हम स्वामी ज्येष्ठदेव को नहीं जानते हैं,हम न्यूटन को जानते हैं

क्या आप न्यूटन को जानते हैं? जरूर जानते होंगे, बचपन से पढ़ते आरहे हैं लेकिन क्या आप स्वामी माधवन या ज्येष्टदेव को जानते हैं? नहीं जानते होंगे तो अब जानलीजिए। अभी तक आपको यही पढाया गया है कि न्यूटन जैसे महान वैज्ञानिक ही कैलकुलस, खगोल विज्ञान अथवा गुरुत्वाकर्षण के नियमों के जनक जनक . लेकिन वास्तविकता यह है कि इन सभी वैज्ञानिकों से कई वर्षों पूर्व पंद्रहवीं सदी में दक्षिण भारत के स्वामी ज्येष्ठदेव ने ताडपत्रों पर गणित के ये तमाम सत्र लिख रखे हैं। इनमें से कछसत्र ऐसे भी हैं, जो उन्होंने अपने गुरुओं से सीखे थे, यानी गणित का यह ज्ञान उनसे भी पहले का है, परन्तु लिखित स्वरूप में नहीं था। मैथेमेटिक्स इन इण्डिया पुस्तक के लेखक किम प्लोफ्कर लिखते हैं कि तथ्य यही हैं सन 1660 तक यूरोप में गणित या कैलकुलस कोई नहीं जानता था, जेम्स ग्रेगरी सबसे पहले गणितीय सूत्र लेकर आए थेजबकि सुदूर दक्षिण भारत के छोटे से गांव में स्वामी ज्येष्ठदेव ने ताड़पत्रों पर कैलकुलस, त्रिकोणमिति के ऐसे-ऐसे सूत्र और कठिनतम गणितीय व्याख्याएं तथा संभावित हल लिखकर रखे थे, कि पढ़कर हैरानी होती । इसी प्रकार चार्ल्स व्हिशनामक गणितज्ञ लिखते कि "मैं पूरे विश्वास से कह सकता हूं कि शून्य और अनंत की गणितीय श्रृंखला का उदगम स्थल केरल का मालाबार क्षेत्र है"। स्वामी ज्येष्ठदेव द्वारा लिखे गए ग्रन्थ का नाम है युक्तिभाष्य", जिसके पंद्रह अध्याय और सैकड़ों पृष्ठ हैं। यह पूरा ग्रन्थ वास्तव में चौदहवीं शताब्दी में भारत के गणितीय ज्ञान का एक संकलन जिसे संगमग्राम के तत्कालीन प्रसिद्ध गणितज्ञ स्वामी माधवन की टीम ने तैयार किया है। स्वामी माधवन माधवन की टीम ने तैयार किया है। स्वामी माधवन यह कार्य समय की धूल में दब ही जाता, यदि स्वामी ज्येष्ठदेव जैसे शिष्यों ने उसे ताड़पत्रों पर उस समय द्रविड़ भाषा (जो अब मलयालम है) में न लिख लिया होता। इसके बाद लगभग 200 वर्षों तक गणित ये सूत्र श्रुति-स्मृति" के आधार पर शिष्यों की पीढ़ी से एक-दूसरे को हस्तांतरित होते चले गए।भारत में श्रुति-स्मृति (गुरु के मुंह से सुनकर उसे स्मरण रखना) परंपरा बहुत प्राचीन है, इसलिए सम्पूर्ण लेखन करने( रिकॉर्ड रखने अथवा दस्तावेजीकरण) में लोग विश्वास नहीं रखते थे, जिसका नतीजा हमें भुगतना पड़ रहा है, कि हमारे प्राचीन ग्रंथों में संस्कृत के छिपे हुए कई रहस्य आज हमें पश्चिम का अविष्कार कह कर परोसे जा रहे हैं। जॉर्जटाउन विवि के प्रोफेसर होमर व्हाईट लिखते संभवतः पंद्रहवीं सदी का गणित का यह ज्ञान धीरेइसलिए खो गया, क्योंकि कठिन गणितीय गणनाओं का अधिकांश उपयोग खगोल विज्ञान एवं नक्षत्रों ज्येष्ठदेव गति इत्यादि के लिए होता था, सामान्य जनता के लिए यह अधिक उपयोगी नहीं था। इसके अलावा जब भारत के उन ऋषियों ने दशमलव के बाद ग्यारह अंकों तक की गणना एकदम सटीक निकाल ली थी. तो गणितज्ञों के करने के लिए कुछ बचा नहीं था। ज्येष्ठदेव लिखित इस ज्ञान के “लगभग" लुप्तप्राय होने के सौ वर्षों के बाद पश्चिमी विद्वानों ने इसका अभ्यास 1700 से 1830 बीच किया। चार्ल्स व्हिशने युक्तिभाष्य" से संबंधित अपना एक पेपर"रॉयल एशियाटिक सोसायटी ऑफ ग्रेट ब्रिटेन एंड आयरलैंड" की पत्रिका में छपवाया।चार्ल्स व्हिश ईस्ट इंडिया कंपनी के मालाबार क्षेत्र में काम करते थे, जो आगे चलकर जज भी बने। लेकिन साथ ही समय मिलने पर चार्ल्स व्हिशने भारतीय ग्रंथों का वाचन और मनन जारी रखा। व्हिश ने ही सबसे पहले यूरोप को सबूतों सहित युक्तिभाष्य" के बारे में बताया था। वरना इससे पहले यूरोप के विद्वान भारत की किसी भी उपलब्धि अथवा ज्ञान को नकारते रहते थे और भारत को सांपोंउल्लुओं और घने जंगलों वाला खतरनाक देश मानते ईस्ट इंडिया कंपनी के एक और वरिष्ठ कर्मचारी जॉन वारेन ने एक जगह लिखा है कि हिन्दुओं का ज्यामितीय और खगोलीय ज्ञान अदभुत था, यहां तक कि ठेठ ग्रामीण इलाकों के अनपढ़ व्यक्ति को मैंने कई कठिन गणनाएं मुंहजबानी करते देखा है।-सुरेश चिपलूनकर


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