अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस: परदेश में रोजी रोटी के लिये जाना बनी मुसीबत


ललितपुर।

एक मई को दुनिया भर में अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस मनाया जा रहा है। इस दिन को पिछले 132 सालों से मनाया जा रहा हैं। ये वो खास दिन है, जिस दिन मजदूरों पर अनिश्चित काल तक काम कराने के चलन में बदलाव करके उनके काम करने का समय निर्धारित किया गया था। मजदूरों पर किया जा रहा उत्पीड़न कम करने की शुरुआत इसी दिन से हुई थी। 

 

अब मजदूरों को अपनी जीविका कमाने के लिए सिर्फ 8 घंटे ही काम करना होगा। सालों से मजदूर अपने काम के घंटे तय करने की मांग कर रहे थे, लेकिन उनकी मांगों को नजरअंदाज किया जा रहा था। लंबे संघर्ष के बाद एक मई 1886 को पूरे अमेरिका में लाखों मजदूरों ने एकजुट होकर मजदूरों के हक के लिए हड़ताल की। इस हड़ताल में लगभग 11 हजार फैक्ट्रियों के 3 लाख 80 हजार मजदूर शामिल हुए। मजदूरों का आक्रोश देखकर पुलिस ने आंदोलनकारियों पर गोलीबारी शुरू कर दी, जिसमें दर्जनों लोगों की मौत हुई।

 

इस हड़ताल के बाद भी सालों मजदूरों का विरोध थमा नहीं। 1889 में पेरिस में आयोजित एक अंतरराष्ट्रीय महासभा की दूसरी बैठक में फ्रांसीसी क्रांति को ध्यान में रखते हुए एक प्रस्ताव पास किया गया। इस प्रस्ताव में अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस मनाए जाने की बात स्वीकार की गई। इस प्रस्ताव के पास होते ही अमेरिका में सिर्फ 8 घंटे काम करने की इजाजत दे दी गई। इसे विश्व शांति के लिए बेहद अहम बताया गया। 

 

इसके बाद पहली मई को मजदूर दिवस के रूप में मनाने की शुरुआत हुई। भारत में मजदूर दिवस की शुरुआत चेन्नई में 1 मई 1923 में हुई। भारत में लेबर किसान पार्टी ऑफ हिन्दुस्तान ने 1 मई 1923 को मद्रास में इसकी शुरुआत की थी। इसके साथ ही भारत उन करीब 80 देशों की सूची में शामिल हो गया, जहां एक मई को मजदूर दिवस के रूप में मनाया जाता है। पूरे देश की ट्रेड यूनियनें यह दिन सेलिब्रेट करती हैं और देश भर में कई कार्यक्रम भी आयोजित होते हैं। 

इस वर्ष कोरोना वायरस महामारी फैलने के बाद परदेश कमाने के लिये गए मजदूरों के लिये बड़ी मुसीबत बन गई। देश मे अचानक कोरोना वायरस की महामारी के बाद हुए लॉक डाउन से खासकर मजदूर वर्ग बहुत अधिक प्रभावित हुआ है। मजदूरों को सैकड़ों किलोमीटर की दूरी पैदल चलकर दर दर भटकना पड़ रहा है। उत्तर प्रदेश सरकार की सराहनीय पहल के बाद मजदूरों की राह आसान हुई है। 

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