डिजिटल संसद सत्र की ओर बढ़ते कदम!

कोरोना ने इस देश में एक नई व्यवस्था को बनाने का मौका दिया है । माना कि इस समय पूरा देश कोरोना महामारी के संक्रमण से ग्रसित है। वहीं दूसरी ओर इस देश का सिस्टम डिजिटल माध्यमों की ओर तेजी से बढ़ रहा है। बीते कुछ वर्षों में हम देख रहे हैं एक डिजिटल  क्रांति आई है । देश का हर व्यक्ति स्मार्टफोन से जुड़ने लगा है।  सरकार की कई योजनाएं यह ऑनलाइन तरीके से ही चलाई जा रही है । कोरोना वायरस के संक्रमण के बाद सोशल डिस्टेंसिंग जैसे शब्दों ने देश को अपना परिचय दिया है । उसी तरह शिक्षा के माध्यम को डिजिटल स्वरूप में प्रस्तुत करने के लिए शिक्षण संस्थाओं को बाध्य कर दिया है। आज सभी शिक्षण संस्थाएं सोशल डिस्टेंसिंग के नाम पर अब अपनी शिक्षा पद्धति में बदलाव कर ऑनलाइन व डिजिटल का सहारा ले रही है। शिक्षकों द्वारा कई ऑनलाइन कोर्सेज चलाए जा रहे हैं । कई  वेबीनार का आयोजन किया जा रहा है। अनेक विशेषज्ञों की चर्चाओं के माध्यम से ज्ञान का आदान - प्रदान किया जा रहा है। सूचनाओं को भी ऑनलाइन प्रसारित किया जा रहा है। यहां तक कि परीक्षाएं भी ऑनलाइन लेने की तैयारी हो रही है।  ऐसे में सरकारी तंत्र भी ऑनलाइन का ही उपयोग कर रहा है। देश के प्रधानमंत्री वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों से बात कर लॉक डाउन के बड़े निर्णयों का निर्धारण कर रहे हैं।  मंत्रिमंडल की बैठके भी ऑनलाइन ही रही है। जिसमें उन्हें सफलता भी मिली है। देश की अधिकतर कार्य डिजिटल व ऑनलाइन पद्धति से किए जा रहे हैं । सारे व्यवहार वह बैंकों के हो या फिर जिला व तहसील कार्यालयों के सभी को ऑनलाइन से जोड़ दिया गया है।  निश्चित ही इससे कार्य में पारदर्शिता वह सुगमता आई है । ऐसे में सामान्य व्यक्ति के मन में यह प्रश्न आना की जब इस देश ने डिजिटल क्षेत्र में इतनी प्रगति कर ली है तो क्यों ना भारत की संसद के सत्र का कार्य भी हम डिजिटल माध्यम से ही कर पाए । इतना ही नहीं तो संसद का सत्र भी हम डिजिटल माध्यम से ले पाएं। इसमें भी सोशल डिस्टेंसिंग का कारण हमें यह व्यवस्था करने में संहयोग वह आकर्षित कर रहा है। वैसे भी संसद के कई कार्यों व सुविधाओं का डिजिटलाइजेशन कर दिया गया है। यानी हमने अपने कदम डिजिटल संसद सत्र की बढ़ा दिए है।

हम यह जानते है कि  भारत की संसद एक ऐसी संस्था है, जो प्रतिनिधि लोकतंत्र का प्रतिनिधित्व करती है और समय के साथ विकसित हुई है। हम सब जानते हैं कि तकनीक खासकर इंटरनेट हर चीज को बदल रहा है। यह हर औसत आदमी को सूचना और डाटा से जोड़ रहा है। इस कारण दबाव में आकर हर संस्थान बदल रहा है और नई चीजें अपना रहा है-इसमें संसद एवं संसदीय प्रतिनिधि भी शामिल हैं।

