बाॅध और जलाशयों के निर्माण से लेकर सड़क निर्माण तथा उद्योगों के नाम पर भूमि स्वामीयों को भूमि हीन करने का सिलसिला


बाॅध और जलाशयों के निर्माण से लेकर सड़क निर्माण तथा उद्योगों के नाम पर भूमि स्वामीयों को भूमि हीन करने का सिलसिला पूरे देष में अनवरत चल रहा है आवास विकास परिषद और विकास प्राधिकरण नये अंग्रेजी जमीदारों के रूप में जबरन छल-प्रपंच से भूमि अधिग्रहण कम दाम में लेकर अधिक दाम में बेचने का कार्य कर रहे है। सवाल यह है कि राज्य की भूमि व्यापारीयों की तरह अधिक मुनाफाखोरी की हो जाए तो फिर जनता के सामने कौन सा रास्ता शेष बचता है इसका चिन्तन जरूरी है।ललितपुर के 200 से अधिक गाव बाॅध और जलाशयों तथा उद्योग के निर्माण हेतु जल समाधि ले चुके है।उन्हे मातम भी नहीं मनाने दिया गया। जल, जंगल और जमीन के मसले को लेकर भूमिहीन आदिवासी और अनुसूचित जाति के लोग जहां राजधानी कूच करने को आतुर हैं, वहीं इससे सरकार की धड़कनें तेज हो गई है। हालांकि समझौता वार्ता की सरकारी पेशकश को सत्याग्रहियों ने मंजूर कर लिया है। उनके ढाई सौ से अधिक प्रतिनिधि राजधानी दिल्ली में होने वाली वार्ता में शामिल होने को राजी हो गए है। इससे माना जा रहा है कि दोनों पक्षों के बीच कई मुद्दों पर सैद्धांतिक सहमति बन चुकी है। ग्रामीण विकास के नाम पर दर्जन बार ठगे जा चुके भूमिहीन लोग आर पार की लडाई के लिऐ तैयार है। आंदोलन को गति दे रहे एकता परिषद के नेताओं के मांग-पत्र में यही प्रमुख मांग है। राष्ट्रीय भूमि सुधार परिषद के पुनर्गठन की मांग पर भी सहमति होना तय है। परिषद में मुख्यमंत्रियों की सक्रिय सहभागिता को जरूरी बताया जा रहा है। एकता परिषद के नेता पीवी राजगोपाल ने सरकार की पहल का स्वागत किया है। उन्हें यकीन है कि सरकार मांगों को स्वीकारने में अब देरी नहीं करेगी क्योंकि पहले ही बहुत देर हो चुकी है।एकता परिषद द्वारा निकाली जा रही इस यात्रा में देशभर के कई प्रांतों के आदिवासी सहभागिता कर रहे हैं। पदयात्रा विभिन्न संस्कृतियों और भाषाओं का अद्भुत काफिला बन गई है। यात्रा का नेतृत्व कर रहे एकता परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष पीवी राजगोपाल ने बताया कि वंचितों के अधिकारों के लिए किए जा रहे सत्याग्रह में आने वाली परेशानियां स्वाभाविक हंै। उनके पांव में पड़े छाले उन्हें हर समय याद दिलाते हैं कि वंचितों के अधिकार की इस लड़ाई में उन्हें मुस्तैदी से साथ देना है। जब तक हमारी मांगे मानी नहीं जातीं, आंदोलन जारी रहेगा। यात्रा में करीब 70 से 80 हजार लोग शामिल हैं। पीवी राजगोपाल ने कहा कि समस्त भूमिहीनों, आवासहीनों को भूमि और जीविकोपार्जन के संसाधनों पर अधिकार के लिए एक समग्र भूमि सुधार कानून की घोषणा हो। ग्रामीण तथा शहरी गरीब भूमिहीनों और आवासहीनों के लिए भूमि आवंटन समय सीमा के भीतर हो। भूमि सुधार