बुद्ध पूर्णिमा पर विशेष -भगवान बुद्ध की तपस्थली गढा की पूर्वप्रधानमंत्री राजीव गांधी की पहल पर हुई थी खुदाई


सुलतानपुर। भगवान बुद्ध की तपस्थली गढा उपेक्षा की शिकार है। शासन सत्ता की नजरें इनायत हुई होती तो कुशीनगर, श्रावस्तीसारनाथ जैसी स्थिति गढ़ा की भी होती। आज गढ़ा की पहचान एंव अस्तित्व संकट में हैअपने सुनहरे अतीत की गाथा, समेटे लगभग 6 किमी क्षेत्र के दायरे में फैला यह स्थान एव इसके इई-गिर्द लगी लखौरी ईटों से बनी दिवारें एंव भग्नावशेष गुजरे ऐश्वर्य की गवाही दे रहे है1968 में इस स्थान का पता तब चला जब बौद्ध भिच्छु धर्म रक्षित सारनाथ से इस स्थल की खोज करने यहां पहुचें। कई बार के यहां के दौरे में हुई खोज से प्राप्त ईंटे और मूर्तियां जो कुछ सारनाथ तो कुछ सुलतानपुर संग्रहालय में मौजूद है। कुड़वार क्षेत्र के इसी स्थल पर भगवान बुद्ध ने यहां के शासक कलामवशीय क्षत्रियों को बौद्ध धम पद का उपदेश दिया थायह ऐतिहासिक स्थल गढ़ा ग्रेन्ट कुड़वार के पास आदि गंगा कही जाने वाली गोमती नदी के तट पर स्थित है। जनचर्चा एवं जन श्रुतियों के अनुसार कलाम वंशीय क्षत्रियों ने कुड़वा नामक स्टेट इसी जगह पर बनवाया था जो कालान्तर में चलकर कुड़वार नाम से प्रचलित हुआ


सुलतानपुर गजेटियर में भी गढ़ा का उल्लेख मिलता है। चर्चा यह भी है कि 1967 में बुद्ध की प्रतिमा यहां थी जो कछार के चलते गोमती नदी में समाहित हो गई इतिहास के जानकारों अनसार हर्ष के समय में भारत भ्रमण पर निकले चीनी यात्री व्हेन सांग 363 ईसवी में कन्नौज से प्रयाग आये वहां के रास्ते गंगा पार कर उत्तर दिशा की तरफ और आगे बढ़ा तो उसे कासे पुला केशपुत्र नामक नगर दिखा जिसे अपने यात्रा वृत्तान्त में व्हेनसांग ने भी इस स्थान केमहत्व को परिभाषित करते हुए उल्लेख किया हैकि वह इसी रास्ते श्रावस्ती पहुंचा था। गौरतलब है भगवान बुद्ध के समय में जब बौद्ध धर्म का प्रचार प्रसार तेजी से चल रहा था तब यहां बौद्ध भिक्षुओं का आवागमन निरन्तर बना रहता था। इस स्थल को केशुपुत्त नाम से भी जाना जाता था जो उत्तर भारत के बौद्ध कालीन दशम गणराज्यों में से एक था। सुलतानपुर जिले से सटे प्रतापगढ़ जिले के एक बौद्ध भिक्षु द्वारा लिखी गई पुस्तक में भी इस बात की तस्दीक की गई है कि गढ़ा ही बौद्ध धर्म का दशम् मठ है।


पुरातत्व सर्वेक्षण टीम की खुदाई में मिले थे महत्वपूर्ण अवशेष


1985 में क्षेत्रीय जनों की मांग पर अविभाज्य सुलतानपुर जिले का हिस्सा रही अमेठी से सांसद व तत्कालीन प्रधानमन्त्री राजीवगांधी की पहल पर केन्द्रीय सांस्कृतिक सचिव पुपुल जयकर के निर्देश पर केन्द्रीय पुरातत्व की सर्वेक्षण टीम यहां दौरे पर आई । इस स्थल को अपने कब्जे में लेकर यहां एक चौकी भी स्थापित की थी कई महीने रहकर खुदाई भी कराई गई खुदाई दौरान बौद्ध कालीन मूर्तियां बरतन व अन्य अवशेष प्राप्त हुए। जिससे स्थल के महत्व की पुष्टि हुई यहां के लोगों में इस स्थल को लेकर विकास की उम्मीद जगी लेकिन समय के साथ उनकी यह उम्मीद धूमिल होती गई और नतीजा सिफर निकला।


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