किस्सा सब इस रोटी का है...


किस्सा सब इस रोटी का है,
           किसको आज सुनाएं हम,
कीमत इसकी कितनी महँगी
                कैसे आज बताएं हम,
गवा दिया सबकुछ पहले ही,
              खुदको कैसे बचाएं हम,
हालातों के आगे बेबस,
     मजबूर हैं हम, मजदूर हैं हम ll

इसी रोटी की खातिर घर से,
                  दूर चले आये थे हम,
खून पसीना दे कर अपना
           दो वक्त की रोटी पाते हम,
सर्दी गर्मी हमें भी लगती,
        सब कुछ ही सह जाते हम,
हालातों के आगे बेबस,
    मजबूर हैं हम, मजदूर हैं हम ll


सफर बहुत ही लम्बा है,
        पर फिर भी चलते जाते हम,
अपने बच्चों की देख के हालत,
                 आँसू खूब बहाते हम,
माँ की ममता है हम में भी, 
       पिता का दिल भी रखते हम,
हालातों के आगे बेबस,
     मजबूर हैं हम, मजदूर हैं हम ll


जान हमारी इतनी सस्ती,
            हर दिन कुचले जाते हम,
इतनी महँगी रोटी होंगी,
             काश समझ पाते ये हम,
इस रोटी की खातिर कब तक,
                 इतने कष्ट उठाएं हम,
हालातों के आगे बेबस,
    मजबूर हैं हम, मजदूर हैं हम ll
                       


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