संबंधी समितियों और आयोगों के सुझावों को पूरी प्रतिबद्धता के साथ लागू किया जाए। महिलाओं को समान भूमि अधिकार सुनिश्चित हों। एकल महिलाओं को प्राथमिकता के आधार पर भूमि का स्वामित्व दिया जाए। वंचित वर्गो के लिए टिकाऊ जीविकोपार्जन के साधन जल, जंगल, जमीन और खनिज जैसे प्राकृतिक संसाधन का पूर्ण सहमति के बिना हस्तांतरण न किया जाए। सोनभद्र, चंदौसी के बाद इलाहाबाद मण्डल के कौशाम्बी, फतेहपुर तथा बांदा मंडल के चित्रकूट, महोबा में लाल सलाम के रूप में माओवादी दस्तक देने को है डाकू और पुलिस आतंक से कराह रहा चित्रकूट, जनपद में जल-जमीन और जंगल पर दंबगों के कब्जे के कारण हालात भयावह हो रहे है।
भूमिहीन व्यक्तियों को भूमि वितरण कर आर्थिक रूप से मजबूत करके समाज की मुख्यधारा में लाने के लिऐ कृषि भूमिको संविधान में राज्य सूची मे होने के कारण अनुसार राज्य का विषय बनाया गया है और भूमि स्वामित्व आदि के विषय मे विधान सभा विधान परिषदों में कानून बनते हैं। विवाद होने पर मा0 सर्वोच्च न्यायालय में ही निर्वाचित होते है। पूरे देश की भूमि के स्वामित्व/प्रबन्धन/वितरण तथा वंचितों को भागीदारी देने का अधिकार भी राज्यों में निहित है जिसके कारण ऐसी जटिलताऐं विभिन्न राज्यों मेे निर्वचन हेतु और विभिन्न प्रकार के अधिनियम कानून से निर्मित होते है। परिणामतः पूरे देश की भूमि उपयोग स्वामित्व भागीदार तथा नियमतः हदबन्दी आदि के बारे मंे विभिन्न नियम अधिनियम व व्यवस्थाऐं भी भिन्न है। परिणामतः भूमि के बारे में जमीदारी प्रथा विनाश तथा भूमि सुधार कानूनों में प्रदेशवार अलग-2 विधान/नियमावली व मादंड अलग-2 है।
जमीदारी विनाश के क्रम में 1950 के दशक में कुछ राज्यों मंे तुरन्त विनास की प्रक्रियाएं प्रारम्भ होने के कुछ प्रारंभिक दिक्कते भी राज्यों को महसूस हुई और जन दबाव के कारण कुछ राज्यों में यहाॅ तक यहकर अभियानों को विलम्बित किया कि उनके यहाॅ प्रदेश की भूमि का अभिलेखन वर्गीकरण उपभोगवार ब्योरे उपलब्ध नहीं है जिसके विरोध में विहार देश भूमि के हस्तान्तरण हेतु जमीदारों ने संगठित विरोध प्रारम्भ किये और आंधप्रदेश तेलागना में वर्गीकरण के बास्ते देकर समय मांगा गया।
भूमि की हिसक क्रांन्ति को आगान परिणाम स्वरूप देश में तत्कालीन राजनेताओं ने खूनी क्रांन्ति को बचाने के लिए सामाजिक आर्थिक तथा भूमि स्वामित्व के ढाॅचे को सुरक्षित करने के लिए आचार्य विनोबा भावे से राय ली जिसके परिणाम स्वरूप पूरा विहार प्रदेश विनोवा जी को भूदान में मिल गया तथा खूनी क्रांन्ति के स्थान आन्ध्रप्रदेश के कोचमपल्ली गाॅव में पहला भूदान आचार्य जी ने कोचम पल्ली में दिनांक 18.4.1951 में प्राप्त किया और पूरे देश में जमीदारी विनाश अधिनियम के साथ जागरूकता आयी।
