शास्त्रीय संगीत के सुरों को गूंथता रामपुरसहसवानघराना

शास्त्रीय संगीत सुनने और सुनाने की समझ जरूरी है यह बहुत मेहनत का काम है आजकल की पीढ़ी मेहनत करने से कतराती है जिसके कारण शास्त्रीय संगीत को सुनने और समझने वालों में कमी होरही है। लेकिन, यह भी सच है कि आज के दौर के संगीत का जन्मदाता शास्त्रीय संगीत ही है। जब तक शास्त्रीय संगीत की शिक्षा ग्रहण नहीं की जाए तब तक किसी भी प्रकार के संगीत में कामयाबी मुमकिन नहीं है।शास्त्रीय संगीत का जो महत्व हजारों वर्ष पूर्व था वही आज भी है और आने वाले समय में भी रहेगा। शास्त्रीय संगीत के वेफनकार जिन्होंने जीवन किया समर्पित शास्त्रीय संगीत को आसमान की बुलंदियों तक पहुंचाने के लिए ऐसे फनकार भी गुजरे हैं, जो संगीत और फनकार एक दूसरे का पर्याय बन गए। उस्ताद सखावत हुसैनखां बताते हैं कि उनके वालिद उस्ताद इसहाक हसैनखां कहते थे कि तीन चीजें होती हैं-1-शौक 2- मोहब्बत 3-इश्क। 1-शौक- शौक कुछ दिन का होता है,शौक के लिए आदमी संगीत सीखनाशुरू कर देता है और जब संगीत की कठिनता शुरू होती है तो भाग खड़ा होता है। 2-मोहब्बत - संगीत से मोहब्त करने वाले संगीत सीखना शुरू करते है और काफी हद तक संगीत ग्रहण कर लेते हैं परन्तु जीवन के दूसरे मामलात में फंसकर वह संगीत में पारंगत नहीं होपाते। परिणाम यह होता है कि वे तानसेन तो नहीं बन पाते लेकिन, बहुत अच्छा सुनने वाले बन जाते हैं। 3- इश्क - संगीत से इश्क करने वाले ही वह लोग हैं जो अपने आपको संगीत के लिए समर्पित कर देते हैं और संगीत के शिखर पर अपने आपको स्थापित करते हैं और उस्तादी की हद तक पहुंचते हैं। संगीत की तमाम कठिनाइयों को हंसते हुए झेल जाते हैं और उसे पूरी तरह हासिल करके ही मानते हैं और यही फनकार और उस्ताद वे हैं जिनकी बदौलत आज संगीत जिन्दा है और आनेवाले समय में भी ऐसे फनकारों की बदौलत संगीत जिन्दा रहेगा। संगीतको सीखने का जुनून जब तक नहीं हो तब तक कोई बड़ा फनकार नहीं बन सकता।यह कहना भी गलत नहीं होगा कि यह विद्याइंसान को भगवान से एक उपहार के रूप में प्राप्त होती है जिसे हम टेलेंट या गॉड गिफ्ट कहते हैं। 


शास्त्रीय संगीत में घराना शब्द का अर्थ सबसे पहले हमें घरानाशब्द का अर्थ जानना है। अगरचे राग एक ही होता है उसकी अदायगी और तानवपलटों में फर्क होता है यानि जब कोई उस्ताद अपनी गायन शैली में परिवर्तन करके उसे अपनाता है और यह परिवर्तित शैली कई नस्लों तक उस्ताद से शार्गिदों तक पहुंचती है तब घराना बनता है। भारत के चंद मशहूर घरानों में ग्वालियर, आगरा, कैराना, पटियाला और रामपुर सहसवान घराना काबिले जिक्र है। रामपुर-सहसवान घराना


