वार्ता के नाम पर गुमराह होने से बचे कर्मचारी समाज: परिषद-अध्यक्ष इं. हरिकिशोर तिवारी

कर्मचारी संगठन वार्ता में तय समय सीमा के लिखित प्रमाण पर बनाए सहमति




लखनऊ, 29 मई। उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा लगभग 15 विभिन्न तरीके राज्य कर्मचारियोे के भत्तों की समाप्ति के बाद प्रदेश के समस्त राज्य कर्मचारियों, शिक्षकों की नाराजगी के बाद उपज रहे आक्रोष के परिणाम स्वरूप राज्य व्यापी आन्दोलन की सुगबुगहाट के चलते पहले एस्मा लगाए जाने आदेश और फिर विभिन्न राज्य कर्मचारी संगठनों के साथ वार्ता का दौर शुरू किया गया है। इस परिपेक्ष्य में राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद के अध्यक्ष इं. हरिकिशोर तिवारी ने प्रदेश के समस्त कर्मचारी संगठनों के नेतृत्व से आहवान और अपील करते हुए कहा कि सरकार द्वारा तय वार्ता में शतप्रतिशत भागीदारी करे लेकिन इस बाॅत का ध्यान रखें वार्ता के दौरान बैठे अधिकारी कर्मचारियों की जिन भी समस्याओं के निराकरण का वायदा कर रहे है उसका लिखित और तय समय सीमा का लिखित आदेश या कार्यवृत्ति अवश्य प्राप्त कर ले। उन्होंने बताया कि यह पहला मौका नही जब सरकार ने कर्मचारी आन्दोलन का दमन करने के लिए एस्मा का सहारा लेने के साथ कर्मचारी संगठनों से वार्ता का दौर शुरू किया है। इसके पहले भी ऐसा हो चुका है। उस दौरान जो भी वार्ता हुई और आश्वासन दिये गए वे कोरे साबित हुए। यही नही 2013 की लम्बी हड़ताल के बाद तत्कालीन राज्य सरकार की तरफ से कर्मचारियों की चार समस्याओं के निराकरण के लिए हाईकोर्ट में शपथ पत्र दाखिल किया गया था लेकिन अब तक राज्य कर्मचारियों की उक्त मांगों की प्रतिपूर्ति नही हो पाई हैै। उन्होंने सरकार को भी सचेत करते हुए कहा कि कतिपय अधिकारियोें के षडयंत्र को समझते हुए कर्मचारियों एवं सरकार के बीच स्थापित समन्वय को बरकरार रखा जाए और एस्मा जैसे आदेश को विकट परिस्थितियों में ही इस्तेमाल किया जाए।
परिषद के प्रदेश अध्यक्ष इं. हरिकिशोर तिवारी ने बताया कि प्रमुख सचिव, कार्मिक विभाग उ.प्र.शासन द्वारा एक आदेष 23 मई, 2020 को कार्मिक संगठनों द्वारा किये जा रहे विरोध प्रदर्षन की योजना बनाने की सम्भावनाओं के सम्बन्धित समस्त अपर मुख्य सचिव/प्रमुख सचिव/सचिव को पत्र जारी किया गया। जिसमें उन्होने निर्देष दिया है, कि सम्बन्धित विभाग संगठनों के साथ बैठक करके सरकार के निर्णयों को समझायें, यथा सम्भव इस पर समाधन करायें। इसके उपरान्त भी कतिपय संगठन ऐसे हैं, कि विरोध की योजना बनाते या विरोध करते हैं तो इससे कोविड-19 की कार्यवाही प्रभावित होती है। जो न केवल अनुषासनहीनता की श्रेणी में आता है, अपितु यह पेन डेमिक एक्ट तथा एनडीएम एक्ट के आधीन दण्डनीय अपराध भी है। ऐसे संगठनों एवं उनके पदाधिकारियों के विरूद्ध कठोर कार्यवाही करते हुये उनकी सूची कार्मिक विभाग में 27 मई तक मांगा था। उन्होंने कहा कि जब-जब बड़े आन्दोलन कर्मचारी संगठनों के होते हैं कार्मिक विभाग जिलाधिकारियों, मण्डल आयुक्त, अपर मुख्य सचिव, सचिव, प्रमुख सचिवों को इसी ्रकार निर्देष देते रहे हंै, कि तत्काल अपने-अपने विभागीय संगठनों से बात कर उनकी समस्यायें सुन लें और आन्दोलन न होने दें।कुछ अधिकारी संगठनों को बुलाकर उनके संवर्ग की चली आ रही समस्याओं पर इसी बहाने बैठक कर लेते हंै, और सामूहिक बडे आन्दोलन की भागीदारी न करने की अपील भी करते हैं। परन्तु इस दौरान जो भी समस्यायें सुनी जाती हैं, आन्दोलन समाप्त होने के बाद वह वहीं पड़ी रह जाती हैं, फिर कोई नही सुनता है 2013 में 11 दिनांे तक हडताल चली, कैषलेस इलाज साहित गई अन्य मांगे जो मा0 उच्च न्यायालय में तय हुये परन्तु वित्त विभाग के कुछ अधिकारी कुंडली मार कर बैढंे हैं और उनका क्रियान्वयन होने नही दे रहे हैं, परिणाम यह हुआ कि समस्याओं का समाधान 07 वर्ष बाद भी नही हुआ। इसी प्रकार पुरानी पेंषन बहाली हेतु बड़े आन्दोलन में तमाम बातें तय हुई परन्तु आन्दोलन समाप्त होने के बाद वही की वहीं रह गयी। अरबो रुपया कर्मचारियों का बर्बाद हो रहा है घाटे की योजनाओं में पैसा लगा है। कर्मचारी रिटायर होकर या तो बिना पेंषन के घर जा रहे है। या उन्हें पेंषन के रुप में 2000 से 5000 रु. तक ही मिल रहा है। बडे आन्दोलन कर्मचारियों की न्यायोचित जायज समस्याओं पर ही होते हैं, फिर एस्मा लगे या सख्ती हो संगठन एकजुट होकर आन्दोलन करते रहे हैं। इस दौरान कर्मचारी  जेल भी गये हैं, टर्मिनेट भी होते रहे हंै। फिर सब कुछ ठीक ही होता रहा हैं। परन्तु आन्दोलन तो हुये है। अभी भी भत्तों केा काटे जाने पर पूरा कर्मचारी समाज नाराज है जबकि सभी कर्मचारी पूरे मनोयोग से कोरोना मुक्त करने में रात-दिन एक किये हुये हैं। तब उन्हें प्रोत्साहन देने  के स्थान पर कोरोना का बहाना लेकर बच्चों/परिवार के लिये मिलने वाले वेतन भत्तो की कटौती करना उचित नही माना जा रहा है। इस प्रकार की बैठक कर समाधान तत्काल निकाला जाना चाहिये सभी संगठन पूरी तरह से कोरोना समाप्त करने की मुहिम में सरकार के साथ हंै। परन्तु सामान्य परिस्थिति होने पर हिसाब तो लिया जायेगा, जो भी कटौती की गई है। वह प्रदेष की सामान्य आर्थिक परिस्थितियां होने पर वापस होना ही चाहिए, क्योंकि भत्ते बड़ी-बड़ी तार्किक लडाइयों के बाद उचित माने जाने पर ही मिलता है।


इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

सबसे बड़ा वेद कौन-सा है ?

कर्नाटक में विगत दिनों हुयी जघन्य जैन आचार्य हत्या पर,देश के नेताओं से आव्हान,