विहार में चरणबद्ध तरीके से अभिलेखन तथा जमीदारी विनाश प्रक्रिया लागू करने के दबाव मं मा0 पटना हाई कोर्ट 10 साल के लिए अभिलेखन हेतु भूमि सुधार व जमीदारी विव चरण बद्ध लागू करने विनाश प्रक्रिया मा0 सर्वोच्च न्यायालय में दस साल के लिए स्थगित किया। अन्य राज्यों मंे अभियानों के दबाव में जमीदारी विनाश व भूमि सुधार कानून बने और लागू भी हुए जिनसे 1960 में जोतहदबन्दी तथा भूमि सीमा रोपण कानून बना जिनको लागू होने पर जिसमें कि गरीब मजदूर भूमिहीनों को भी भूमि का अधिकार मिल सके क्योंकि बड़े बटाइंदार जमीदार आसामी ही व सिकिमी जोतदार स्वामित्व के पहले हकदार बने। आचार्य विनोवा भावे ने पूरे देश में और मजदूों को मजदूरी दी जाने लगी 13 साल 3 माह में मुख्यतः कृषि प्रधान देशों में 45 लाख एकड़ भूमि ऐसे भूमिहीन कृषि मजदूरों को बाॅटने हेतु प्राप्त की और उसका प्रावधान 13 साल 3 महीने में घूम-घूम कर किया। इस सम्बन्ध मंे प्रदेशों मंे भूदान एक्ट और अधिनियम नियम बनाये किन्तु उनका सरकारों की गम्भीरता के अभाव में क्रियान्वयन एक्ट के अनुसार नहीं हुआ और लगभग 22 लाख एकड़ भूमि का ही प्रवधान आवंटन प्रबन्ध हो सका।
इधर जोत सीमा हदबन्दी कानून पर बड़े जोतदार व जमीदार ने विवाद कर बेनामी हस्तानान्तरण कर राज्यों ने उच्च न्यायालयों, मा0 सर्वोच्च न्यायालयों ने स्थगन भ लिये जोकि अब भी 20-20, 30-30 साल तक पुराने पड़े हुए है। और बड़े जोतदार स्थगन आदेश लेकर लाभावित अब तक है क्योंकि राज्य सरकारों की राजनैतिक दिलगत स्वार्थो के कारण को ई रूचि नहीं है। विहार मंे जमीदारी विनाश/भूमि सुधार/ हदबन्दी कानूनों का क्रियान्वयन सुप्रीम कोर्ट को चरणबद्ध तरीके से स्थगन खारिज होने और उनके क्रियान्वयन में उस प्रदेश की राज नीतिज्ञों की इच्छाशक्ति के अभाव मंे लागू नहीं हो सका क्योंकि अब भी कुछ जनपदों में ऐसे मा0 सुप्रीम कोर्ट स्तर के स्थगन अब भी विलम्बित है। क्योकि प्रगति शील जनवादी कर्पुरी ठाकुर मुख्यमंत्रियों के प्रयास भी सफल नहीं हो सके आचार्य विनोवा भावे ने विहार में भूदान एक्ट के क्रियान्वयन व भूदान आन्दोलन को आगे बढ़ाने का कार्य लोक नायक जयप्रकाश नारायण तथा उनके सहयोगियों को दे दिया था सरकारों पर राजनीतिक इच्छाशक्ति के अभाव में भूदान की प्राप्ति भूमि राय साहबों बड़े जोतदारों ने अपने मजदूरों को भूमिहीन दिखाकर बेनामी उन्हीं के नाम से रोक लिया। इस कारण आज भी विहार मंे 30-30, 40-40 हजार एकड़ भूमि में व्यक्तिगत फार्म है उनके मजदूरों के और उनके फार्म संरक्षित करने के लिए बड़े जोदारों भूमिहारेां ने सेनाएं बना रखी है। यह जन की तंत्र से दूरिया ही प्रमाणित करता है शिक्षा के विस्तार हेतु वाद के मुख्य में मंत्रियों ने चरवाहा विद्यालय तथा अब विद्यालय खोल रहे है। अन्य राज्य जिनमंे कि प्रारम्भिक दौर मंे जमीदारी विनाश व भूमि सुधार कानून लागू हुए उनमंे राजनैतिक नेताओं की इच्छाशक्ति के अभाव में अधिनियम क्षेत्रगत एक रूपतास लागू नहीं