रामपुर-सहसवान घराना घराने का नाम रामपुर सहसवान घराना इसलिएपड़ा कि सहसवान जिला बदायूं की तहसील में अपने समय के बड़े संगीतकार और उन्होंने अपनी औलादों को शुरुआती तालीम के बाद रामपुर बसे हुए उस्तादों का शार्गिद कराया। रामपुर और सहसवान इस मेल के कारण रामपुर सहसवान घराना बना। रामपुर दरबार में मियां तानसेन औलादों की एक बड़ी तादाद मौजूद रही। नवाब अली मोहम्मद के दरबार में गुलाब खां सैनी आए, नवाब अली मोहम्मद के चौथे बेटे नवाब मोहम्मदयारखां दरबार में मेहंदी और अमृत सैन मौजदगी का पता चला है। रामपुर में नवाब यूसुफ अली और कल्बे अली के दौरे हुकूमत प्यारे खां, वासित बहादुर करीम खां, मोहम्मद अली खां के नाम मिलते हैं यह सब तानसेन की औलादों में से थे। सहसवान के उस्ताद महबूब खांशुरुआती तालीम के बाद अपने तीन बेटों अली हुसैन खां, मोहम्मद हुसैन खां और इनायत हसैन खां को रामपुर लाए। अली हुसैन खां और मोहम्मद हुसैन खां को वीणा सीखने का शौक था इसलिए इन दोनों को बहादुर हुसैन खां के छोटे भाई अमीर खां का शार्गिद कराया। इनायत हुसैन खां गायन सीखना चाहते थे इसलिए उन्हें उस्ताद बहादुर हुसैन खां का शार्गिद कराया।इनायत हुसैन खां ने गायन में कमाल हासिल किया और अपने समय के महान गायक हुए। वैसे तो उस्ताद इनायत हुसैन खां के बहुत से शार्गिद हुए लेकिन, उस्ताद मुश्ताक हुसैन खां काबिले जिक्र हैं। उस्ताद मुश्ताक हुसैन सहसवान के रहने वाले थे और इनायत हुसैन खां के रिश्ते भांजे लगते थे। रामपुर आकर उस्ताद इनायत हुसैन खां के शार्गिदहए इनायत हसैन खां ने अपनी बेटी की शादी मुश्ताक हसैन खां से कर दी तो वह रामपुर में ही बस गए अपनी बेजोड़ गायकी की वजह से दरबार में अपना अलग ही मुकामबनाया। रियासत खत्म होने के बाद वह दिल्ली चले गए और वहां भारतीय कला केंद्र संगीताचार्य के पद पर आसीन हुए और फिर वहीं उनका निधन हुआ। मुश्ताक हुसैन खां कामजार सहसवान जिला बदायूं में है। उस्ताद मुश्ताक हुसैन खां को भारत सरकार की ओर से 1957 में शास्त्रीय  संगीत की सेवाओं के लिए राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने पद्म भूषण की उपाधि से सम्मानित किया। मुश्ताक हसैन की संतानों ने किया नाम रोशन मुश्ताक हुसैन खां की पांच संतान हुईं औरपद्म भूषण उस्ताद मुश्ताक हुसैन खां की पांच संतान हुईं और सभी ने नाम रोशन किया। जिनमें इश्तियाक हुसैन खां जोकि, संगीताचार्य बने।दसरे नंबर पर उस्ताद इस्हाक हसैन खां हारमोनियम के बहत बड़े उस्ताद थे। रामपुर दरबार में रियासत खत्म होने के बाद भी इन्हें अपने से अलग नहीं किया और उनका यहीं निधन हुआ।उस्ताद इस्हाकहसैन खां के तीन बेटे हुए जिनमें उस्ताद शुजाअत हुसैन खां जोकि, आकाशवाणी रामपुर में म्यूजिक कम्पोजर के पद पर कार्यरत थे। इनका बेटा ओसामा शास्त्रीय संगीतज्ञ एवं गजल गायकी में उभर रहा है। दूसरे बेटे उस्ताद सखावत हुसैन खां नियाजी शास्त्रीय संगीत के जादूगर हैं और आकाशवाणी रामपुर के टॉप श्रेणी के कलाकार हैं। देश-विदेश में कार्यक्रम पेश करते हैं। इनका बेटा अरीब खां नियाजी जोकि, स्टार प्लस चैनल पर वाइस ऑफ इंडिया पर प्रसारित छोटे उस्ताद में और नाइन एक्स चैनल में चक दे बच्चे कार्यक्रम में प्रस्तुति दे चुके हैं और शास्त्रीय संगीत की डगर पर आगे बढ़ रहे हैं। तीसरे नंबर के बेटे शहजाद हुसैनखां दिल्ली में रहते हैं और संगीत सेवाएं दे रहे हैं देश-विदेश में अपने कार्यक्रम प्रस्तुत करते हैं। गलाम मुश्ताक हुसैन के बेटे के तीसरे नंबर बेटे गुलाम आबिद खां और उनके पुत्र मोहम्मद अहमद खां संगीतकार हैं और दिल्ली में रहते हैं। चौथे नंबर के बेटे उस्ताद गुलाम हुसैन खां जीवित हैं और दिल्ली में रहकर शास्त्रीय संगीत की सेवा कर रहे हैं। इनके बेटे गुलाम रियाज खां और गुलाम अजीज खांशास्त्रीय गायक के रूप में संगीत जगत में अपना दर्ज करा चुके हैं। पांचवे नंबर के बेटे उस्ताद तकी खां महान शास्त्रीय संगीतकार के तौर पर जाने जाते थे इनके बेटों में गुलाम नकी खां, गुलाम रसूल खां, गुलाम हबीब खां और नौशाद खां अपने-अपने स्तर पर संगीत की सेवा में कार्यरत हैं। यदि रामपुर-सहसवान घराने की वर्तमान समय में फनकारों की सूची बनाई जाए तो बहुत विस्तार में जाना पड़ेगा इसलिए यहां कुछ प्रमुख हस्तियों का जिक्र किया गया हैं।


अमृत विचार लोकदर्पण से साभार


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