जीव वैज्ञानिकों के लिए चुनौती और अवसर है-कोविड 19

इंटीग्रेटेड चिकित्सा पद्धति से किया जा सकता है, कोरोना का उपचार यह कहा विश्व के वैज्ञानिकों ने



आगरा। डॉ. भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय आगरा के स्कूल ऑफ लाइफ साइंसेज में कोरोना महामारी के समय माइक्रोबायोलॉजी एवं बायोटेक्नोलॉजी के योगदान पर चल रहे दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय वेबीनार का आज (19 मई 2019) अंतिम दिन था ।


इस में भाग लेते हुए देश के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. डी. एस. चैहान (नेशनल इंस्टिट्यूट जालमा), प्रोफेसर राम लखन सिंह (राम मनोहर लोहिया विश्व विद्यालय अयोध्या), डॉ. हीरावती देवाल (विषाणु प्रयोगशाला गोरखपुर), डॉ यश गुप्ता (लोयला यूनिवर्सिटी, शिकागो अमेरिका),  डॉ. राजा भट्टाचार्य (हावर्ड मेडिकल स्कूल अमेरिका), डॉ प्रवीण केंद्रेकर (साउथ अफ्रीका) ने आज अपने व्याख्यान दिए ।


      डॉ. रजनीश अग्निहोत्री (स्कूल ऑफ लाइफ साइंसेज आगरा) द्वारा आज के प्रथम सत्र की रूपरेखा प्रस्तुत की गई। डॉ. अंकुर गुप्ता व डॉ. अवनीश कुमार द्वारा वेबीनार का संयोजन किया गया।


     देश के प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. डी. एस. चैहान ने अपने संबोधन में  सूक्ष्म जीव वैज्ञानिकों द्वारा इस विषाणु के उपचार हेतु अनुसंधान में सुरक्षात्मक उपायों पर प्रमुख जोर दिया । प्रयोगशाला में अपनाए जाने वाले बायोसेफ्टी नियमों की विस्तृत जानकारी दी । आम जनमानस को  मास्क, सेनिटाइजिंग व फिजिकल डिस्टेंसिंग का पालन करना चाहिए क्योंकि जब तक इसकी वैक्सीन उपलब्ध नहीं हो जाती इससे बचाव ही इसका सर्वोत्तम उपचार है।


     डॉ. हीरावती देवाल (विषाणु विज्ञान प्रयोगशाला गोरखपुर) ने इस महामारी के संक्रमण के विस्तार पर चिंता जाहिर करते हुए कहा कि हम अल्प समय में देश में इस संक्रमण की टेस्टिंग में सफल हुए हैं । आज देश की लगभग 260 प्रयोगशाला में इसकी टेस्टिंग संभव है परंतु जिस प्रकार इसके संक्रमण की दर में बढ़ोतरी देखने को मिल रही है उसी हिसाब से टेस्टिंग की संख्या बढ़ाने के  प्रयास किए जा रहे हैं, जल्दी ही हम 200000 टेस्ट रोजाना करने में सक्षम हो जाएंगे।


 प्रोफेसर राम लखन सिंह (राम मनोहर लोहिया विश्व विद्यालय अयोध्या) ने बताया सूक्ष्म जीव वैज्ञानिकों द्वारा 2020 के अंत तक इस विषाणु का टीका निर्माण की संभावना है। यह विषाणु अपनी सरचना में बदलाव बहुत जल्दी नहीं ला पा रहा है, इसलिए इसके ऊपर अनुसंधान कोई मुश्किल कार्य नहीं है। हाइड्राक्सीक्लोरोक्वीन इस संक्रमण के उपचार मे बहुत कारगर है। इस विषय में बोलते हुए डॉ. प्रवीण केंद्रेकर (साउथ अफ्रीका) ने बताया इस दवाई द्वारा विश्व के लोगों का उपचार किया जा रहा है एवं भारत इसमें प्रमुख भूमिका निभा रहा है।  


डॉ यश गुप्ता (लोयला यूनिवर्सिटी, शिकागो अमेरिका) ने इस संक्रमण के उपचार हेतु इंटीग्रेटेड चिकित्सा पद्धति पर जोर दिया उन्होंने कहा कि अमेरिका में इस पद्धति का प्रयोग बहुतायत में किया जा रहा है। डॉक्टर राजा भट्टाचार्य (अमेरिका) ने बताया कि दिमागी उपचार में प्रयुक्त की जाने वाली दवाईया भी इस संक्रमण के निदान में उपयोगी सिद्ध हुई हैं। उन दवाइयों में थोड़ा बहुत बदलाव करके इस संक्रमण के उपचार हेतु प्रभावी दवाई का निर्माण किया जा सकता है।


      कुलपति प्रोफेसर अशोक मित्तल ने अपने संबोधन में कहा विश्वविद्यालय विश्व भर के संस्थानों के साथ समन्वय स्थापित कर जल्द ही अपने उच्च शिखर को छू लेगा। उन्होंने वेबीनार में भाग लेने हेतु वैज्ञानिकों व प्रतिभागियों का विशेष आभार प्रकट किया। उन्होंने इस सफल अंतरराष्ट्रीय वेबीनार के आयोजन पर स्कूल ऑफ लाइफ साइंसेज की पूरी टीम को विशेष रूप से बधाई दी। कार्यक्रम के अंत में धन्यवाद ज्ञापन की प्रस्तुति प्रोफेसर समन्वयक डॉ आशा अग्रवाल द्वारा की गई।


     आयोजन सचिव डॉ. सुरभि महाजन व डॉ. मोनिका अस्थाना ने बताया कि इस वेबीनार में भाग लेने हेतु प्रतिभागियों ने गजब का उत्साह दिखाया व लगभग ढाई हजार रजिस्ट्रेशन हुए। डॉक्टर सुरभि महाजन ने इस सफल आयोजन के लिए वाइस चांसलर प्रो अशोक मित्तल, डॉ वीके सारस्वत (डायरेक्टर आईटी), नमन गर्ग व उनकी टीम, अधिष्ठाता स्कूल ऑफ लाइफ साइंस प्रोफेसर पीके सिंह, प्रोफेसर भूपेंद्र स्वरूप शर्मा, डॉ. अंकुर गुप्ता, डॉ. अवनीश कुमार, डॉक्टर उदिता तिवारी को इस वेबीनार के सफल आयोजन का श्रेय दिया।


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