हो सका। इसी कारण आसाम, बोरोलेण्ड, उल्फा आन्ध्रप्रदेश में तेलांगना उड़ीसा में खम्मभ इस तरह की क्षेत्रगत, राज्यगत अलग राज्य बनाने की मांगे उठीं। और पूरी भी हुई। पूरे देश में भूमि में प्रबन्ध की व्यवस्था एकरूप नही रही है। इस कारण क्षेत्र की राज्यों ने अलग राज्यबनाने की मांगे रखी है जिसका संसीय ढांचे के लिए समस्याएं पैदा हुई और कुछ राज्य बनाये भी गये किन्तु पूरे देश मंे भूमि सुधार में एकरूपता नहीं बन पाई।
विगत एन0डी0ए0 सरकार ने पूरे देश में भूमि का मण्डल प्रबन्धन हेतु माडल एक्ट बनाकर भेजा। कतिपय राज्यों ने स्वीकार कर सफलता की नई कहानी भी बनाई, इधर समस्याआंे के समाधान हेतु वर्तमान केन्द्र सरकार ने कुछ क्षेत्रीय राज्यों क नव निर्माण की मांगे स्वीकार की जैसे छतीसगढ़, झारखण्ड, उत्तरांचल पूरे देश में योजनागत विकास के क्रम में उद्योगों के लगाने हेतु तथा अन्य आर्थिक गति विधियों तथा नदी, घाटी तथा जल विद्युत उतपादन हेु अन्य परियोजनआं की भूमि अधिक्रहण हेतु भूमि की आवश्यकता पड़ने पर तथा इस भूमि को अधिग्रहण हेतु जटिल विवाद के कारण राज्यों में आन्दोलन व हिंसक विरोध होने पर भूमि अधिग्रहण व पुनर्वास की नीति सरकार ने बनाने की पहल पर विधेयक पारित किया अधिग्रहण व पुनर्वास भी निर्वाण की प्रक्रिया में ही पूरे देश में भूमि के सम्बन्ध में भूमि को एकरूपता देने हेतु भूमि सुधार नीति केन्द्र सरकार ने बनाई है जिसका भी विधायन प्रबन्ध व अधिनियम विचाराधीन है जिसके कुछ क्रियान्वयन के पक्ष अखबार में विषय बने किन्तु सामाजिक कार्यकर्ता एन.जी.ओ. व सम्बद पक्षों के दलित भूमिहीन श्रमिकों की भागीदारी के प्रत्यावेदन सम्यक रूप से विचारगत होना शेष है।
देश के वन क्षेत्र में परम्परागत आदिवासी, वनवासी तथा वन क्षेत्र में रहने वालों पर जोकि वनोत्पाद पर अपनी जीविका के लिए वनों में रहकर जीवन यापन कर रहे है उन्हंे वन अधिनियम के तहत वन विभाग अक्सर उत्पीड़ित करता  रहा है। इस कारण वन अधिकार अधिनियम 2006 का विधायन भी हुआ और वनवासी आदिवासी तथा परम्परागत वनवासियांे हेतु अधिवासी कार्य मंत्रालय की स्थापना के क्रम में वनाधिकार विधायन व कानून बनने पर समस्या का समाधान न होने के कारण अधिवासी वनवासी व परम्परागत वनवासी जिस भूमि का वह उपयोग करते उसका विधेयक पारित और महामहिम राष्ट्रपति की दूसरी स्वीकृति की तब भी विधायन/नियम व कानून वन नियम न लागू करने में विलम्ब हेाने पर वन विभाग के अधिकारियों ने उत्पीड़न जारी रखने पर कर्नाटक में अप्रैल 2007 में 36 हजार वर्ग किमी0 क्षेत्र से उत्पीड़न कर उन्हेे वन क्षेत्र में बेदखल करने की प्रक्रिया प्रारम्भ करने पर उन्होंने उक्त 36 हजार वर्ग किमी के वन मंे आग लगा दी। जिससे विधायन में गति आयी और अधिनियम के साथ नियमावली उनके अधिकार क्षेत्र की भूमि को हस्तान्तरण की प्रक्रिया पूरे देश में