ग़ज़ल-इक ग़ज़ल नाम लिखूँ राष्ट्र
इक ग़ज़ल नाम लिखूँ राष्ट्र
के जो सबकी हो !
हो मुहब्बत से जो लबरेज़
खिले फूल सी हो !!
जिसमें कोई कहीं से भी न
भेद कर पाये ;
दीन-दुखियों की करे बात
ख़ुशी की भी हो !!
जिसमें बाईबिल भी हो इस्लाम
सनातन भी हो ;
ग्रन्थ साहिब का करे मान
खुली वेद सी हो !!
जिसमें न जाति हो न धर्म
न छोटा या बड़ा ;
जिसको सुनकर लगे मानो
ये ग़ज़ल अपनी हो !!
गुनगुनाने के लिए जिसको
कोई भी गा ले ;
गा के जिसको लगे वो
कोई बड़ी हस्ती हो !!
एकता सूत्र में जो सबको
पिरो कर रख दे ;
इन-दिनों जैसे हमें फ़िक़्र
किसी और की हो !!
'शान्त' हम लोग रहें या न
रहें राष्ट्र रहेगा हरदम ;
हमसे कहला दे वो ग़ज़ल
जो हर अधर की हो !!
* * * *
-देवकीनन्दन'शान्त',साहित्यभूषण
शान्तम्,१०/३०/२,इन्दिरानगर,
लखनऊ-२२६०१६(उ प्र),भारत!
9935217841;8840549296