रुहेलखंड की शौर्य गाथा


पश्चिमी उत्तर प्रदेश में स्थित विभिन्न जनपदों का रुहेलखंड कहा जाने वाला क्षेत्र प्राचीन काल में पांचाल राज्य का अंग था जिसकी अत्यंत वैभवशाली सभ्याता एवं संस्कृति रही है। इस संभाग में वेन तथा बली का राज्य था यहां। राजा ययाति एवं देवयानी का विवाह यहीं पर हुआ था। परशुराम की जन्म भूमि है यह। यहीं जमदग्नि पुत्र ने सहस्त्रबाहु अर्जुन को समाप्त किया था। जिन राजा भरत के नाम पर देश का नाम भारतवर्ष पड़ा उनकी माता शकुंतला एवं पिता दुष्यंत का गंधर्व परिणय हुआ था इस भूमि पर। दशरथ नंदन राजा रामचंद्र के अश्वमेघ यज्ञ का घोड़ा रोका गया था। गौतम बुद्ध ने यहां के नाम राजा एवं जनता को लाभान्वित किया था अपने सद् उपदेशों से। जैन तीर्थकर पार्श्वनाथ ने यहां के वनों में की थी तपस्या। तीर्थंकर महावीर ने किया था पावन विहार। वात्सायन द्वारा कामसूत्र की रचना का सौभाग्य प्राप्त हुआ था इसी धरती पर। पांडवों की पत्नी द्रोपदी का जन्म हुआ था तथा वनवास के समय पांडवों ने यहां के वनों में प्रवास किया था। वेदों की शिक्षा का केंद्र था यह क्षेत्र । दिल्ली के सुल्तानों के सुल्तान बनने के पूर्व कर्म भूमि रही यहां पर। दीन व इल्मरा मरकज रहा यह प्रभाग। नाथ नगरी एंव रजा की जमीं का गौरव प्राप्त है इसे। ऐसे ऐश्वर्य पूर्ण जनपदों की अधिकतम जानकारी का प्रयास है 'रुहेलखंड की शौर्यगाथा' । प्राचीन काल में पांचाल राज्य हिमालय की तलहटी से लेकर गंगा पार यमुना एवं चंबल नदी तक फैला हुआ था। हजारों वर्षों तक गंगा के उस पार एवं इस पार का क्षेत्र संयुक्त पांचाल रहा जिसकी राजधानी अहिच्छत्र महानगर (आंवला, जिला बरेली था। आने वाले समय में पांचाल दो भागों मे बंट गया। गंगा नदी इसकी मध्य सीमा बनी। गंगा के दक्षिण का भाग दक्षिणी) पांचाल एवं उत्तर का भाग उत्तरी पांचाल कहलायामध्य काल में कठेरिया क्षत्रियों के इस समस्त क्षेत्र में स्थापित होने के पश्चात उत्तरी पांचाल कठेर कहा जाने लगा। तथा अफगानिस्तान के रोह क्षेत्र से आकर यहां बसने वाले रोहिल्ला क्षत्रियों के आधार पर कठेर रुहेलखंड भी कहलाया। मैं रुहेलखंड हूं एक परिचयः में उत्तर भारत पर दिल्ली के मुगल बादशाह की हुकूमत थीकठेर क्षेत्र में विभिन्न कठेरिया जमींदार काबिज थे जो कि दिल्ली दरबार को खिराज देते थे और सैनिक टुकड़ी भी नन्दन रखते थे। उसी समय अफगानिस्तान के रोह नामक क्षेत्र से मुस्लिम पठान कठेर में आये। प्रारंभ में यह लोग यहां के जमींदारो की सेनाओ में नौकर रहे। फिर बाद में जब वह इस क्षेत्र के बारे में पूर्ण परिचित हो गए तब इन पठानों ने अपनी सिपाह (सैनिक टुकड़ी) अलग से बना ली। यह लोग रोह से आए थे उस कारण रुहेले कहलाए। उन्होंने यहां के जमींदारों को परास्त करके अपना अधिकार स्थापित कर लिया तथा धीरे-धीरे यह रुहेले समस्त तटेर पर काबिज हो गए। सन 1742 ई. में राजा हरनंद, मुगालिया हुकूमत के फौजेदार को युद्ध में हरा कर रुहेलों ने बिजनौर, अमरोहा, मुरादाबाद, रामपुर, पीलीभीत, बरेली, बदायूं, शाहजहांपुर पर सैनिक टुकड़ियां भेजकर कब्जा करके अपना अधिकार स्थापित कर लिया। रुहेलों ने अधिकार स्थापित किए गए क्षेत्रों में अपनी रियासत कायम की। जितने क्षेत्र पर रियासत स्थापित की गई वह रुहेलखंड कहलाया। रुहेलखंड पर रुहेलों का सन 1774 ई तक अधिकार रहा। उसके बाद नवाब अवध ने अंग्रेजों की सहायता से उस पर कब्जा कर लिया। सन 1801 में रुहेलखंड अंग्रेजों की अधीनता में आ गयाअंग्रेजो ने रियासत रुहेलखंड को कमिश्नरी रुहेलखंड आबाद किया और बरेली को इसका मुख्यालय बनाया जिसके अंर्तगत विभिन्न जिले विभाजित किए गए। आजादी प्राप्त होने के पश्चात सन 1980 ई. रुहेलखंड कमिश्नरी को दो कमिश्नरियों में विभाजित कर दिया गया जो कि अब बरेली एवं मुरादबाद कमिश्नरी कहलाती हैं। अब रुहेलखंड कमिश्नरी का नाम तो समाप्त हो चुका है लेकिन उस संभाग की पहचान रुहेलखंड से ही है। वर्तमान में बरेली कमिश्नरी में जनपद (जिले) पीलीभीत, बरेली, शाहजहांपुर एवं बदायूं तथा मुरादाबाद कमिश्नरी में बिजनौर, जे.पी. नगर( अमरोहा), मुरादाबाद, सम्भल, रामपुर आते हैं। अमृत विचार से साभार


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