प्रारम्भ हुई है किन्तु पूरे देश में स्वामित्व हस्तान्तरण में राजनीतिज्ञों की राज्यों की इच्छाशक्ति के अभाव में तथा केन्द्र में समय वृद्धसीमा निर्धारित न करने के कारण विलम्ब हो रहा है और मुकदमें बाजी व स्थगन के दौर जारी है। क्योंकि वन विभाग राजस्व विभाग बने से लगे क्षेत्रों में सीमाकन नही करता और विझतिया जारी करता परिणामतः इससे भी भूमि के स्वामित्व को लेकर 30-40 व पचासों साल के भूमि के न्यायालयों में मामले लम्बित पड़े है। इससे पूरे देश में भूमि के प्रति भूमिहीन भागीदारी चाहते है और जिनको कृषि स्तर से प्राप्त भूमि से अधिकतर रास्ते स्थगनों के कारण बन्द है। प्राकृतिक न्याय के सिद्धान्त के अनुसार न्याय को अगर विलम्बित किया जाता है तो व न्याय नहीं मनाही की श्रेणी में चल रहा है और पूरे देश की 60 प्रतिशत भूमि 10 प्रतिशत लोगों के पास है। इस अनुपात मंे राज्यवार अन्तर हो सकता है इसलिए क्षेत्रीय भूमि के प्राकृतिक संसाधनों असमान वितरण के कारण ही देश मंे नक्शलवाद, माओवाद की प्रवृत्तियाॅ बढ़ रही है और भूमि सुधार के क्रम में न्यायपालिका से वंचितों का विश्वास हटता जा रहा है। जिसको रोकने के लिए मा0 गृह मंत्री जी ने वक्तव्य भी दिये 13.11.2009 वक्तव्य दिया गया कि अगर नक्शली व माओवादी सरकार से बात करना चाहे तो राज्यों मंे भूमि सुधार के लिए कहा जा सकता किन्तु जब झाड़खण्ड में व अन्य क्षेत्रों मंे रेल की पटरियाॅ उखारी गई, रेल उल्टी गई और राष्ट्रीय राज्यमार्ग बन्द किये गये तब गृह मंत्री ने वार्ता करने हेतु भूमि सुधार का वास्ता दिया। अम्बेडकर महासभा के प्रतिनिधि जगत नारायण कहते है कि
ऐसा भी नही कि राज्यों मंे वंचितों भूमिहीनों को भागीदारी दिलाने हेतु प्रयास न किये हो, उ0प्र0 वर्ष 1972 भूमि व्यवस्था जाॅच समिति गठित की गई और मंगलदेव विशारद की अध्यक्षता मंे गठित क्षेत्रीय सर्वे कैद 1974 मे उसकी संस्तुतियाॅ भी सदन पटल पर रखी गई किन्तु राजनीतिज्ञों की इच्छाशक्ति के अभाव में कतिपय सुधारों को अंग्रीकृत कर मुख्यालय से वह बड़े फार्म मालिक से सुझावों के पक्ष में दम तोड़ गई और वह इतिहास का विषय बन गयी।
पिछली मध्य प्रदेश की कांग्रेसी दिग्विजय सरकार दशक पहले बनी जिसमें भूमिहीन मजदूरों दलितों/वंचितों को ही ग्राम सभा/चिरनोई की भूमि जो कुल भूमि की 30 प्रतिशत रही 5 प्रतिशत रोककर इन्हीं को 25 प्रतिशत आवंटित करने के अध्यादेश आदि देने पर सरकार के कुछ समय चलने पर लागू भी किया पट्टों के बाद जो कब्जे मिले तब तक सरकार बदलने पर उमाभारती की मुख्यमंत्री बनी उन्होंने पट्टे व कब्जे सब निरस्त कर लोधियों और समृदों के पक्ष में प्रक्रिया उलट कर निहित कर दी उसमें भी कुछ स्थान हुए दूसरी गंभीर प्रतिक्रिया यह भी हुई बड़े जोतदार तथा ग्राम सभाओं में 25 प्रतिशत की चरनोई भूमि के विरूद्ध मा0 उच्च न्यायालय से स्थगन ले लिए जो 10 साल गुजरने पर बीच की सरकार ने खारिज नहीं कराये जिससे कुल कृषि योग्य भूमि की 40 प्रतिशत भूमि स्थिगित है और दलित आदिवासी भूमिहीन मजदूरों को भूमि की भागीदारी देने में सारी सम्भावनाएं समाप्त हुई। प्रदेश मंे पड़त भूमि जोकि अनुपयुक्त एक चैथाई से कम है। बी.