किसान मर रहा भूखों सरकार मना रही कृषि महोत्सव


सूखाग्रस्त बुन्देलखण्ड के लिये केन्द्र सरकार द्वारा वर्ष 2009-2010 में घोषित किये गये बुन्देलखण्ड पैकेज की अब स्थितियां बदल गयी प्रतीत होती हैं। जैसी दैवी आपदा उत्तर प्रदेश बुन्देलखण्ड झांसी, जालौन, ललितपुर, बाँदा, हमीरपुर, महोबा, चित्रकूट जिलों में है मध्य प्रदेश सरकार के अनुसार वैसी अब छतरपुर (खजुराहो), दतिया, टीकमगढ़, पन्ना, दमोह और सागर में नहीं है। यह तथ्य पिछले रबी सीजन में तैयार फसल के समय असमय वर्षा, अति वृष्टि और ओलावृष्टि के कारण पूरे बुन्देलखण्ड में नुकसान देखने से पता चलता है, जिसमें उत्तर प्रदेश सरकार अपने बुन्देलखण्ड में भारी नुकसान मानती है, जबकि मध्य प्रदेश सरकार कोई नुकसान नहीं मानती। उसने अपने क्षेत्र के किसानों को कोई मुआवजा तो दिया ही नहीं ऊपर से कृषि महोत्सव मनाकर सुविधाओं का लालीपाप दिखा रही है जबकि किसानों के भूखों मरने की नौबत आ रही है।
  पिछले दशक में सूखा राहत और ‘बुन्देलखण्ड पैकेज’ के लिये केन्द्र और उत्तर प्रदेश,      मध्य प्रदेश सरकारें भले ही 13 जिलों को एक प्रकृति का मानते रहे हों और इन्हें राहत कार्यों में प्राथमिकता देते रहे हों किन्तु इस वर्ष रबी, खरीफ की फसल के अतिवृष्टि, असमय वृष्टि और ओलावृष्टि नुकसान को उत्तर प्रदेश सरकार तो मानती है किन्तु मध्य प्रदेश सरकार नहीं मानती। मध्य प्रदेश सरकार की दृष्टि में कोई नुकसान नहंी हुआ। उत्तर प्रदेश सरकार अपने बुन्देलखण्ड क्षेत्र के किसानों को रबी की फसल का मुआवजा बांट चुकी है जिसमें एक हेक्टेयर तक के किसानों को सिंचित क्षेत्र में नौ हजार, असिंचित को 4500 तथा इससे अधिक भूमि के काश्तकारों को भी इतनी ही धनराशि दी गयी है कम भूमि स्वामियों को भी इसी अनुपात में मुआवजा दिया गया है। खरीफ की फसल के नुकसान की भरपाई की तैयारी भी चल रही है जो इसी दर पर मिलेगी। केन्द्र सरकार ने भी रबी के नुकसान का डेढ़ गुना मुआवजा देने की घोषणा की है, जिससे आधे बुन्देलखण्ड के किसान लाभान्वित हो रहे हैं और आधे (मध्य प्रदेश क्षेत्र) किसानों का हाल बेहाल है। अधिकतर फसलें नष्ट हो जाने के कारण वे अपने घर के शादी विवाह जैसे मांगलिक कार्य भी नहीं कर पा रहे हैं लोग अपनी लाडली के हाथ पीले करने को तरस रहे हैं ऊपर से मध्य प्रदेश सरकार कह रही है कि उनके क्षेत्र के बुन्देलखण्ड में ऐसा नुकसान नहीं हुआ कि मुआवजा दिया जाय।
