कभी वर्ष भर सूखी रहने वाली बंडई नदी में अब लबालब भरा है पानी


ललितपुर जिले के मडावरा ब्लाक जो विगत 7-8 वर्षों (2003) से सूखा प्रभावित रहा है। इस इलाके के स्थाई जल स्त्रोत तथा बरसात के पानी को रोकने वाले नदी नालो को बाॅधने के लिए बुन्देलखण्ड सेवा संस्थान व समुदाय आधारित संगठन, मीडिया निरन्तर शासन प्रशासन से माॅग करता रहा हैं। 2003 से 2009 तक के सघन प्रयासो से वर्श 2010 में जिला प्रशासन ने बंडई नदी मे 8 बांध बनवाने का कार्य प्रारम्भ कर दिया है ताकि बरसात के जल को रोका जा सके।
 बडई नदी क्षेत्रीय नदी है जिसकी लम्बाई 15-20 कि0मी की है जो म0प्र0 के जंगलो से निकलकर उत्तर प्रदेष की सीमा के गाॅव जहाॅ बुन्देलखण्ड सेवा संस्थान कार्य करता है वहाॅ से निकलकर धसान नदी में मिल जाती है। बंडई नदी का बरसात का पूरा पानी धसान नदी में चला जाता है। धसान नदी का पानी बेतवा नदी में मिल जाता है और वेतवा का पानी यमुना नदी में, यमुना नदी का पानी गंगा में इलाहाबाद में मिल जाता है। यमुना व गंगा नदी का संगम इलाहाबाद में होता है।
मडावरा क्षेत्र कांे सूखा से बचाने के लिए बरसात के पानी को रोकने के लिए एक अभियान चलाया गया। अभियान में क्षेत्रीय समुदाय आधारित संगठन, चिनगारी संगठन व अन्य मजदूर संघ, स्वंय सहायता समूह , किसान संघ के साथ मिलकर बंडई नदी जिन्दा करो अभियान चलाया गया। अभियान में तत्कालीन आयुक्त झाॅसी मंडल शंकर अग्रवाल (आई0ए0एस) तत्कालीन राहत आयुक्त सुश्री रेणुका कुमार (आई0ए0एस) तथा मेग्सायसाय पुरूस्कार विजेता (तरूण भारतसंघ से ) जल पुरूश ी राजेन्द्र सिंह राणा ने भी जुलाई 2006 में अभियान में शामिल होकर सहयोग प्रदान किया । धौरी सागर से गिरार तक 8-10 जनसभाओ  को सबोधित करते हुये 20 किमी की पैदल जल यात्रा की गयी। स्वंय सेवी सगठन के अभियान को अभूतपूर्व जन समर्थन मिला शासन प्रशासन की नजरो में बडई नदी जिन्दा करो अभियान वरीयता मे आ गया। लखनऊ स्तर पर भी उ0प्र0 आपदा प्रबन्धन वर्किगं ग्रुप -प्रथम (सूखा से सम्बन्धित) की प्रमुख सचिव कृषि की अध्यक्षता में दिनाक 30.6.2006 को हुई बैठक में उ0्रप्र0 आपदा प्रबन्धन अधिनियम 2005 के प्राविधानो के अन्तर्गत सूखे की आपदा से निपटने के लिए कार्य योजना तैयार कर उ0्रप्र0 राज्य आपदा प्रबन्धन प्राधिकरण के समक्ष प्रस्तुत करने हेतु श्री षंकर अग्रवाल आयुक्त झासी मण्डल झासी के अध्यक्षता में त्रि- सदस्यीय आलेख्य समिति (क्तंजि ब्वउउपजजमम) गाठित की गई। समिति में मण्डलायुक्त झाॅसी - अध्यक्ष, मण्डलायुक्त,चित्रकूटधाम- सदस्य, राहत आयुक्त - सदस्य, उपरोक्त के अतिरिक्त अपर कृशि निदेषक(भूमि संरक्षण), निदेषक रिमोट सेन्सिगं के नामित प्रतिनिधि, अधीक्षण अभियन्ता लघु सिचाई, झाॅसी मण्डल,एंव मुख्य वन संरक्षक झासी भी नामित सदस्य बनाये गये।
