अनेक धर्मों से भ्रमित चित्त वाला न हो कथा व्यास

अपने देश में अभी कुछ विख्यात कथावाचक ऐसे ही आचरण कर रहे हैं। वे अन्य धर्म और स्वधर्म के विचारों स्थिर और एकनिष्ठ नहीं हैं। वे राम राम, जय श्रीकृष्ण भी गायन करते हैं और अल्लाह, मौला का गुणगान भी करने लगते हैं। कभी नमाज की प्रशंसा करते हैं तो कभी भगवन्नाम कीर्तन की। उनकी भगवान के प्रति और भागवत ग्रन्थ के प्रति अव्यभिचारिणी निष्ठा नहीं है।  श्रीमद्भागवत की कथा के प्रवचन के लिए वक्ता भी योग्य और विद्वान होना चाहिए। चाहे जिस व्यक्ति को कथा व्यास बनाकर बैठा देना अनुचित और अशास्त्रीय है। इस संबंध में हम श्रीमद्भागवत के माहात्म्य से ही कुछ श्लोक उद्धत करके अपने पाठक मित्रों को बताना चाहते हैं कि कथा व्यास कैसा होना चाहिए।


दृष्टान्तकुशलो धीरो वक्ता कार्योऽतिनिस्पृहः।श्रीमद्भागवत माहात्म्य/6/20


वह विरक्त विष्णुभक्त ब्राह्मण हो। वेदशास्त्र की स्पष्ट व्याख्या करने में समर्थ हो। विविध दृष्टान्त दे सकता हो। विवेकी और अत्यन्त निस्पृह हो। विरक्तः उसको संसार के विषयों, पद-प्रतिष्ठा, धन ऐश्वर्य इत्यादि से विरक्ति (वैराग्य अथवा अलगाव) होना चाहिए। वैष्णवः वह विष्णु भक्त हो। अर्थात् संसार के पालन पोषण करने वाले परमात्मा के प्रति अनुराग रखता हो। स्पष्ट है कि ऐसा व्यक्ति सदा परोपकारी, परदुखकातर और उदारचरित होना चाहिए। वह सकारात्मक विचारों वाला आस्तिक हो।


विप्रः वह विप्र हो। यह शब्द वप् से बना है जिसका अर्थ बोना, आरोपण करना, उगाना इत्यादि हैं। अर्थात् वह ऐसा ब्राह्मण हो जो श्रोता-प्रजा के मन-मस्तिष्क में सद्विचारों और श्रेष्ठ चिन्तन को बो सकने में समर्थ हो। वह ब्राह्मण भी होना चाहिए। वेदशास्त्रविशुद्धिकृत्वेदशास्त्र की सरल, शुद्ध और स्पष्ट व्याख्या कर सकता हो। दृष्टान्तकुशलः विविध प्रकार के दृष्टान्तों से अपने विवेच्य विषय को स्पष्ट कर देने में समर्थ और कुशल होधीरः वह बुद्धिमान और विवेकी हो। पढ़े हुए को समझ लेना और समझे हुए विषय को अन्य को समझाने की कला में निपुण हो। शब्दार्थ और आचरण में उचित अनुचित का भेद करना जानता हो। वक्ता- बोलने की कला में पारङ्गत हो। उसे वाक्यज्ञ और वाक्य विशारद होना चाहिए। तभी वह श्रेष्ठ वक्ता हो सकता है।


कार्योऽतिनिस्पृहः अपने कार्य प्रवचनकार्य) और कार्यफल (दक्षिणादिप्रति स्पृहा (बहुत अधिक लगाव) न रखता ।


ऐसा सद्गुण सम्पन्न व्यक्ति को कथाव्यास नियुक्त करना चाहिए। वह कैसा न हो यह भी श्रीमद्भागवत में अपेक्षासहित उल्लिखित है। देखिए-


अनेकधर्मविभ्रान्ताः स्त्रैणाः पाखण्डवादिनःशुकशास्त्रकथोच्चारे त्याज्यास्ते यदि पण्डिताः।। श्रीमद्भागवत माहात्म्य/6/21


जो भागवत (शुकशास्त्र) की कथा को करते समय अन्य अनेक धर्मों में भ्रमित हो रहे हों, स्त्री लम्पट हों और पाखण्ड के प्रचारक हों। उन ऐसे पण्डितों को तो त्याग ही देना चाहिए। अनेक धर्म विभ्रान्ताः शुकशास्त्र अर्थात् भागवत की कथा करते समय जो भागवत में निहित सिद्धान्तों, उसमें वर्णित धर्म में एकनिष्ठ न होकर अन्य अनेक धर्मों से भ्रमित चित्त वाला। अपने देश में अभी कुछ विख्यात कथावाचक ऐसे ही आचरण कर रहे हैं। वे अन्य धर्म और स्वधर्म के विचारों में स्थिर और एकनिष्ठ नहीं । वे राम राम, जय श्रीकृष्ण भी गायन करते और अल्लाह, मौला का गुणगान भी करने लगते हैं। कभी नमाज की प्रशंसा करते हैं तो कभी भगवन्नाम कीर्तन की। उनकी भगवान के प्रति और भागवत ग्रन्थ के प्रति अव्यभिचारिणी निष्ठा नहीं है। ऐसे दिग्भ्रान्त कथावाचक सर्वथा त्याज्य होना चाहिए। स्त्रैणाः स्त्रियों के प्रति और उनकी विविध आकर्षक भावभङ्गिमाओं के प्रति आकर्षित। पाखण्डवादिनः पाखण्ड और प्रपंञ्च की बातें करके जनता में पाखण्ड का प्रचार करने वाले कथावाचक। त्याज्यास्ते यदि पण्डिताः उपर्युक्त दुर्गुणों से युक्त व्यक्ति यदि महान पण्डित भी क्यों न हों, वे त्याज्य ही हैं। ऐसे व्यक्तियों को श्रीमद्भागवत का प्रवचनकार कभी भी नहीं बनाना चाहिए।


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