व्यंग्य मधुशाला पर ताला!

कोरोना.... कोरोना ......कोरोना... की आवाज सभी तरफ आ रही है। जिसने सब बंद करा दिया। पूरा देश ही रुक गया है। इस पर भी बड़ी बात देखो... सुख- दुख का साथी मधुशाला का रास्ता भी बंद हो गया है । मानो इस पर ताला लग गया। अब यह ताला सिर्फ मधुशाला पर ही नहीं लगा तो यह ताला उन सब पर लगा जो इसके विद्यार्थी थे। 
साथ ही ताला सिगरेट, बीड़ी कि लत पर भी लग गया। अब देखिए किसी ने इस लत को मजबूरी वश तो किसी ने अपनी इच्छा से इससे निजात पा ली, हालांकि कुछ लोग अभी भी जुगाड़ के सहारे अपनी प्यास को बुझा रहे हैं। तो कुछ अपनी प्रतिज्ञा की सोच रहे है।
आज जब इतवारी का चक्कर लगा रहा था तो वहा इतवारी लाल से भेंट हो गई...जो एक बंद मधुशाला के सामने उदास बैठे थे। जब भेंट हो है गई तो हमने उनसे इतवारी के हाल पूछ ही लिए।
हमारी ओर आशा भारी आखो से देखते हुए बोल पड़े ,"अब तुम भी ले लो मजा, यहां मुंह सुख गया है... पूरी सड़के खाली है,  ना पीने......को कुछ है, ना लंबी फेकने को! मानो इतवारी की आत्मा ही चली गई। 
२२मार्च से मधुशाला सहित सभी दुकानों पर ताला लग गया। इतना ही नहीं इतवारी की आत्मा पर ही ताला लग गया!
बड़े ही पछताते हुए बोले पहले अंदाजा होता कि जनता कर्फ्यू के बाद अपना भिडू लॉक डाउन को इतना लंबा खींच लेगा तो स्टॉक करके ही रख लेता। इतवारी लाल ने अपनी व्यथा बताते हुए कहा, कुछ दिन तो जुगाड़ से चल गया.. लेकिन अब तो इंतहा हो गई....मुझे तो चिंता सता रही है कहीं लॉक डाउन के चक्कर में परिजनों के बीच  रहते व शराब, सिगरेट न मिलने पर आदतों का क्या होगा, जिसे वर्षों से पाला व पूरी श्रद्धा से इसका जतन किया....अपने रुपयों से खर्चा किया..कभी किसी की राह नहीं देखी जुगाड़ के लिए...जितना कमाता था उसमे मधुशाला का हिसाब बगैर नागा निकाल देता था। 
पहले तो लोग मधुशाला के मालिक को सुबह ६ बजे पूछते थे आज आप लेट हो गए...क्या दिन थे वो....सुबह की की शाम तक घुमाती थी... "काम के काम गुठलियों के दाम" वाली कहावत चरितार्थ हो जाती थी। अब सम बड़ा बाका आ गया ....इंतजार ही ख़त्म नहीं होता।
 आगे बताते है कि अब तो लग रहा है आदत भी छूट रही है। शुरुआती कुछ दिन तो मुश्किल से गुजरे...फिर जुगाड़ जमाया...लेकिन अब हालात बत्तर हो रहे है। बुरा हो इस कोरोंना का जिसने ये दिन दिखाया।  लेकिन अब लगता है घर में बंद रहते बदलाव हो रहा है। रात में बगैर लिए नींद भी आ रही है। 
मैंने कहा भाई लॉक डाउन से काफी फायदे हुए है। नदी , नाले पर्यावरण सब साफ़ हो चला है। परंपराएं बदल गई, घरों में चोरी कि घटनाएं कम हो गई, क्राइम कम हो गए....पुलिस वालो का सही काम व अहमियत समझ आ गई...नहीं तो बिचारे वहीं तोड़ी जुगाड़ में लगे रहते थे। डॉक्टर व दवाखाने रोज बड़ी बड़ी जाच करते थे...लोग सिर्फ कोरोणा से पीड़ित होने के दर से बाकी बीमारियां भूल गए। हां मधुशाला व शराब की दुकानों को ही लूट रहे है। सब्जी व दवाई की दुकानों में भी अमृत मिलने लगा। सब्जी ही सबकी तारण हार बन गई!
इतवारी लाल बीच में ही बोल पड़े ये सब ठीक है लेकिन हमारी व हमारे जैसे अनेक लोगों की कभी न छोड़ने की "प्रतिज्ञा" का क्या होगा। भीडू अभी भी लॉक डाउन खोलेने के मूड में नहीं....ये "मधुशाला का ताला " हमें सुधार के है दम लेगा व हमारी प्रतिज्ञा भंग कर देगा। तभी कुछ आवाजें आई....भागो...भागो....घर में रहो, सुरक्षित रहो! कोराना...
कोराना....कोराना....पुलिस का सायरन....फिर वही सन्नाटा...मधुशाला का ताला..


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