सुप्रभात
सोच में मोच लगी,
दिमाग मे उठा कोहरा घना,
अहम का वहम पाल,
रावण विद्वान से हैवान बना,
हर शख्स में मैं है आज,
प्रकृति शिव है शिव ही सत्य है,
प्रकृति को बौना कर,
शून्य का सजाया ताज,
शून्य का नगण्य समझा मान,
शून्य की है अपनी आन,
कुछ नही कुछ में शून्य,
संग लगे अंग दस गुना तनती तान,
रोग का संयोग बन,
शून्य ने दिखाया रंग,
प्रकृति ने इंसा को समझाया,
तू नही मैं हूँ अब भी समझे हर जन,
प्रकृति के नियम अटल है,
सत्य सत्ता की शरण लग,
इंसा समझ प्रकृति के खेल को,
शिव का दण्ड और प्रेम निश्छल है ।।
रचनाकार - "नादान"
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