कराये जाने की आवयकता पर बल दिया। दर्शन के ही माध्यम से भारतीय ज्ञान सभ्यता एवं संस्कृति की छात्रों को जानकारी हो पाती है। उन्होंने कहा कि इतिहास में औरंगजेब के भाई श्री दाराशिकोह ने उपनिषदों का फारसी में अनुवाद कराया था। यूरोपीय विद्वानों ने भी भारतीय दर्शन को अपनी-अपनी भाषाओं में अनुवाद किया था। इसी कारण उपनिषदों का दर्शन यूरोप सहित दुनिया के अन्य देशों में लोकप्रिय हुआ।
श्री दीक्षित ने छात्रों को सम्बोधित करते हुए कहा कि विज्ञान सहित अन्य विषयों में शोधकर्ताओं की संख्या बढ़ी है। पी0एच0डी0, धारक विद्वानों की संख्या बहुत तेज रफ्तार से बढ़ी है। उच्च शिक्षा के अनेको संस्थान देश में स्थापित हुए है। उनमें जो आउटपुट मिलना चाहिए, वह नहीं मिल पा रहा है। गुणवत्ता घटी है। संस्थानों काी गुणवत्ता बढ़ाने के विशेष प्रयास करने चाहिए। उत्कृष्ट मानव संसाधन का शोध जैसे विषयों में उपयोग किया जाना चाहिए जिससे शोध का लाभ आम आदमी के जीवन स्तर को सुधारने में मिल सके।
इस अवसर पर यूनिवर्सिटी के कुलाधिपति, प्रो0 सैयद वसीम अख्तर, कुलपति, प्रो0 अकील अहमद, प्रो0 गयोरूल हसन रिजवी एवं प्रो0 यश अयप्पन व पूर्व शिक्षा एवं संसदीय कार्यमंत्री, श्री अम्मार रिजवी के साथ अन्य गणमान्य लोग भी उपस्थित रहे।







 

 

 






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