मजदूर वर्ग पर छाये संकट के बादल के बीच सरकार को जगाने के लिए संघर्ष-रामगोविंद चौधरी,नेता प्रतिपक्ष

लखनऊ। उत्तर प्रदेश की राजनीतिक बिसात पर एक नई मुहिम बदलते वक्त में जब प्रतिरोध के नए प्रतिमान गढ़े जा रहे हैं। उस दौर में नेता प्रतिपक्ष रामगोविंद चौधरी ने अपने आप को राजनीति के प्रथम पायदान में सक्रिय करने के लिए उम्र का बंधन छोड़कर नए सोशल मीडिया पर सक्रिय होकर समाज को राजनीतिक वातावरण को एक दिशा देने के प्रयास के तहत पहल करने के लिए आगे बढ़े हैं। अपने आप को इस विधा से दूर रखे रहे नेता प्रतिपक्ष रामगोविंद चौधरी ने समाज के प्रति अपनी बचनबद्धता और मजदूर वर्ग पर छाये संकट के बादल के बीच सरकार को जगाने के लिए उसी स्टाइल में संघर्ष का श्री गणेश करने की ठानी है।

 

इस मुहिम के लिए नये नारे गढे है।इन नारो के साथ एक पाती लिखी है-


 

मजदूर बचाओ।

देश बचाओ।।

 

साथियों,

भारत के पास अनमोल श्रम शक्ति है। इसके बल पर हम भारतीय मजदूर जहाँ रहते हैं, वहाँ विकास का पहिया गतिशील रहता है। अचानक हुई लाकबन्दी से दुनियां में श्रम शक्ति का पर्याय भारतीय मजदूर अपने ही देश में बेहाल हो गया है। रोजी तो गई ही,उसके घर लौटने के रास्तों पर भी प्रतिबंध है, जगह जगह कानून लाठी लिए खड़ा है।

 

साथियों,

मुख्य रास्तों से अलग हटकर आने की कोशिश में यह मजदूर रोज मर रहा है। उसे कहीं मालगाड़ी कुचल दे रही है, कहीं चारपहिया गाड़ी कुचल दे रही है, कहीं पुलिस पीट रही है, कहीं केमिकल छिड़का जा रहा है, कहीं मुर्गा बनाया जा रहा है तो कहीं बीच में रोककर फिर वहीं वापस भेज दिया जा रहा है, जहाँ से किसी तरह चलकर अपना आधा तिहाई रास्ता पूरा किया था।

 

साथियों,

इसकी वजह दुनियां में श्रम शक्ति का पर्याय भरतीय मजदूर इस समय दाने दाने को मोहताज है। आम आदमी जगह जगह इनकी मदद को आगे नहीं आता तो इनकी स्थिति और खराब होती। सरकारों की कुल सदाशयता या तो समाचारों में है या इनके शवों को घर पहुँचाने में। जिन मजदूरों को विशेष ट्रेन से घर भेजा गया है, उनसे भी किराया से अधिक किराया वसूला गया है। व्यवहार वह किया गया है जो जानवरों के साथ होना भी मुनासिब नहीं है।

 

साथियों, 

जरूरत इन मजदूरों को सहारा देने की है। हो क्या रहा है? उन श्रम कानूनों को समाप्त कर दिया गया जो इन्हें असमय में कमोवेश सुरक्षा देते रहे हैं।

 

साथियों,

कोरोना को हराने के लिए हमको आपको घर के भीतर रहना है। आपस में फिजिकल दूरी बनाकर भी रहना है लेकिन इस बर्बर स्थिति पर चुप भी नहीं रहना है। यह चुप्पी केवल मजदूरों के लिए नहीं, देश के लिए घातक होगी।

 

साथियों,

इस चुप्पी को हम 17 मई को अपने अपने घरों में,

"मजदूर बचाओ।

  देश बचाओ "।।

की आवाज देकर तोडेंगे।

नारा लगा कर नहीं, जुलूस निकाल कर नहीं, प्रदर्शन करके नही, केवल सोशल मीडिया में 17 मई को अपना अपना आग्रह लिखकर,

 

"मजदूर बचाओ।

  देश बचाओ "।।

17 मई को ही क्यों? इसका जवाब 12 मई को यहीं।

 

रामगोविन्द चौधरी

नेता प्रतिपक्ष, उत्तर प्रदेश।

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