रिज़वाना की मौत और गिद्धों का मौन !!



प्रगतिशील नारीवादी पत्रकार रिज़वाना तबस्सुम अब नहीं रहीं। सोमवार को उनके आत्महत्या की खबर से लोग स्तब्ध रह गए। एक जिम्मेदार शहरी के साथ प्रगतिशील विचार की होने के बावजूद रिज़वाना का यूं आत्महत्या करना समझ से परे है। आत्महत्या जैसी कोशिशें बेहद तकलीफदेह और अकेलेपन की स्थिति का नतीज़ा होती हैं। रिज़वाना किसी तकलीफ से गुज़र रही थी यह किसी को खबर भी नहीं हुईं। दुःखद यह कि वह अपनी निजी जिंदगी में इतनी अकेली थीं कि किसी से अपना दुःख भी साझा नहीं कर पायीं। आम तौर पर किसी प्रगतिशील वह भी खबरनवीसी के पेशे से जुड़ी किसी महिला के इस तरह से तकलीफ में होने, अकेलेपन का शिकार होकर आत्महत्या को अंजाम देने की बात सोची भी नहीं जा सकती। उसका कारण है कि प्रगतिशीलता की पूरी तालीम में मर्द से संघर्ष ही मुख्य तत्व होता है।



लेकिन इन सब के बीच जो सबसे दुःखद पहलू है वह यह कि रिज़वाना जिन तमाम महिलावादियों, प्रगतिशील साथियों को अपनी खबर का हिस्सा बना कर उन्हें समाज में प्रतिष्ठा दिला रहीं थीं, या कहें कि उनकी राजनीति चमका रही थीं, उनके लिए रिज़वाना की आत्महत्या कोई मुद्दा ही नहीं है। क्यों ? यह जानना बेहद जरुरी है। आप कल्पना करिये कि रिज़वाना तबस्सुम ने अपने बोर्ड पर शमीम नोमानी की जगह किसी शमशेर सिंह का नाम लिखा होता और वह शमशेर सिंह गलती से भी किसी हिंदूवादी संगठन के आस-पास जुड़ा हुआ होता, भले ही सीधे न जुड़ा होता तो भी सोचिये खबर क्या होती ?



अब तक ऐसे किसी भी अवसर की ताक में गिद्ध दृष्टि लगाये बैठे तमाम फर्जी डॉट कॉमों पर खबरें नुमाया हो रही होतीं। बनारस से लेकर दिल्ली तक अलीगढ से लेकर जनेवि अजर जामिया तक लाल-काली स्याहियों में डूबी कलमों से लिखी तख्तियां लहरा रही होतीं। औरत की आज़ादी के नाम पर मर्दवादी सत्ता की लानत-मलानत करते हुए भारतीय सभ्यता-संस्कृति का अर्थियां सजायी जातीं। महिलावादियां मोमबत्ती लिए फांसी की मांग कर रही होतीं। तमाम धंधेबाज संस्थाओं के बैनर सज़ गए होते और किसी नए प्रोजेक्ट का बजट बनाया जा रहा होता। और न जाने क्या क्या। लेकिन ये सब नहीं हो पाया या कहें कि ये सब करने का मौका नहीं मिला। जानते हैं क्यों ? क्योंकि रिज़वाना को छेड़ने वाला शमीम था। उसका रिश्ता किसी राष्ट्रवादी या हिंदूवादी संगठन से नहीं बल्कि समाजवादी पार्टी से था। जिसके नेता बलात्कार के मामलों में मानते हैं कि लड़कों से गलतियां हो जाती हैं। अगर वह कोई हिन्दू या हिंदूवादी होता तो बात केवल गिरफ़्तारी पर न रुकती। मुद्दे को तब तक गरमाया जाता जब तक कि राजनीति चमकाने के लिए कोई दूसरा मुद्दा न मिल जाता।



रिज़वाना दोष तुम्हारा नहीं है। दोष उस विचार का है जो मुद्दों को धर्म और जाति के रूप में देखती और परिभाषित करती है । प्रगतिशील सामंतवाद की गिद्ध दृष्टि से समाज को नोचने के लिए हर वक़्त घात लगाये बैठे रहते हैं।

रूपेश पान्डे की एफ.बी. से साभार


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