विश्व को ही इंटरनेट ने अपने माध्यम से सभी के पास लाकर खड़ा कर दिया है। पूरी दुनिया आज इंटरनेट के माध्यम से बहुत छोटी हो गई है । उच्च स्तरीय मीटिंग भी डिजिटल माध्यम से हो रही है।  भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। इसमें तकनीक महत्वपूर्ण रूप से आगे बढ़ रही है। इसे देखते हुए अब तकनीक का उपयोग  संसद के कार्य को बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।  जिससे संसदीय कार्य और अधिक प्रभावी उत्तरदाई, पारदर्शी और जिम्मेदार तरीके से हो सके।  वर्तमान सरकार भी डिजिटल माध्यमों को बढ़ावा दे रही है। वह भी तकनीक के माध्यम से लोकतंत्र को मजबूती प्रदान करना चाह रही है।

वर्तमान में हम देखते हैं तकनीक का उपयोग कर हम देश की जनता से फेसबुक, वाट्सअप, टि्वटर, इमेल आदि माध्यमों से बड़ी आसानी से जुड़ पा रहे हैं और अपने विचार अपनी योजनाओं को उन तक पहुंचा पा रहे है।  वैसे भी हमारे जनप्रतिनिधि हमारे संसद के कर्णधार होते हैं जो जनता की मुद्दों को सदन में उठाकर उसे न्याय दिलाने का प्रयत्न करते हैं। प्रश्न यह है क्या हमारे सांसद इस नई तकनीक को अपना पाने में सक्षम हैं? इस पर हमें विचार करना होगा। 

आगामी मानसून सत्र में हमें यह प्रयोग करना चाहिए कि हम अपने संसद  सत्र की कार्रवाई डिजिटल माध्यम से करवा पाए। क्योंकि कोरोना संकट हमें येक जगह जमा होने की अनुमति नहीं दे रहा है। ओर संसद में तो देश के हर जिले से एक सांसद सदस्य अपने कुछ कार्यकर्ताओं के साथ दिल्ली पहुंचता है। जिससे भी संक्रमण का खतरा बढ़ सकता है। डिजिटल सत्र के  कई फायदे हमें नजर आते हैं प्रथम तो यह कि हमारे जनप्रतिनिधि अपने संसदीय क्षेत्र में रहकर अपने ही घर व कार्यालय से संसद की कार्यवाही में ऑनलाइन भाग ले सकेगा। जिससे वह अपने क्षेत्र की जनता से सीधा जुड़ा हुआ रहेगा । क्षेत्र की जनता अपने प्रतिनिधि से किसी भी समय मिल सकेगी। संसद की कार्यवाही पर आने वाला बड़ा खर्च भी बचाने में हम सफल हो सकेंगे । देश के सामने हम सोशल डिस्टेंसिंग व तकनीकी प्रगति का एक सक्षम उदाहरण प्रस्तुत कर सकेंगे। अब प्रश्न यह है कि क्या हमारे सांसद इस डिजिटल तकनीक से जुड़े हैं?  यदि नहीं तो देश में इस तकनीक के लिए हमारे जनप्रतिनिधियों को तकनीकी टूल्स ट्रेनिंग प्रदान कर इस बारे में जानकारी दी जानी चाहिए। हमारे संसदीय सचिवालय को यह सुनिश्चित करना होगा कि आईपैड्स और लैपटॉप हर चुने गए सदस्यों को दिया जाए और उनका इस्तेमाल करने के लिए ट्रेनिंग प्रोग्राम्स दिए जाएं और उन्हें मौजूदा डाटाबेस/प्लेटफॉर्म उपलब्ध कराए जाएं। नई डिजिटल विधायिका प्रणाली सभी प्रतिनिधियों को अच्छे से कार्यकारी काम में मदद करे। उनकी सभी प्रकार की फाइलिंग अब ऑनलाइन हो, जिसमें दोनों सदनों के लिए पूर्ण रूप से इंटरेक्टिव वेबसाइट, मेंबर पोर्टल, ई-नोटिस आदि हों। हर सांसद का अपना एक पोर्टल हो, जिसमें वह अपने सारे काम का अपडेट रखे, ताकि हर नागरिक उसे देख सके और जरूरत पड़ने पर उसकी आलोचना भी कर सके। इससे वाद-विवाद एवं हस्तक्षेप की गुणवत्ता पर बड़ा प्रभाव पड़ेगा तथा सांसदों एवं मतदाताओं के बीच बातचीत बढ़ेगी।

