देश का पहला दशावतार मन्दिर ..... देवगढ़


उत्तर प्रदेश के अन्तिम छोर पर स्थिति ललितपुर जनपद प्राचीन भारतीय संस्कृति, कला और दर्षन का गौरवशाली प्रतीक देवगढ़ बेतवा नदी के किनार ललितपुर स्टेशन से 33 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। सड़क मार्ग से आने-जाने के लिए पर्याप्त साधन उपलब्ध है। बुन्देलखण्ड की जीवन दायनी बेतवा नदी की गोद में बसा देवगढ़ भारतीय पुरातत्व के अनूठे आगार अपने आंचल में छिपाये है प्राकृतिक सौंदर्य आध्यात्मिकता से परिपूर्ण इस क्षेत्र का प्राचीन नाम ‘‘लूच्छिगिरि’’ था शांति नाथ मंदिर से प्राप्त शिलालेख के अनुसार गुर्जर प्रतिहार वत्सराज आम के प्रपौत्र और भट्ट द्वितीय का शासन काल था। 12वीं शताब्दी के मध्य इस क्षेत्र का कीर्तिगिरि रखा गया। गुप्तकालीन मूर्तिकला की पंचायत शैली का दशावतार मन्दिर प्रवेश करते ही मिलता है। इस मन्दिर की कला के संबंध में पुरातत्ववद् िस्मिथ कहते हैं कि देवगढ़ में गुप्त काल का सबसे अधिक महत्वपूर्ण और आकर्षक स्थापत्य है। इस मन्दिर की दीवारों पर तीन प्रस्तर-फलक लगे है। उनमें भारतीय मूर्तिकला के अनुपम दृश्य है। एक फलक पर गजेन्द्र मोक्ष का दृश्य उत्कीर्ण है। दक्षिण की ओर के फलक पर ेशेषशायी विष्णु है। विष्णु शेष नागों के फनों की छाया में लेटे हुए हैं, लक्ष्मी जी उनका पैर दबा रही है। आकाश में इन्द्र, शिव आदि देव अपने वाहनों से इस लीला को देख रहे है। नीचे पांच पुरुष व एक स्त्री की आकृति बनी हुई हैं स्त्री की आकृति अपने बाल खोले हुए है। इससे यह प्रतिबिम्बित होता है कि यह दृश्य पाचं पांडव व द्रोपदी का है।द्रोपदी अपने केष खोल कर बता रही है कि जब तक वह दुर्योधन के खून से अपने बाल नहीं धो लेंगी, तब तक केष नही बांधेगी। तीसरे फलक पर बद्रिकाश्रम का दृष्य अंकित है। षेर व हिरन को साथ-साथ तपोभूमि में विचरण करते दिखाया है। इस मन्दिर से तीन किलोमीटर पहाड़ पर पंचायतन शैली का एक दक्षिणाभिमुख नृबराह मंदिर के भाग्नावशेष मौजूद है। इसके गर्भग्रह के ऊपर पीठिका पर लेटे अंजली मुद्रा मंे नाग व नागिन बनी हुई है। ऊपरी भाग में भगवान नृबराह की एक विशाल प्रतिमा थी, जो पुरातत्व विभाग की घोर उपेक्षा व उदासीनता के कारण तस्करों द्वारा चुरा ली गई और अब बरामद होने के बावजूद भी सरकारी मालखाने में रखी है।
जैन मन्दिर और मूर्तिकला
देवगढ़ मंे इस समय 31 जैन मन्दिर हैं। जिनकी स्थापत्य कला मध्य भारत की अपूर्व देन है। इनमें से नं.4 के मन्दिर मंे तीर्थकर की माता सोती हुई स्वप्नावस्था में विचार मग्न मुद्रा मंे दिखलाई गई है। नं. 5 का मंदिर सहसकूट चैत्यालय जिसकी कलापूर्ण मूर्तिंयां अपूर्व दृश्य दिखलाती है इस मन्दिर के चारों ओर 1008 प्रतिमाएं खुदी हुई हैं बाहर सं. 1120 का लेख भी उत्कीर्णित है, जो सम्भवतः इस मंदिर के निर्माण काल का ही द्योतक हैं। नं. 11 के मंदिर में दो शिलाओं पर 24 तीर्थकरों की बारह-बारह तीर्थकार-प्रतिमायं अंकित हैं ये सभी मूर्तियां प्रषान्त मुद्रा को लिये हुए है।
इस सब मंदिरों मंे सबसे विशाल मंदिर नं.12 है जो शांतिनाथ मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है। जिसके चारांे ओर अनेक कला-कृतियां और चित्र अंकित है। इसमें शांतिनाथ भगवान की 12 फुट उत्तंुग जिन-प्रतिमा विराजमान है, जो दर्शको अपनी ओर आकृष्ट करती है और चारों कोनों पर अम्बिका देवी की चार मूर्तियां है, जो मूर्तिकला के गुणों से समन्वियत हैं। इस मंदिर की बाहरी दीवार पर 24 यक्षयक्षिणियों की सुन्दर कला-कृतियां बनी हुई है। जिनकी आकृतियों से भव्यता टपकती है, साथ ही 18 लिपियों वाला लेख भी बरामदे मंे उत्कीर्णित है।
-सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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मो0ः 9415508695,8787093085


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