संगीत व प्रकृति में मानव दुखों को कम करने अथवा हरने की अपार क्षमता है

संगीत का मानव जीवन से अनंतकाल से अटूट संबंध रहा है। संगीत का आविर्भाव भी जीवन के मनोभावों के अनुरूप ही बचपन से ही होने लग जाता है। हमारी चेतना के मुखर होते ही संगीत का महत्व व उपयोगिता हमारे जीवन में स्वतः ही सिद्ध होने लगती है। हमारे बौद्धिक विकास के समानांतर ही संगीत के प्रति हमारा अनुराग, आकर्षण व सम्बंध स्वयंमेव ही विकसित होने लग जाता है। फिर वह कभी हमारे मनोरंजन का पर्याय बन जाता है तो कभी आनंद व आवश्यकता का जरिया भी।
चाहे दुख के क्षण हों अथवा आनंद की चरम स्थिति, नैसर्गिक रूप से मनुष्य संगीत की दुनिया में डूबकर न केवल आनंद प्राप्त करता है बल्कि अपने मनोभावों को व्यक्त कर अपनी पीड़ा के भारी बोझ से भी हल्का होना चाहता है। साथ ही संगीतमय अभिव्यक्ति से कहीं न कहीं एक प्रकार की शांति की अनुभूति तो होती है, तो दूसरी ओर खुशी, उत्साह अथवा मानसिक संतुष्टि रूपी खुराक भी प्राप्त होती है।
यही नहीं, प्रकृति के विभिन्न अवयवों में भी संगीत के अभाव में उनकी मौलिकता अथवा महत्व की कल्पना ही नहीं की जा सकती है। बिना पशु-पक्षियों के संगीत के, प्रकृति के सार्थक संदेशों मूल संवेदना को भी नहीं जाना जा सकता है। बदलती हुई ऋतुओं के असली सौंदर्य का सही-सही बोध भी नहीं हो पाता है। संगीत में मानव की मनोभावनाओं को नियंत्रित करने की अपूर्व क्षमता है। यह आपको अतीत से जोड़ता है।
प्रसिद्ध थेरैपिस्ट गिलसम एनएच ने ‘द मिरेकल ऑफ म्यूजिक थेरैपी’ में इसके माध्यम से मानवीय रोगों व व्यवहारों में होने वाले लाभकारी परिवर्तनों की व्यापक चर्चा की है। निष्कर्ष है कि संगीत केवल स्वस्थ तंदुरुस्त दिखने वाले मानव समुदाय को ही नहीं लाभान्वित करता, बल्कि रुग्ण मानसिकता अथवा गंभीर बीमारी अथवा अन्य शारीरिक समस्याओं से जूझ रहे रोगियों के रोग हरण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
पर्वतीय भूभागों में अभाव, दुख, परेशानी अथवा विपरीत परिस्थितियों में जीवन जीने को विवश स्त्रियां व बालिकायें खेतों में काम करते हुए अथवा जंगल में घास, लकड़ी काटते हुए निर्जन वनों में अपने दुखों को गा-गाकर धरती के अंक में बो देती हैं व बदले में भूखे पेट अपार सुख व शांति का अनुभव कर स्वच्छ मन से घर लौटती हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि संगीत व प्रकृति में मानव दुखों को कम करने अथवा हरने की अपार क्षमता है।
टेम्पल यूनिवर्सिटी के बोयेर कॉलेज ऑफ म्यूजिक एंड डांस की जेस्सीका किंग्सले (लंदन) ने ‘म्यूजिक थेरैपी, रिसर्च एंड प्रैक्टिस इन मेडिसिन्स’ में इन बातों पर बारीकी से विश्लेषण कर अपना अभिमत स्पष्ट किया है।
संगीत न केवल अपने मानसिक धरातल को केवल परिमार्जित करता है अपितु मन व शरीर को एकाग्र कर एक समस्याओं के समाधान में भी सहायता प्रदान करता है। संभवतः संगीत के इस प्रभावी नैसर्गिक महत्व से प्रभावित होकर ही अबोध बालक का रुदन शांत हो जाता है और वह भीतर ही भीतर आनंद की प्राप्ति करने लगता है।
डॉ. आर्थर हार्वे ने ‘द पॉवर ऑफ म्यूजिक एज थेरैपी’ में माना है कि संगीत तनाव के हार्मोनों में कमी लाता है तथा भावात्मक राग को बढ़ाकर मानव समस्याओं के समाधान में सहायक होता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि संगीत मनुष्य की शारीरिक भावनात्मक, मानसिक, सामाजिक तथा आध्यात्मिक विकास के साथ-साथ रोगियों को शारीरिक रूप से स्वस्थ बनाने में भी मदद करता है। इससे प्रभावितों की जरूरतों को सीधे-सीधे संगीत अपने प्रभाव व प्रभुत्व से सुधारने का प्रयास करता है।
दरअसल, संगीत, चिंता, तनाव व श्वास संबंधी रोगों को कम करता है तथा इस थेरैपी से मरीजों के स्वास्थ्य में बेहतर सुधार देखा गया है। संगीत, मष्तिष्क के कार्यों को पुनः प्रारंभ करता है, जिससे स्मृतियों को एक बैकडोर मिलता है। यह हमारे न्यूरो नेटवर्क से जुड़ा होता है। उनका मानना है कि यदि व्यक्ति दस माह तक प्रत्येक सप्ताह तीन घंटे संगीत सुनता है तो उनकी पहचानने की शक्ति में कई गुना इजाफा ही जाता है।
कोई भी व्यक्ति, चाहे वह दिमागी तौर पर परेशान हो या शारीरिक विकलांगता, चिकित्सकीय या काल प्रभाव जैसी परेशानियों को भी संगीत थेरैपी आसानी से हल करने में सक्षम हो पाती है। संगीत थेरैपिस्ट सामान्य प्रकार की बीमारियों से लेकर मनोरोग आदि बीमारियों से भी निजात दिलाने में सक्षम है। उनका मानना है कि संस्थानों में कार्यरत कर्मियों का स्वास्थ्य सुधार इसके माध्यम से संभव है।
संगीत थेरैपी किस प्रकार भिन्न है, यह रोग से जूझ रहे रोगी तथा उस रोग का निदान करने वाले संगीत थेरैपिस्ट के अनुप्रयोगों पर निर्भर करता है। इसमें रोगी को अपनी भावनाओं को संगीत के माध्यम से अभिव्यक्त करने की करने का विकल्प थेरैपिस्ट द्वारा दिया जाता है। अतः नीरोग जीवन के लिए आज यह अत्यंत महत्वपूर्ण थेरैपी सिद्ध हो चुकी है।


दैनिक ट्रिब्यून से  साभार


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