देश में जल संकट एवं समाधान (ताजा स्थिति)

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर यूँ तो हमारे देश को सभी लोग विकसित देशों की श्रेणी में रखते हैं, परन्तु हमारे देश में अनेकों समस्याएं भी हैं जैसे- गरीबी, अशिक्षा, बेरोजगारी, जनसंख्या वृद्धि इत्यादि। इन मुख्य समस्याओं के अलावा देश में जल संकट भी एक प्रमुख समस्या है। देश में पानी की मांग खतरनाक दर से बढ़ रही है। सन् 2050 तक भारत एक सर्वाधिक आबादी वाला देश हो जाये तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं। उस स्थिति में जल संकट विकराल रूप ले सकता है। तेजी से विकास के चलते देश में जलापूर्ति की अभी भी समस्या है और इस समस्या (जलापूर्ति) को बदतर स्थिति में पहुंचाने में जल संसाधनों के कुप्रबंधन की अहम भूमिका है। अत्यधिक दोहन और प्रदूषण इस समस्या में और इजाफा करते हैं। जलवायु परिवर्तन भी इस संकट को अत्यधिक बढ़ाने की ओर अग्रसर हैं । घरेलू, कृषि और औद्योगिक क्षेत्रों में प्रत्येक वर्ष 829 अरब घन मीटर पानी का उपयोग किया जाता है। नीचे दी गई सारणी के अनुसार सन् 2025 तक इस मात्रा में 40 प्रतिशत की वृद्धि का अनुमान है:



देश में जलापूर्ति के लिए सतह पर उपलब्ध जल और भूजल मुख्य स्रोत हैं। देश में प्रत्येक वर्ष औसतन 4000 अरब घनमीटर वर्षा होती है जिसका 48 प्रतिशत वर्षाजल नदियों में पहुंचता है। भंडारण और आधारभूत संसाधनों की कमी के चलते इसका मात्र 18 प्रतिशत जल का ही प्रयोग हो पाता है। पेयजल के अलावा कृषि और औद्योगिक जरूरतों का मुख्य स्रोत भूजल है। वर्षा और नदियों के ड्रेनेज सिस्टम द्वारा सालाना 432 अरब घनमीटर भूजल का पुनर्भरण होता है जिसमें 395 अरब घनमीटर जल ही उपयोग लायक होता है। इस उपयोग लायक जल का 82 प्रतिशत सिंचाई और कृषि कार्यों में होता है जबकि शेष 18 प्रतिशत ही घरेलू और औद्योगिक उपयोग के लिए बचता है। आई.पी.सी.सी के अध्ययन के अनुसार देश की प्रमुख नदियों में जलापूर्ति को नियंत्रित करने वाले हिमालय के ग्लेशियर वार्षिक 33 फुट से 49 फुट की दर से पिघल रहे हैं। इससे आने वाले दिनों में नदियों में पानी की कमी से बढ़ी संख्या में आबादी प्रभावित हो सकती है। साथ ही फसलों के उत्पादन में कमी की भी आशंका है। जलवायु परिवर्तन से मौसम चक्र में बदलाव की आशंका भी जताई जाती है। इससे मानसून और वर्षा के क्रम में संभावित बदलाव से स्थिति और भी खराब हो सकती है।


देश की जल संकट समस्या को बेहतर जल प्रबंधन से दूर किया जा सकता है। जल कानून, जल संरक्षण, पानी के कुशल उपयोग, जल पुनर्चक्रण और आधारभूत संसाधनों की ओर अत्यधिक ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है। जल संकट से जूझ रहे चीन जैसे कई विकासशील देशों की तुलना में यहाँ भूजल के लिए कोई कानून नहीं है। कोई भी इस जल का दोहन कर सकता है, जब तक उसकी जमीन के नीचे पानी निकल रहा है ।


जल संकट का समाधान यू तो पूरा ही देश जल संकट से घिरा है परन्तु देश के लगभग सभी बड़े शहर गहरे जल संकट में हैं। शहरों की ओर पलायन और जीवन स्तर में सुधार के साथ ही लोगों की पानी की मांग अत्यधिक बढ़ गई है। वैश्विक ताप वृद्धि के साथ ही मौसम के बारे में भविष्यवाणी करना काफी मुश्किल हो गया है। इसलिए देश की जल व्यवस्था का नियोजन जरूरी हो गया है। भविष्य को लेकर चिन्ता की एक वजह यह भी है कि अधिकांश समाधान जिन पर विचार किए गए, उन्हें पूर्ण रूप से लागू नहीं किया जाता है।



ऐसे में नदियों व जलाशयों से पानी लाने का अंतहीन सिलसिला चल पड़ा है। ये स्रोत लगातार दूर होते जा रहे हैं और लम्बी दूरी से शहरी क्षेत्रों में पानी लाने के लिए सिविल इंजीनियरिंग परियोजनाओं में भारी भरकम निवेश करना पड़ रहा है। देश में इस संकट से निपटने के लिए वर्षा जल का संरक्षण, पानी की बचत एवं गंदे पानी का पुन:चक्रण कर उसको प्रयोग में लाना चाहिए। जल संस्थानों का संचालन बेहतर ढंग से करना चाहिए। सभी शहरों में कार्यकुशल मीटर और नियमित वसूली के लिए मानक निर्धारित किए जाने चाहिए। जल समस्या का हल नियमन, मूल्य निर्धारण और भूजल के प्रयोग में अंतर्निहित है। अगर इस तरफ ध्यान नहीं दिया गया तो भूजल का स्तर गिरता ही जाएगा। जल नीति को लेकर कोलकता में जहाँ प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता सबसे अधिक है लेकिन न तो मध्य वर्ग और ना ही धनी लोगों से पानी प्रयोग करने के लिए कोई भी किसी भी तरह का शुल्क लिया जाता है। दक्षिण भारत का चेन्नई एक ऐसा शहर है जहाँ अनिवार्य जल संचय के लिए एक सुस्थापित प्रणाली कार्य कर रही है। कर्नाटक के हुबलीधारवाड़ में विश्व बैंक द्वारा समर्थित सफल योजना के बेहतर ढाँचागत संरचना, प्रभावी आपूर्ति तंत्र और वसूली के द्वारा सही कीमत पर चौबीस घंटे पानी की आपूर्ति होती है। अंत में मैं यही कहना चाहूंगा कि देश में जल समस्या प्रमुख होते हुए भी इसे नियंत्रण में किया जा सकता है यदि हमारे देश में उचित जल संरक्षण, जल संचय, जल संसाधनों का उचित प्रबंधन, प्रत्येक नागरिक को. जल संबंधी नियम एवं जल सदुपयोग की गहन जानकारी और समय-समय पर आवश्यक दिशा-निर्देश का पूर्ण ज्ञान दिया जाए।


राष्ट्रीय जलविज्ञान संस्थान, रूड़की प्रवाहिनी अंक 18 (2010-11)


 


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