युवा सोच – INDIA FIRST या अनियंत्रित जोश

“भारत” यह एक शब्द ही नहीं बल्कि हम युवाओ के दिलो मे देशभक्ति और देश के प्रति समर्पण लाने वाला वो भाव है जिसे हर पल जिया जा सकता हैl  हमारी संस्कृति, हमारे नैतिक मूल्य और हमारे परिवारों की शिक्षा हमे यही सिखाती रही है कि राष्ट्र प्रथम है, हमारे पुराणो में भी उल्लेख है कि :- “जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरियशि” अर्थात जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर है । मैं यहाँ एक और श्लोक का उल्लेख करना चाहूँगा जो आज के परिपेक्ष्य मे एक दम सटीक बैठता है, जिन मूल्यों की हम बात करते है जो हमारी संस्कृति ने हमे सिखाया है वो हम भूलते जा रहे है


                       – “कराग्रे वस्ते लक्ष्मी कर मध्ये सरस्वति। कर मुले तू गोविंदा प्रभाते कर दर्शनम”॥


                      कभी इन पंक्तियो के उच्चारण के साथ धरती माँ भारत माँ की चरण वंदना करके विशाल भारत की सुबह हुआ करती है। आज भी देश के ग्रामीण क्षेत्रों में जाकर देखा जाए तो अधिकांशत: इलाकों में इन पंक्तियों को चरितार्थ किया जाता है पर उन क्षेत्रों का क्या जहां के युवा पढ़ लिख कर देशप्रेम के भाव को अपने विचारों से रोज प्रति रोज अलग करता जा रहा है। आज उसी देश में इस भावना में निहित सार्वभौमिकता को त्याग  कर संकुचित- संक्रमित विचारधारा की ओर झुकाव यह संकेत देता है कि देश का भविष्य और आने वाली पीढ़ियों का भविष्य अंधकार की  ओर अग्रसर है ।


                     इतिहास गवाह है कि परिवर्तन ही सोच का परिणाम है और सोच सकारात्मक हो तो परिणाम बदलाव की वो क्रांति लाते हैं ,जो सुनियोजित एवं दूरगामी सफल प्रयोजन को इंगित करती है । इसके विपरीत नकारात्मक सोच और नकारात्मक नजरिया बरबादी का वो शैलाब लाता है, जो कुछ समय के लिए देश – समाज को विश्व द्र्ष्टिपटल पर कटघरे में ला खड़ा कर देता है ,साथ ही ऐसी सोच पैदा कर जाता है जो व्यक्ति को समाज – देश से विघटित करने का भावांतरण करती रहती है । जब बात देश हित की  हो तो राजनीति से परे हमे विचार करने कि जरूरत है, क्यूंकि विश्व के मानचित्र में भारत देश सबसे बड़े लोकतान्त्रिक देश के रूप में उभर कर आता है और जब नीति सृद्रण सुस्थापित होगी तभी जनता राज प्रबल होगा । देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र भाई मोदी ने बोधवाक्य दिया – INDIA FIRST / NATION FIRST । इंडिया फ़र्स्ट एक वो विचार है वो सोच है जिस पर गंभीरता से विचार करें तो यह समझ आता है कि हम अपनी संस्कृति के स्वयं परिचायक हैं , संस्कृति जो हमे सिखाती है “ वसुद्धेव कुटुंबकम” एवं  “नर सेवा नारायण सेवा” । हम वर्षो पुरानी उस संस्कृति के परिचायक हैं जो सामाजिक समरसता से सरोबार है, लेकिन भारत का भविष्य – भारत का युवा पाश्चात्य संस्कृति की बनावटी दिखावटी रौनक में ऐसा भ्रमित हो चुका है कि वो ये भूल रहा है कि देश हित – समाज हित से बडा धर्म – बड़ा कर्म ‘भूतो न भवष्यति’ कुछ नहीं है ।


              वर्तमान समय देश का दुर्भाग्यवश वो समय है जहाँ देश के कुछ युवाओं को मोहरा बनाकर चंद युवाओं की भीड़ के साथ गृह युद्ध कि स्थिती - विभाजन की स्थिती निर्मित की जा रही है , जो समसामयिक तो है मगर इस उपजी सोच का फायदा कुछ सेकुलर दल कुछ वामपंथी दल अपने स्वार्थ के लिए हथकंडों की तरह उपयोग करते रहेंगे , क्योंकि ये वो कीड़े हैं जिनका एक मात्र ध्येय अशांत भारत है । इस भय और विभाजन की गंदी सोच – राजनीति के बीच हमारा धर्म है इंडिया फ़र्स्ट । देश के युवाओं को आज जरूरत है कि उन्हें ‘स्व’ और ‘पर’ का बोध हो , स्व से समस्ती तक का विचार उनके दिमाग में इस तरह स्थापित हो कि प्रतिपल प्रतिक्षण एक ही भाव समाहित हो कि ‘देश प्रथम ‘ । सोच नियंत्रित एवं प्रबल रहे जिसे कोई बाहय शक्ति नहीं वरन स्व विवेक से स्वनियंत्रित किया जा सके । जिस दिन प्रगतिशील भारत के प्रगतिशील युवा इस बात को अच्छी तरह समझ लेंगे उस दिन भारत को ‘ विश्व गुरु’ बनने से कोई शक्ति नहीं रोक सकती है l


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