अध्यक्ष द्वारा 02 अन्य अधिकारी/विषेशज्ञ नामित किये गये । उक्त समिति के सदस्य सचिव संयुक्त विकास आयुक्त झासी समिति के सहायतार्थ राजेन्द्र सिह जल विषेशज्ञ की सेवाये लेने को तय किया गया । इसी के साथ ही समिति के अध्यक्ष के निर्देषानुसार तत्कालीन अयुक्त झाॅसी मण्डल झाॅसी द्वारा बुन्देलखण्ड सेवा संस्थान के सचिव वासुदेव को सदस्य नामित किया गया। सदस्य बनने के बाद बुन्देलखण्ड सेवा संस्थान को सूखा से प्रभावित मडावरा क्षेत्र की सूचनाओ को षासन तक पहुचाने  का व कार्य योजना में शामिल कराने का सुनहरा अवसर मिल गया। बंडई नदी के जल को रोक कर इस क्षेत्र को सूखा से मुक्ति दिलाने की योजना बनने लगी। षासन में कई प्रस्ताव लम्बित रहे समय गुजरता गया। वर्श 2006-07 में कई अधिकारियो का स्थानान्तरण हो गया किन्तु संस्थान का अभियान चलता रहा।
7 मई 2008 को मजदूर दिवस सम्मेलन मडावरा मंें क्षेत्रीय समस्याओ का ज्ञापन देते हुये बंडई नदी को जिन्दा करने का पुनः मुददा उठाया गया।
17 अगस्त वर्श 2009 में एक विषाल सम्मेलन करके पुनः मडावरा ललितपुर में ज्ञापन दिया गया । उस समय सूखे का भयंकर प्रकोप था। बंडई नदी के जल को संरक्षित करने की प्रबल मांग शासन से की गई । बंडई नदी पर बांध बनाये जाने का आष्वासन दिया गया । तत्कालीन जिलाधिकारी रणवीर प्रसाद ने इस मांग को बडी गंभीरता के साथ सुना और षासन को प्रस्ताव भेजा सूखे से प्रभावित बुन्देलखण्ड के लिये राज्य सरकार केन्द्र सरकार से भी सहायता पाने के लिए कोषिष  कर रही थी। इसी दौरान केन्द्र सरकार ने बुन्देलखण्ड पैकेज की घोषणा कर दी। उसी समय जिलाधिकारी द्वारा क्षेत्रीय लोगों का दिये गये ज्ञापन के आधार पर खुद बंडई नदी का निरीक्षण किया और तकनीकि सलाह के साथ बुन्देलखण्ड पैकेज के अन्र्तगत बंडई नदी में  कई जगह बांध बनाने का प्रस्ताव बनाकर शासन को दिया।वर्ष 2010 में अब बंडई नदी में 8 बांध बनना प्रारम्भ हो गया है।
बंडई नदी में बांध बनने के बाद पानी रूकने लगा है। बंडई नदी में बरसात के जल को रोककर अब गाॅव वालो को जहाॅ एक ओर सिंचाई जल मिलने लगा है। वहीं अब  वाटर लेविल ऊपर आ गया है। पेयजल संकट समाप्त हो रहा है। वही अब जंगल एंव खेतो में हरियाली आयेगी। फसल उत्पादन में वृद्धि होगी जडी बूटियो में वृद्धि होगी । अब इस क्षेत्र में पिछले वर्शों की भांति जंगली जानवरों की प्यास से मौत नही होगी। अब पशुपालन में वृद्धि होगी, भूख एंव कुपोषण कम होगा गरीबी दूर होगी क्षेत्र का गरीब आदिवासी किसान अपने खेतो में अनाज फल सब्जी उगा सकेगा लोगो का खेती के प्रति रूझान बढेगा वे पटटेदार जिन्हे संस्थान की ओर से कब्जा दिलाया गया है वे सैकडो पटटेदार खेती से जुडकर मजदूर से मालिक बन सकेगा अपने खेत में खुद काम करेगा । मनरेगा  द्वारा  चलायी  जा  रही जल जंगल जमीन संरक्षण की योजनाऐ सफल होगी स्वंय सहायता समूह सक्रिय होगे स्वरोजगार कर सकेगें पलायन रूकेगा बच्चो को अपने गाॅव में रहकर स्कूल की सभी सुविधाऐ मिल सकेगी बंडई नदी इस क्षेत्र के लोगो के लिए जीवनदायी नदी सिद्ध हो रही है।




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यह स्टोरी 2012 में कई पत्र और पत्रिकाओं में प्रमुखता से प्रकाशित हुई थी,दस्तावेज-2012 के तहत तत्कालीन समय के राजनैतिक माहौल को समझाने के उद्देश्य  से पुनः प्रकाशित कर रहे है।


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सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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