।। प्रकृति का प्रस्ताव।।


तुमने लोहा बोया था
मेरी कोमल छाती पर,
वर्षों मैं भी रोया था
अपनी फूटी किस्मत पर,


आज मिला है मौका देखो,
तुम अपनी हद में रहकर,
खिल रहा हूं मुझको देखो,
आज अपनी ज़िद में आकर,


जब तुम जीतो मैं हारूंगा,
जब तुम हारो मैं जीतूंगा,
संधि का कोई दूत बनो रे,
कोई तो अंगद, कृष्ण बनो रे,


मिट न जाएं बस्ती तेरी,
लुट न जाए हस्ती तेरी,
तेरा मेरा गठबन्धन हो
ऐसी अब तुम चाल चलो रे।


लेखिका👉
आशा देवी, सहायक अध्यापिका
प्राथमिक विद्यालय, मड़ावरा क्रमांक-2, जनपद-ललितपुर


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