अर्नब गोस्वामी पर हमला करने वाले का नारको टेस्ट किया जाना चाहिए

देश में किसी मीडियाकर्मी पर हमला दुर्भाग्यपूर्ण है और सरकार को हमलावरों पर कड़ी कार्यवाई करनी चाहिये। अर्नब गोस्वामी पर हमला भी निंदनीय है। अर्नब गोस्वामी को विशिष्ट श्रेणी की सुरक्षा प्राप्त है। हमला करने के पीछे कौन लोग है। वह वाकई यूथ कांग्रेस का सदस्य है या फिर किसी साजिश का हिस्सा है। हमला करने वाले का नारको टेस्ट किया जाना चाहिए। भाजपा के और नजदीक आने के लिए अर्नब  गोस्वामी का कहीं यह प्रायोजित हमला तो नही क्योकि हमले के चरित्र से लगता है कि दोनों संभावनाएं हो सकती है। पहला यह नौजवान कांग्रेस के नेतृत्व के निगाहों में चढ़ने के लिए ऐसी हरकत कर सकता हैं और दूसरा प्रायोजित हमला कराकर अर्नब भी  बीजेपी के और नजदीक पहुँचना चाहते है। जिस तरह से अर्नब पत्रकारिता कर रहे हैं उसे उचित नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि जनता महाभारत की धृतराष्ट्र नही है जो मीडिया के किसी भी आचरण पर आंख बंद करके पुत्र मोह की तरह समर्थन करते रहे। अर्नब या किसी भी मीडिया पर हमला दुखद है और देश भर में कांग्रेस सरकारों में और गैर कांग्रेसी सरकारों और वर्तमान में भाजपा सरकार में भी पत्रकारों पर हमले हो रहे हैं। हमले को मीडिया कर्मी अपने चश्मे से देखते हैं इसीलिए किसी भी मीडिया कर्मी पर हुए हमले पर सभी राजनीतिक दल एक साथ मिलकर कार्रवाई करने की मांग नही करते।


मीडिया कर्मी पर जब हमला होता है तो पहले या जानकारी की जाती कि मीडिया कर्मी कौन है और उसका नाम आते ही पता चल जाता है कि वह किस पक्ष का समर्थन करता है और समर्थन के हिसाब से ही राजनीतिक दलों की प्रतिक्रिया शुरू हो जाती है। मीडिया ने जनता का विश्वास खोया है लेकिन जनता की मजबूरी है कि बुरे हाल में भी सूचना का तंत्र मीडिया ही है। समय सबका हिसाब करता है। प्रिंट मीडिया की जो स्थिति है, आने वाले दिनों में उसका अस्तित्व ही खतरे में पड़ सकता है। आज बड़े-बड़े प्रिंट मीडिया हो 8-10 पन्ने का अखबार निकालने के लिए मजबूर हो गए हैं जो कल तक 30-40 पेज का अखबार पाठकों को देते थे। स्थिति स्पष्ट है कि विज्ञापन नहीं मिल रहा है इसलिए पन्ने कम हो गए हैं लेकिन लेकिन बड़े प्रिंट मीडिया के मालिक इसके जिम्मेदार हैं जब छोटे मझोले प्रिंट मीडिया पर सरकार ने हमला किया तो जितने बड़े मीडिया हाउस थे, छोटे मझोले अखबारों के खिलाफ खड़े होकर उनके विरोध में होकर सरकार पर दवाब बनवा कर नियम बनवा दिए जिसका परिणाम यह रहा कि देशभर में 20 लाख से अधिक छोटे व मझोले प्रिंट मीडिया के माध्यम से रोजी रोटी कमाने वाले पत्रकारों के हाथों में कटोरा आ गया। छोटे-छोटे मीडिया कर्मियों के हाथ में कटोरा पहुँचवाने के जिम्मेदार बड़े बड़े प्रिंट मीडिया हाउस हैं। समय बदला हैै, कोरोना ने यह अवसर दिया।


इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने भी वही आचरण किया जो बड़े प्रिंट मीडिया ने छोटे प्रिंट मीडिया के साथ व्यवहार किया था। चैनल ने सुनियोजित तरीके से ऐसा माहौल बना दिया कि अखबारों से कोरोना फैल सकता है फिर इसका प्रभाव यह रहा कि प्रिंट मीडिया का प्रसार लगभग एक चौथाई रह गया है। समय इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का भी हिसाब करेगा। बढ़ते सोशल मीडिया का प्रभाव दलालों की तरह कार्य कर रहे कुछ बड़े-बड़े तथाकथित इलेक्ट्रॉनिक चैनलों के मालिक भी छोटे एवं बड़े अखबारों की तरह आने वाले दिनों में सोशल मीडिया के प्रभाव से हाशिए पर होंगे। अर्नब गोस्वामी पर हमले से जिस तरह से केवल एक पार्टी की प्रतिक्रिया आ रही है उससे लगता है कि पत्रकारिता कितनी निष्पक्ष थी। स्थितियां समाज के अन्य प्रमुख स्तंभों कार्यपालिका न्यायपालिका विधायिका की तरह मीडिया की भी विश्वसनीयता जनता में गिरी है। जनता के दिमाग में यह बात बैठ गई है कि मीडिया विशेषकर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया एजेंडों पर काम करती है इसलिए आने वाले दिनों में एजेंडा चलाने वाले सभी मीडिया कर्मियों को सावधान हो जाना चाहिए क्योंकि उनके आचरण व्यवहार से कभी भी आम नागरिक भी हमला कर सकता है। मीडिया कर्मी किसी भी मीडिया में हो चाहे वह प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक, सोशल, वेब या किसी से जुड़े हो अपनी निष्पक्षता को बनाए रखें तभी वह सुरक्षित है।


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