पिछले कुछ वर्षों में संसद के कार्यों हेतु संसदीय पोर्टल एवं सर्च इंजन बनाए हैं, जिसमें संसद एवं सांसदों के वर्तमान कामों को आकलन कर डिजिटलाइज्ड किया गया है और उन्हें आसानी से उपलब्ध कराया गया है।  ऐसे पोर्टल एवं प्लेटफॉर्म के जरिये युवाओं को राजनीति से जोड़ा जा सकता है। ताकि वे संसद को एक संस्थान के रूप में जान पाएंगे और इससे खुद को जोड़ सकेगें। इस परिवर्तन एवं प्रक्रिया को सक्षम तरीके से न सिर्फ संसद में लागू किया जाना चाहिए, बल्कि भविष्य में विधानसभाओं एवं स्थानीय निकायों को भी इसके दायरे में लाया जाना चाहिए।

केंद्र की मौजूदा सरकार एवं संसद यह मानती है कि तकनीक के जरिये नागरिकों को सशक्त बनाया जाए और संसद एवं लोकतंत्र को आने वाले समय में बदला जा सके।  संसदीय बिरादरी के सदस्यों के रूप में हमें इस बदलाव के लिए हमारे सभी संसदीय संस्थानों को इस परिवर्तन हेतु एक-दूसरे का सकारात्मक रूप से समर्थन करना चाहिए और उन्हें डिजिटल रूप से सक्षम बनाना चाहिए।

हम जानते है कि संसद पूरी तरह तभी प्रभावी हो पाएगी, जब नागरिक भी ऑनलाइन हों। पिछले करीब ५ साल में करोड़ों नागरिक इंटरनेट से जुड़े हैं, और 2022 में, भारत के 75वें स्वतंत्रता दिवस के समय इंटरनेट से जुड़े लोगों की संख्या और अधिक हो जाएगी, फलत: वे अपने प्रतिनिधियों, सरकार एवं विधायिका से जुड़कर सूचनाएं, सेवाएं और जवाबदेही मांग सकेंगे।

निश्चित ही डिजिटल संसद सत्र की व्यवस्था विश्व में अभी तक कहीं पर भी किसी भी देश में नहीं हुई है। यहां तक कि तकनीकी क्षेत्र से परिपूर्ण देश भी संसद की कार्रवाई को डिजिटल तरीके से नहीं चला पा रहे हैं । लेकिन इसका अर्थ यह तो नहीं कि भारत भी इस तकनीक का सहारा लेकर अपने संसदीय सत्र को डिजिटल के माध्यम से न चलाएं । हमारे युवा वैज्ञानिक, सॉफ्टवेयर इंजीनियर विश्व के अनेक देशों में अपने ज्ञान का उपयोग कर उन्हें तकनीकी क्षेत्र में सक्षम करें रहे हैं ।  अब कोरोना वायरस कि विश्व महामारी ने हमारे देश के प्रतिभाशाली युवाओं को पुन: देश में वापस आने के लिए मजबूर कर दिया है। वैसे ही देशांतरगत मजदूरों का पलायन देश की संपूर्ण रचना को बदल रहा है। ऐसे में देश की इन प्रतिभाशाली युवाओं का सहारा लेकर उन्हें इस देश की प्रगति का भागीदार बनाने की व्यवस्था की जानी चाहिए। हम निश्चित ही विश्व के सामने एक अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत कर सकते हैं। ऑनलाइन व डिजिटल तकनीक के माध्यम से हम संसद सत्र की कार्यवाही को अंजाम दे सकते हैं। वर्तमान सरकार को चाहिए इस दिशा में कार्य कर शीघ्र ही संसद की कार्यवाही को डिजिटलाइज कर सकें।

 

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