स्वभाव
धागा हूँ
जरूरतमंदों को सहज सुलभ
बात-बात पर खिलता हूँ
फटी कमीजें
खुशी से सिलता हूँ।
धागा हूँ
कभी-कभी सटकता हूं
यहां-वहां भटकता हूं
किसी-किसी के दिल में
खटकता हूँ
स्वार्थ की शेरवानी
सिली जाती है तब
सुई की नाक में
गांठ बनकर अटकता हूँ।❒
धागा हूँ
जरूरतमंदों को सहज सुलभ
बात-बात पर खिलता हूँ
फटी कमीजें
खुशी से सिलता हूँ।
धागा हूँ
कभी-कभी सटकता हूं
यहां-वहां भटकता हूं
किसी-किसी के दिल में
खटकता हूँ
स्वार्थ की शेरवानी
सिली जाती है तब
सुई की नाक में
गांठ बनकर अटकता हूँ।❒