ललितपुर  में जन्मे डॉ हुकमचंद  भारिल्ल

जन्मदिन पर विशेष



25मई, 1935 को ललितपुर  में जन्मे डॉ हुकमचंद  भारिल्ल   ललितपुर आज भारत सहित 75 से अधिक देशों में जैन दर्शन व धर्म के प्रसिद्ध विद्वान, विचारक, मनीषी, चिंतक व कुशल प्रवचनकार के रूप में जाने जाते है। अखिल भारतवर्षीय जैन विद्वत्परिषद में आपका नाम बड़े ही आदर-सम्मान के साथ लिया जाता है। डॉक्टर भारिल्ल ने अभी तक जैन दर्शन, धर्म व अध्यात्म से जुड़ी शताधिक रचनाएँ की है। आपके द्वारा रचित कृतियों को जैन समाज का 10 लाख से अधिक लोगों का समूह अध्ययन करता है। आप पिछले 37वर्षों से विदेश यात्राओं पर जाकर जैन दर्शनवधर्म का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं। सन् 2019 में राजस्थान सरकार द्वारा संस्कृत दिवस के अवसर पर आपको संस्कृत विद्वान के रूप में सम्मानित किया जा चुका है। इससे पूर्व सन् 2017 में केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय के द्वारा आपको 'संस्कृत सेवा वृत्ति सम्मान से भी सम्मानित किया जा चुका है। सन-2009-2010 वर्ष में जब आपकी हीरक जयंती मनाई गई तो उस समय आपको संपूर्ण विश्व के 75 से अधिक देशों ने सम्मान प्रदान किया, आपका अभिनंदन किया। आपको वर्तमान में विविध शिविरों ,धार्मिक कार्यक्रमों, पंच कल्याणकों व वेदी प्रतिष्ठा से जुड़े कार्यक्रमों के अतिरिक्त जिनवाणी चैनल व यूट्यूब के माध्यम से भी देश-विदेश में सुना जा रहा है। समय-समय पर विविध समाचार पत्र समूहों ने व पत्र-पत्रिकाओं के संपादकों ने आपके साक्षात्कार लिए है, जिन्हें संबद्ध समाचार पत्रों व पत्र- पत्रिकाओं में प्रकाशित भी किया गया है। अभी तक आपके निर्देशन में 54 धार्मिक प्रशिक्षण शिविर, 42 आध्यात्मिक शिक्षण शिविर व 22 महाविद्यालय स्तरीय शिक्षण शिविरों का आयोजन किया जा चुका है।  'वीतराग विज्ञान 'नामकमासिक पत्रिका, जोकि आपके द्वारा कई वर्षों से संपादित की जा रही है, इस पत्रिका का प्रकाशन हिंदी, मराठी व कन्नड़ इन तीन भाषाओं में किया जा रहा है। आपके द्वारा लिखित निबंध, कहानी व उपन्यासों को विद्यालयों व महाविद्यालयों ने अपने पाठ्यक्रम में भी सम्मिलित किया है। आपके द्वारा रचित शताधिक कृतियों में से कुछ विशेष रूप से पढ़ी जाने वाली कृतियों का अनुवाद मराठी, कन्नड़,गुजराती, तमिल व आंग्ल भाषाओं में भी किया गया है। आपका नाम उन विद्वानों की श्रेणी में आता है,जो कभी सुविधाओं के मोहताज नहीं रहे जैसी समयानुरूप परिस्थितियां रही ,उन्हीं में आप तत्व प्रचार-प्रसार हेतु अपने आपको क्रियाशील बनाकर भगवान महावीर की वाणी को प्रभावी रूप में लोगों तक पहुंचा रहे हैं। अभी लॉकडाउन के समय में भी 11 मई से 17 मई तक आयोजित हुए धार्मिक शिविर में देश-विदेश के 13000 से अधिक लोगों ने ऑनलाइन भाग लिया और आपको बड़े ही मनोयोग से सना। आपकी सरलता व उन्मवत हास्य सभी को आकष्ट करता है। आपके द्वारा शिक्षित- दीक्षित युवा विद्वानन केवल प्रशासनिकव मैनेजमेंट से जुड़ी सेवाओं में अपितु बड़े-बड़े विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों व विद्यालयों के उच्च पदों पर आसीन हैं। समय-समय पर विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों व अन्य सामाजिक कार्यक्रमों में 'कीनोटस्पीकर के रूप में आमंत्रित किया जाता रहा है। आपने अपने जैन धर्म, दर्शन से जुड़े विचारों के साथ-साथ समाज को भी एकनयी सोच, एक नया चित्तन प्रदान किया है। आज आप संपूर्ण जैन समाज में 'छोटे दादा' के नाम से जाने जाते है। आपने 2000 वर्ष पूर्व हए आचार्य