  मध्य प्रदेश बुन्देलखण्ड के छतरपुर जिले की गौरिहार तहसील में 30 जून 2015 को एक राजस्व अधिकारी से पूंछने पर कि ‘‘यहां से 15 किमी0 दूर उत्तर प्रदेश में प्रदेश सरकार की ओर से पर्याप्त मुआवजा दिया जा रहा है यहां के हरदोनी, चन्दपुरा, परेई, पहरा, मोहनपुरवा, खरका आदि गांव बार्डर से जुड़े हैं। असमय वर्षा, ओलावृष्टि और अतिवृष्टि से जितना नुकसान उत्तर प्रदेश बुन्देलखण्ड के किसानों का हुआ है उतना ही इन गांवों में भी हुआ है किन्तु यहां कोई मुआवजा नहीं दिया जा रहा है? राजस्व अधिकारी ने (नाम न छापने की शर्त पर) बताया कि उच्चाधिकारियों द्वारा फसलों के नुकसान का सर्वे करने के आदेश दिये गये थे जिसके अनुसार हमने सर्वे करवा लिया है जब सूची मांगी जायेगी तब भेज देंगे। नुकसान का आंकलन पूंछने पर उसने आंकड़े बताने से इन्कार कर दिया।
  छतरपुर जिले के विभिन्न क्षेत्र के किसानों से फसलों के नुकसान पर वार्ता करने पर अर्जुन सिंह ठकुर्रा, श्रीराम अनुरागी, सुन्दर अनुरागी राजापुर, शिवकुमार गुप्त बेनीपुर, रामनारायण अनुरागी कितपुरा, प्रकाश मिश्रा, वीरेन्द्र सिंह पटेल गौरिहार आदि ने बताया कि दलहन फसलों में अरहर में कीड़े लगने, चना, मसूर में अतिवृष्टि से 60 प्रतिशत नुकसान हुआ है। तिलहन फसलों में अलसी में 50 प्रतिशत मेढ़का (सरसों की एक देशी वरायटी), लाही में 30 प्रतिशत तथा खाद्यान्न फसलों में कठिया या लाल गेहूं के परिपक्व न हो पाने के कारण 60 प्रतिशत सफेद गेहूं में 30 प्रतिशत और जौ में 20 प्रतिशत का नुकसान है। अनेक किसानों ने कमजोर फसल की कटाई तक नहीं कराई।
  किसानों का कहना है कि अब खेती का आधुनिकीकरण हो चुका है सारा काम मशीनों से होता है। यदि जुताई, बुआई, बीज, खाद, कटाई, थे्रसिंग आदि का आंकलन किया जाय तो इस वर्ष की अधिकतम पैदावार से लागत भी नहीं निकल पायी है। फिर भी मध्य प्रदेश सरकार नुकसान नहीं मानती, इसी कारण मुआवजा नहीं दे रही। प्राकृतिक आपदा से आहत किसानों को कुछ बहुत राहत राशि देने के बजाय प्रदेश सरकार गांव-गांव में कृषि क्रान्ति रथ चलवा कर केवल योजनाओं का लाली पाप दिखा रही है जिससे प्राकृतिक आपदा से आहत किसान मुआवजे की मांग न करें। ऐसा ही कृषि क्रान्ति रथ छतरपुर जिले की गौरिहार तहसील की विभिन्न ग्राम पंचायतों में 11 से 16 जून तक घूमा, जिसमें सांस्कृतिक दल के साथ अनेक अधिकारियों ने किसानों को दी जा रही सुविधाओं का तो बयान किया किन्तु किसान की दुखती रग को नहीं छुआ।
  वास्तव में स्थितियाँ तो दोनों बुन्देलखण्ड की एक समान हैं, नुकसान भी दोनों जगह हुआ है, किन्तु म0प्र0 सरकार जानबूझकर किसानों की उपेक्षा कर रही है ताकि आपदा ग्रस्त किसानों को मुआवजा न देना पड़े।





 


यह स्टोरी 2015 में  शतरंग टाइम्स पत्रिका में प्रमुखता से प्रकाशित हुई थी,दस्तावेज-2015 के तहत तत्कालीन समय के  माहौल को समझाने के उद्देश्य  से पुनः प्रकाशित कर रहे है।


इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

सबसे बड़ा वेद कौन-सा है ?