जे.पी. सरकार ने सभी दलितों को आवंटित करने का निर्णय भी किया किन्तु वह भूमि संगठित भूमि माफियाआंे से उद्यमियों को हस्तान्तरित की गई। इसी प्रकार अन्य प्रदेशों के विरोध की स्थितियां उपस्थित है और होगी।
राजस्थान मंे कांग्रेस की सरकारों के समय भूमि सुधार के दौर चले किन्तु बी.जे.पी. की सरकार आने पर गतिरोध होते हुए उपरोक्त स्थितियों में न्याय पालिका से वंचित भूमिहीन व वंचितों की अपेक्षाएं है कि देश में संसाधनों में भागीदारी जैसे कि भूमि जल संसधन व अन्य प्राकृतिक संसाधनों हेतु न्याय प्रक्रिया को सक्रिय कर एक ही तरह से स्थगनों को समयवृद्ध तरीके से पूरे देश में खारिज कराया जाय। बिना किसी पूर्वाग्रह से लागे केन्द्र सरकार, राज्य सरकार की योजनाओं में भागीदारी देने हेतु मा0 सर्वोच्च न्यायालय की सक्रियता बढ़ाई जाय। इधर कुछ संगठित अपराधिक मामले जैसे कि भूदान आन्दोलन की भूमि के संगठित इजारेदार सिक्खों के दंगे व कतिपय मामले जिसमंे न्याय प्रक्रिया की वैधानिक सक्रियता में गतिरोध रहने से 15-15 सालों साल न्याय से वंचित रहने में तथा राजनैतिक दखलंदाजी और जाॅच की एजेन्सी की निष्क्रियता एवं आवंछनीय विलम्बताओं के कारण न्याय से दशकांे तक वंचित रहना पड़ा जिससे कि देश की जनंतत्रात्मक कार्य प्रणाली, व्यवस्थाओं के लिए गहरे सवाल खड़े हुए।
चरनोई भूमि का आवंटन भूमि हीन व्यक्तियों को करने की उ.प्र. सति कुछ राज्यों ने एक नई परम्परा डाल कर प्राकृतिक संसाधनों पर पशु-पक्षियों को उनके अधिकारों से वंचित करके फौरी राजनैतिक वाह-वाही लूटने का कुटिल प्रयास किया है इस प्रयास से सदियों से चली आ रही मनुष्य और पशुओं के बीच की सीमा रेखा पाट कर आमने-सामने की लड़ाई का मार्ग प्रशस्त किया है प्राकृतिक संसाधनों का दुरूपयोग के मामले मेें लचर रवैया अपनाने वाले बीमारू राज्य के रूप में चिन्हित उत्तर प्रदेश में वन परिक्षेत्र तेजी से घट रहा है। 


यह स्टोरी 2011 में कई पत्र और पत्रिकाओं में प्रमुखता से प्रकाशित हुई थी,दस्तावेज-2011 के तहत तत्कालीन समय के राजनैतिक माहौल को समझाने के उद्देश्य  से पुनः प्रकाशित कर रहे है।


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यह आलेख कापीराइट के कारण किसी भी अंश का पुर्न प्रकाशन लेखक की अनुमति आवाश्यक है।


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लेखक का पता


सुरेन्द्र अग्निहोत्री
ए-305, ओ.सी.आर.
बिधान सभा मार्ग,लखनऊ
मो0ः 9415508695,8787093085


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