संस्कार घर से शुरु होते हैं


जब मैं किसी मुस्लिम परिवार के पांच साल के बच्चे को भी बाक़ायदा नमाज़ पढ़ते देखता हूँ तो मुझे बहुत अच्छा लगता है। मुस्लिम परिवारों की ये अच्छी चीज़ है कि वो अपना धर्म और अपने संस्कार अपनी अगली पीढ़ी में ज़रूर देते हैं। कुछ पुचकार कर तो कुछ डराकर, लेकिन उनकी नींव में अपने बेसिक संस्कार गहरे घुसे होते हैं।


हिन्दू धर्म चाहें कितना ही अपने पुराने होने का दावा कर ले, पर इसका प्रभाव अब सिर्फ सरनेम तक सीमित होता जा रहा है। मैं अक्सर देखता हूँ कि मज़ाक में लोग किसी ब्राह्मण की चुटिया खींच देते हैं। वो हँस देता है।


एक माँ आरती कर रही होती है, उसका बेटा जल्दी में प्रसाद छोड़ जाता है, लड़का कूल-डूड है, उसे इतना ज्ञान है कि प्रसाद गैरज़रूरी है।


बेटी इसलिए प्रसाद नहीं खाती कि उसमें कैलोरीज़ ज़्यादा हैं, उसे अपनी फिगर की चिंता है।


छत पर खड़े अंकल जब सूर्य को जल चढ़ाते हैं तो लड़के हँसते हैं।


दो वक़्त पूजा करने वाले को हम सहज ही मान लेते हैं कि साला दो नंबर का पैसा कमाता होगा, इसीलिए इतना अंधविश्वास करता है। 'राम-राम जपना, पराया माल अपना' ये तो फिल्मों में भी सुना है।


इस पर माँ टालती हैं 'अरे आज की जेनरेशन है जी, क्या कह सकते हैं, मॉडर्न बन रहे हैं।'


पिताजी खीज के बचते हैं 'ये तो हैं ही ऐसे, इनके मुँह कौन लगे'।


नतीजतन बच्चों का हवन-पूजा के वक़्त हाज़िर होना मात्र दीपावली तक सीमित रह जाता है।


यही बच्चे जब अपने हमउम्रों को हर शनिवार गुरुद्वारे में मत्था टेकते या हर शुक्रवार विधिवत नमाज़ पढ़ते या हर रविवार चर्च में मोमबत्ती जलाते देखते हैं, तो बहुत फेसिनेट होते हैं। सोचते हैं ये है असली गॉड, मम्मी तो यूंही थाली घुमाती रहती थी। अब क्योंकि धर्म बदलना तो पॉसिबल नहीं, इसलिए मन ही मन खुद को नास्तिक मान लेते हैं।


शायद हिन्दू अच्छे से प्रोमोट नहीं कर पाए। शायद उन्हें कभी ज़रूरत नहीं महसूस हुई। शायद आपसी वर्णों की मारामारी में रीतिरिवाज और हवन पूजा-पाठ 'झेलना' सौदा बन गया।


वर्ना...


सूरज को जल चढ़ाना सुबह जल्दी उठने की वजह ले आता है।


सुबह हवन-पूजा करना नहाने का बहाना बन जाता है।
और मंदिर घर में रखा हो तो घर साफ सुथरा रखने का कारण बना रहता है।
भजन बजने से जो ध्वनि होती है वो मन शांत करने में मदद करती है।
तो आरती गाने से कॉन्फिडेंस लेवल बढ़ता है।
हनुमान चालीसा तो डर को भगाने और शक्ति संचार करने के लिए सर्वोत्तम है।
सुबह हवन करके निकलो तो पुरा बदन महकता हैं, टीका लगा लो तो ललाट चमक उठता है। प्रसाद में मीठा खाना तो शुभ होता है... भई, टीवी में एड नहीं देखते.?


संस्कार घर से शुरु होते हैं। जब घर के बड़े ही आपको अपने संस्कारों के बारे में नहीं समझाते तो आप इधर-उधर भटकते ही हैं। इस भटकन में जब आपको कोई कुछ ग़लत समझा जाता हैं, तो आप भूल जाते हो कि आप उस सनातन सभ्यता का मज़ाक बना रहे हो, जिस पर आपका पुरा संसार टिका है, जिस पर आपके माता-पिता का विश्वास टिका है।


कभी किसी धर्म का मज़ाक नहीं उड़ाया है, लेकिन किसी को भी इतनी छूट नहीं दे कि  सत्यसनातनवैदिक_धर्म का मज़ाक बनाये।


कम से कम मेरे लिए तो हिन्दू होना कोई शर्म की बात नहीं रही। आपके लिए हो भी तो मज़ाक न बनाएं, चाहें जिसकी आराधना करें लेकिन धर्म को धिक्कारें नही, कमजोर ना बनाएं।


हर वर्ग के मेरे भाईयों से अनुरोध है कि जीवन मे एक बार श्रीमद्भागवत गीता अवश्य पढ़े, अपने बच्चों को रामायण के बारे में महाभारत के बारे में बताएं या फिर आजकल #दूरदर्शन पर जरूर दिखाएं।


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