कंदकंद देव के द्वारा रचित पंचपरमागम ग्रंथों पर सरल सुबोध शैली में टीकाएँ लिखकर कंदकंद देव की वाणी को प्रसारित करने का श्लाघनीय कार्य किया है। आपने जैन दर्शन व धर्म से जुड़े स्याद्वाद, अनेकांतवाद, अपरिग्रहवाद क्रमबद्धपर्याय जैसे विषयों को जिस सरलतम शैली में प्रतिपादित किया है, उससे ये सारे सिद्धांत समाज में चर्चा व स्वाध्याय का विषय बन चुके हैं। आपन केवल कलम के धनी है, अपितु एक अच्छे प्रवक्ता व प्रभावी प्रवचनकार भी हैं। आपने अभी तक जैन दर्शन व धर्म से जड़े छोटे-बड़े विविध विषयों पर लक्षाधिक प्रवचन कर जैन दर्शन/धर्म को केवल भारत में ही नहीं अपितु विदेश की धरती पर भी विस्तार देने का कार्य किया है। आपकी प्रवचन शैली इतनी प्रभावी है कि जब श्रोता आपकोसनने बैठते हैं तो आपसे के मुख से निकल रहे विविध उदाहरण, प्रसंग, सिद्धांत व संस्कृत साहित्य के विविध विचार सबको आकृष्ट करते हैं और जब तक आप विषय को रखते जाते हैं तब तक सब मनोयोग पूर्वक आपको सुनते ही रहते हैं। समय-समय पर देशविदेश में होने वाले सेमिनार व गोष्ठियों में आपको आमंत्रित किया जाता रहा है। 300 वर्ष पहले जयपुर में ही जन्मे पंडित टोडरमल जी के व्यक्तित्व को आधार बनाकर जोशोधकार्य किया है, उससे आपने न केवल पंडित टोडरमल जी को, अपितु उनके द्वारा लिखित मोक्षमार्ग प्रकाशक ग्रंथको भी जैन समाज में चर्चा व स्वाध्याय का विषय बना दिया है। आपके द्वारा लिखित साहित्य में काव्य, कहानी, नाटक, उपन्यास, जीवनी, निबंध जैसी हिंदी की सभी विधाएँ शामिल है। आपके निर्देशन में चल रहे 'पंडित टोडरमल सिद्धांत महाविद्यालय' व आपके ही निर्देशन में संपूर्ण भारतवर्ष में चल रहे अठारह अन्य महाविद्यालयों से अभी तक लगभग 1100 से अधिक विद्वान तैयार होकर निकल चुके हैं और देशविदेश में तत्व के प्रचार-प्रसार में बड़े ही समर्पित भाव से लगे हुए हैं। डॉक्टर भारिल्ल ने 'पश्चात्ताप' खंडकाव्य की रचना करके जहाँ राम के जीवन को नए रूप में उपस्थापित किया, वहीं 'भरत का अंतर्दवंद' काव्य द्वारा राजा ऋषभदेव के पुत्र चक्रवर्ती भरत के जीवन को नवरूप प्रदान करने का कार्य किया है। आपने अभी हाल ही के दिनों में श्रमण शतक', 'समाधि मरण व सल्लेखना' तथा 'आत्मचिंतन -जैसी वैराग्योत्पादक कृतियों की रचना शामिल है। आपके निर्देशन में चल रहे 'पंडित टोडरमल सिद्धांत महाविद्यालय' व आपके ही निर्देशन में संपूर्ण भारतवर्ष में चल रहे अठारह अन्य महाविद्यालयों से अभी तक लगभग 1100 से अधिक विद्वान तैयार होकर निकल चुके हैं और देशविदेश में तत्व के प्रचार-प्रसार में बड़े ही समर्पित भाव से लगे हुए हैं। डॉक्टर भारिल्ल ने 'पश्चात्ताप' खंडकाव्य की रचना करके जहाँ राम के जीवन को नए रूप में उपस्थापित किया, वहीं 'भरत का अंतर्दवंद' काव्य द्वारा राजा ऋषभदेव के पुत्र चक्रवर्ती भरत के जीवन को नवरूप प्रदान करने का कार्य किया है। आपने अभी हाल ही के दिनों में श्रमण शतक', 'समाधि मरण व सल्लेखना' तथा 'आत्मचिंतन -जैसी वैराग्योत्पादक कृतियों की रचना करके अखिल जैन समाज को अपना हर पल वैराग्यमय बनाने हेतु प्रेरित किया है। में अपने लेखको अंतिम शब्द देते हुए यही कहूँगा कि जब 100 साल बाद जैन दर्शन व धर्म से जुड़े विद्वानों की परंपरा का इतिहास लिखा जाएगा तो उसमें आदरणीय छोटे दादा डॉ हुकमचंद जी भारिल्ल का नाम बीसवीं सदी व 21 वीं सदी के एक महान विद्वान, कुशल व ताकिक प्रवचनकार व बेजोड़ प्रतिभा संपन्न साहित्यकार के ख्य में उटैंकित किया जाएगा। 


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