रोचक बंगाली प्रसंग

लॉक डाउन के कारण मनुष्य की रोज की दिनचर्या चौपट हो गई है। सुबह दस बजे उठना, ग्यारह बजे ब्रेक फ़ास्ट, दोपहर का खाना खाते खाते प्रायः ही तीन बज जाता है। बंगाल का बहु प्रचलित शब्द " भात घूम " जो दोपहर को भर पेट भात खाने के बाद स्वतः ही आने वाली आलस्य की नींद को कहते है। इसी चौपट दिनचर्या के कारण कल रात एक भयावह कांड हो गया। 


आजकल इस लॉक डाउन में सभी को दिवनिद्रा की एक आदत सी हो गई है। कल तीन बजे खाना खाकर, चार बजे तक गहरी नींद में सो गया, पत्नी भी कब सभी काम निबटाकर, कब सो गई यह पता भी न चला।बाथरूम जाने की आवश्यकता महसूस होने पर निद्रा टूटी, हड़बड़ी में उठकर लाइट जलाने पर घड़ी की ओर नज़र गई तो होश उड़ गए, क्योंकि उस समय रात के बारह बज चुके थे। पत्नी को किसी तरह से धक्का देकर उठाया और नींद टूटने पर रात्रि के बारह बजने की वस्तुस्थिति से अवगत कराया।
अब तो पत्नी सिर पीटने लगी कि हाय आज तो संध्या प्रदीप भी नहीं जलाया, कितना अनर्थ हो गया। मैं पहले संध्या दे दूँ, उसके बाद रोटी बनाती हूँ। 
मैने कहा अब इतनी रात्रि को संध्या देने का कोई औचित्य नहीं है। संस्कारी पत्नी बोली ऐसा कभी संभव नही कि घर मे संघ्या पूजन न हो। अतः पत्नी ने अपनी जिद रखते हुए संध्या प्रदीप जलाकर तीन बार शंख बजाकर संध्या पूजन करके ही दम लिया।


बंगाल में भूचाल आने पर शंख बजाकर दूसरों को भी सावधान करते हुए, उनको घर से बाहर निकलने का संकेत देने की प्रथा है। ऐसा घर के सभी बुजुर्ग जानते है। अतः हमारे घर शंख बजने के बाद, हमारे पड़ोसी मित्रा जी के यहां, उसके बाद मुकर्जी, उसके बाद मंडल बाबू के घर, फिर तो मोहल्ले के सभी घरों में शंख बजना आरम्भ हो गया।
अचानक समल्लित शंख ध्वनि से मध्यरात्रि को पूरे मोहल्ले में कोलाहल मच गया। रात्रि बारह बजे संध्या पूजन की जिद ने, मोहल्ले की परिस्थितियों को जिस ओर मोड़ दिया, यह सोच कर ही पत्नी के चेहरे की हवाइयां उड़ गई। स्थिति की गंभीरता को आंकलन कर मैं भी भयभीत हो गया।
                      
भूकंप के भय से सभी मोहल्ले वाले घर से निकल कर खुली जगह पर एकत्रित हो चुके थे, स्थिति की गम्भीरता को भाँपते हुए, हम लोग घर के अंदर ही बैठ, थर थर कांप रहे थे। अचानक हमारे दरवाजे पर जोर से दस्तक हुई, मदन दादा कह रहे थे "भई जल्दी घर से निकलो भूकंप आया है।"
भयभीत पत्नी ने मेरा हाथ पकड़ते हुए पूछा 'अब क्या होगा ?' मैंने कहा "एक दम स्वाभाविक आचरण करो, बाहर चलो, नहीं तो सभी को संदेह हो जाएगा कि पहला शंख हमारे घर ही बजा था। यह पता चलने पर परिस्थितियों का अंदाजा तुम स्वयं कर लो।" जल्दी से मास्क पहन कर डरते हुए हम लोग घर से बाहर निकले। 


बाहर सभी मोहल्ले वाले एकत्रित हो शोर गुल मचा रहे थे, कुछ मोहल्ले के स्वयंसेवी युवक भीड़ को कुछ दूर दूर खड़े रहने को कहकर, सोशल डिस्टेंसिङ्ग का पालन करा रहे थे।
                       
कुछ देर बाद पुलिस की गाड़ी भी आ गई, एक दरोगा हैंड माइक लेकर उतरे और माइक से भीड़ को संबोधित करते हुए बोले " बाहर इतनी भीड़ क्यों है ? सभी तुरंत अपने घरों के अंदर चले जायें "। 
भीड़ में से किसी सज्जन ने कहा " भूचाल आया है, किसी ने शंख बजाकर सतर्क किया है।" 
दरोगा जी ने माइक से बोला " कोई भूचाल वुचाल नहीं आया, किसी ने शरारत वश शंख बजा दिया है, आपलोग तुरंत अपने अपने घर जाइये। "


मदन दादा अभी तक कहाँ थे पता नहीं? अचानक कही से आकर दरोगा जी को कुछ कहा। उनके कहने के प्रतिक्रिया स्वरूप एक कॉन्सटेबल ने आकर मदन दा के पिछवाड़े दो बेंत जड़ दिए। 


यह देखकर हम पति पत्नी डर के मारे, दौड़ कर अपने घर के अंदर चले गए। घर के अंदर आतंकित पत्नी ने कहा " मेरे ही गलती से इतना बड़ा हंगामा हो गया, असल मे सासु माँ ने मरने से पूर्व कहा था ' मेरा बेटा तो कुछ भी नहीं मानता, अंततः तुम इस घर मे संध्या पूजन अवश्य करना'।"


अभी मैं कुछ कहने ही जा रहा था कि फोन की घंटी बजी। मदन दा का फोन था, उन्होंने पूछा क्या तुम बता सकते हो किस कलमुँही ने सबसे पहले शंख बजाया था ? मैंने भोलेपन से उत्तर दिया ' नहीं नहीं मैं नहीं जानता।'
मदन दा बोले " शाला फालतू में पुलिस का डंडा पड़ गया। बहुत दर्द कर रहा है ! एक तो माल पीने को नहीं मिल रहा इसलिए दिमाग गरम है, इन परिस्थितियों के बीच ये वेदना युक्त तिरस्कार।          
                 
तुम्हारा दरवाजा खटखटाने के तुरंत बाद मैं फॉरेन लिकर के दुकान के पास, इस उम्मीद से गया, यदि भूकंप से दुकान की दीवार गिर गई हो तो कुछ बोतले लेकर भाग जाने का मेरा प्लान था, परंतु मेरा दुर्भाग्य दुकान पूर्ववत खड़ी थी ।


आगे का वार्तालाप सूझ नहीं रहा था। बात को अन्य दिशा में मोड़ने के लिए मैंने मदन दा को प्रश्न किया " आप ने दरोगा जी को क्या कह दिया कि डंडे पड़ गए ?" मदन दादा ने रुआँसे होकर बताया, केवल कहा था " दरोगा बाबू आपने दारू की दुकान बन्द करवाकर रखा है, इसलिए भूकंप तो आएगा ही।" इतना सुनते ही दरोगा आग बबूला हो बोला " लगता है यही शाला शंख बजाकर इतना बवंडर फैलाया है" कहते हुए सिपाही से पिटवा दिया।
                       
इसके बाद मदन दा ने फोन काट दिया, शायद दूसरी बार लगाने के लिए चूना हल्दी का लेप तैयार था।


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