हिंदी साहित्य का तुलसी महाकवि पंडित सूर्यकांत त्रिपाठी निराला

आधुनिक हिंदी साहित्य का तुलसी महाकवि पंडित सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का जन्म पश्चिम बंगाल के महिषादल स्थान में बसंत पंचमी 1896 में हुआ था। उनके पिता पंडित राम सहाय तिवारी नौकरी करते थे। बाल काल में बंगाली व संस्कृत और अंग्रेजी विषयों में उन्हें महारत हासिल थी किंतु हिंदी का सम्यक ज्ञान उन्हें अपनी पत्नी मनोहरा देवी से मिला। पत्नी के राम के प्रति अगाध प्रेम की छाप उनपर पड़ी तो उन्होंने तुलसीदास और राम शक्ति पूजा जैसे अमूल्य ग्रंथ लिख दिये। 5 दर्जन से अधिक ग्रंथों की रचना की। महाकवि ने जीवन के युवा काल के दो दशक गढ़ाकोला गांव मे परिवारी जनों के ऊपर महामारी और गरीबी का डटकर मुकाबला किया। गांव में रहते हुए कर्मकांड और गरीबों के शोषण के प्रति खुलकर सामना किया। मौरावा के जमींदारों से त्रस्त किसान व गरीबों की आवाज को बुलंद किया। अंग्रेज व जमीदार हुकूमत के विरुद्ध आंदोलन किये। गढ़ाकोला में प्रवास के दौरान महाकवि की रचना धर्मिता यथार्थ धरातल पर शुरू हुई। समाज की विसंगतियों, गरीब, शोषित व दलितके प्रति उत्पीड़न से वह असहज हो गए और उन्होंने चतुरी चमार बिलेश्वर बकरिया सुकुल की बीवी जैसी साहित्य के लिए अमूल्य निधि दी। गांव में जब अधिक विपरीत परिस्थितियां उत्पन्न हुई तो वह इलाहाबाद चले गए और जीवन का अंतिम समय दारागंज में कमला शंकर सिंह के आवास पर व्यतीत किया और 15 अक्तूबर 1961 को अपनी अंतिम सांस ली।पंडित सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की स्मृति में उनकी जन्म स्थली गढ़ाकोला (उन्नाव) में स्मृति भवन और पुस्तकालय की स्थापना की जाएगी। यह फैसला  यूपी विधानसभा अध्यक्ष हृदयनारायण दीक्षित की अध्यक्षता में यहां हुई बैठक में किया गया।


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