उतर गई मगरे से धूप|  अभिनवगीत ||

 


उतर गई
मगरे से धूप


इधर उधर फैल गया
कुहरीला सन्नाटा
अँधियारा जोड़ रहा
है दिन भर का घाटा


रोशनी नहीं
दिखी अनूप


लालटेन जल्दी में
ढिबरियाँ तलाशती
ओसारे में बैठी
बड़ी बहू खाँसती


देवर, चुप खड़ा
शिव सरूप


ससुर बहुत दीन
खूब चिटखाता उँगलियाँ
साँस रोकतीं भरसक
सासू कीं पसलियाँ


धान फटकती
भर भर सूप


(©राघवेन्द्र तिवारी)


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