व्यग्य-बेसब्र साया और नया कर गुजरने की लालसा


सहुजन समाज पार्टी की मुखिया सायावती सत्ता गवाने के दो माह बाद ही सत्ता पाने के लिये बेसब्र होती नजर आ रही है। दल्लीपुर में आंकड़ों की फेरिस्त लेकर कमलेश की सरकार पर जमकर हमला बोला। ससपा से उसका आधार वोट बैंक न खिसक जाये इस कवायद के तहत परिणामी जेष्टा की आड़ में घरेलुसभा के अन्दर बात करने के लिए अडी रही। घर के मुखिया  द्वारा आंसू पोछने पर ऊगली उठाने से चुतुर सायावती सावधान हो गयी तुरही निगाड़ा होई शाह
अब राज मिलेगा होई शाह
ताज मिलेगा होई शाह
सरकार मिलेगी होई शाह
तुरही निगाड़ा होई शाह
हुब्बलवतनी के बोल की तरह कमलेशवादियों को अपनी सरकार के मिलने पर खुशी है। कैसी होगी सुबह और फिर कैसी होगी शाम की कल्पनाओं में डूबा सूबा इतिहास में दर्ज होते नये सूरज की पलक पावड़े बिछाकर स्वागत करने को आतुर है। पिछले 5 वर्र्षाे में आलूपुर के आवाम नेे जिस तरह सड़कों पर लहुलुहान होने का पुलसिया अवमानवीये कहर को भोगा है। उसके खत्म होने की अभिलाषा में तूफान से दिया टकराने जैसी घटना अंजाम तक एक नया इतिहास लिखकर पहुँची है। बिचारे भूखे किसान खाद और पानी के लिये जब गुहार लगाते थे तो आलूपुर के निजाम का बेलगाम चाबुक रिरयाता उनकी खाल खीचने के लिये पिल पड़ता था। गणेश प्रसाद गंभीर के शब्दों में कहा जाये तो ‘‘खून बिखरा है/खाल उधड़ी है/लोथड़े बिखरे। नहीं दिखता/किसी को यह मंज्जर/ हर एक आँख में ही/माड़ा है। हम जहाँ साँस ले रहे है/सुन! ये यकीनन/कसाईबाड़ा है। इस कसाईबाड़ा से मुक्ति के लिये आलूपुर की जनता ने नरम पार्टी को पूर्ण बहुमत से अधिक 225 सीटों का तोफा देकर अपनी चाहत जता दी है। अब जुम्मेदारी कमलेश के हाथों में है। वे अपनी जुम्मेदारी को कैसे निभाते है। 
सबसे पहले तो यही सवाल है कि ये मूलभूत जरूरतें क्या हैं? हमारे आलूपुर में गरीब जनता की रोजी-रोटी कपड़ा और मकान जैसी आम और अहम जरूरतें तक पूर्ण नही हो पायी है। शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी बातों पर तो ध्यान ही किसी का नही गया है। शिक्षा माफियाओं के कब्जे में कैद होने के कारण आम आदमी के लिये दिवास्वप्न बनती जा रही है। किसानों के लिये खेती घाटे का सौदा बन गयी है। तो लघु उद्योगों की पूरी कमर टूट चुकी है। टूटते करघे बिखरते घर पूर्वी आलूपुर की दर्दनाक तस्वीर पेश करती है। भूख से बेहाल और बदहाल बीरखंड में पैकिज के नाम पर हुई लूट का खेल के साथ खनिज सम्पदा की लूट के अलावा जमीन अधिग्रहण जैसे मुद्दे महत्वपूर्ण है। 


कमलेश के उभरने के पीछे जहां एक ओर अतीत के दृष्टांत हैं जिसमें सपा की पूर्ववर्ती सरकारों की अराजकता से उपजी विफलता है, वहीं दूसरी ओर चुनौतीपूर्ण भविष्य है। उनको अतीत से सबक सीखते हुए जनता की आशाओं को पूरा करने का दायित्व संभालना है। आलूपुर की जनता उनसे काफी अपेक्षाएं रखती है। अब आलूपुर की जनता स्वप्न देख रही है कि जात-पांत और धर्म की सीमाओं से निकलकर वे सिर्फ विकास के ही एजेंडे को आगे बढ़ाएंगे। 


पिता नरम कुमार की राजनैतिक विरासत को मुस्तैदी से संभालने का दायित्व कमलेश ने बखूबी निभाया है। आलूपुर के चुनाव प्रचार में उनकी भूमिका इस बात की तस्दीक करती है कि वे राजनीति का ककहरा सीख चुके है। आखिर आलूपुर की नब्ज पहचानने का हुनर उन्हें आ ही गया है। 
कमलेश को अभी बहुत कुछ कर दिखाना है, आलूपुर के हालिया चुनावी परिदृश्य में कमलेश का जादू जन के मन पर जिस तरह असर दिखाने में कामयाब रहा है। उसी असर को सरकार नीति और रीति को लागू करके दिखाने का मौका उनके हाथों में आ रहा है। नए नेता राजनीति में कदम जमाने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे है। अब कुछ कर दिखाने का समय है। युग तेजी से बदल रहा है और जीने के नए मापदंड बन रहे है। राजनीति भी नए आयाम गढ़े जाने के लिए तत्पर है जिसमें आडंबर और बेईमानी से बात नहीं बनेगी। जनता की पैनी नजर नेताओं के कारनामों पर जमी है सो, नौटंकीबाज नेताओं की दाल नहीं गलने वाली।
कमलेश के नेतृत्व में पूर्ण बहुमत मिलने के साथ ही जो कड़े फैसले अडे फैसले लिये जा रहेे है जो एक अच्छी पहल है। इस पहल से नरम पार्टी का चाल चरित्र चेहरा ही नही। एक इक्कीसवीं सदी का नया रूप भी सामने आया है। जो सिर्फ आलूपुर तक ही सीमित नहीं रहना चाहता है। कमलेश का विनम्र चेहरा संयत शब्द मजबूत संदेश ने जिस तरह सत्ता जनित विरोध को नरम के लाभ में बदल दिया। उसे उसी विनम्रता के साथ सत्ता के संचालन में नरम संस्कार में संचालित करना होगा तभी उम्मीद का नरमपन सभी घरों में मुस्कराहट का वायस बनेगा। विकास का विजन जो उन्होंने देखा है। उस विजन को पूरा करने के लिये पूरा बहुमत पास है। इस लिये बदलाव नई सोच ... नये जोश के साथ करने के लिये जिस बुलन्द इरादे से नरम कुमार की विरासत को कमलेश ने सम्भाला है। उसे अपनी मेहनत और लगन से साकार करने की जुम्मेदारी है। कमलेश की सफलता की कुंजी मेहनत और लगन में निहित है।कहे अनकहे किस्सो में समानान्तर सरकार  के कारण कूपमंडूक बनने की बिवशता उन्हे सायावती की राह पर न ले जाये हम तो यही दुआ करेगें।
सायावती की नीति कपट वाली है
प्रश्न करना जहां पर कहाली है।
आलूपुर को फिर से चरना ले
करना सभी को मिल रखवाली है। 


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