व्यंग्य -गलवान की कहानी, एक गधे की जुबानी

दुनिया गधों के बारे में कुछ भी सोंचे लेकिन मुझे अपनी कौम पर गर्व और पूरा भरोसा है l मैं गधा जरुर हूँ लेकिन विपक्ष की तरह अफवाह फैलाने में बिलकुल यकीन नहीं रखता l आखिर गधा बिरादरी का भी तो अपना कुछ उसूल होता है, यदि गधों ने अपना उसूल तोड़ा तो उस पर विश्वास कौन करेगा l गधों की खासियत होती है कि न उनकी टी०वी० पर आने की इच्छा होती है और न ही अखबार में सुर्खियाँ बटोरने की तमन्ना l हाँ हमारे साथ एक बरकत है कि बोलने और घूमने की पूरी आजादी है, हाँ यह बात अलग है कि जिन्हें हमारी बात शूट न करे सिर्फ इतना कहकर बचाव कर लेते हैं कि, गधा है बोलने दो, गधे की बात पर क्या ध्यान देना l अब मैं मुद्दे की बात करूं तो बेहतर होगा, क्योंकि लोग इतनी लंबी-चौड़ी बात तो प्रधानमंत्री की नहीं सुनते, गधों की कौन सुनेगा l


मैं हिंदुस्तानी गधा हूँ l हिंदू, मुसलमान, सिख और ईसाई इत्यादि सभी धर्मों के लोग गधों के प्रति समान भाव रखते हैं l इसलिए मुझे ख़ुशी होती है कि चलिए किसी एक बिंदु पर तो एकता कायम है l आगे चलकर अन्य बिंदुओं पर भी एकता कायम होगी l मैं आशावादी गधा हूँ l इंसानों की तरह निराशा और नकारात्मकता मेरी प्रवृत्ति नहीं है l वाकया 15 जून का है मैं घूमते-घूमते गलवान घाटी पहुँच गया l दोस्तों ! पहाड़ी घास खाना और पहाड़ी गधों से मिलना मुझे बेहद पसंद है l क्योंकि सृष्टि निर्माण के इतने वर्ष गुजर गए, लेकिन भारत के गधों में एका नहीं आई l जबकि कोई ऐसा दौर, कोई ऐसी चुनौती और कोई ऐसा कार्य नहीं था जिसमें गधे बराबर के भागीदार न रहे हों l इंसानों के साथ कंधा से कंधा मिलाकर न चले हों l 


आज मैं सभी इंसानों को बता देना चाहता हूँ कि गधा समाज के लोगों ने ही आज शान बघार रही बड़ी-बड़ी इमारतों, अट्टालिकाओं और किलों के लिए चट्टानें अपनी पीठों पर लादकर पहुंचाया है l बड़े-बड़े युद्धों में युद्ध के साजो-सामान पहुंचाएं है l बड़े-बड़े राजसी और सामंती जलसों के लिए सोमरस अपनी इसी पीठ पर लादकर पहुंचाएं हैं l गधा वैदिक ऋचाओं, रामायण, महाभारत, चाणक्य, पौरव, सिकंदर, हूँण, यवन, मुग़ल, फिरंगी और स्वतंत्रता-संग्राम का साक्षी ही नहीं रहा, बल्कि बढ़चढ़कर इन सभी युगों में हिस्सा भी लिया है l यदि धरती पर गधा न होता तो इंसान दुर्गम इलाकों और जगहों पर अपना आशियाना न बना पाता l लेकिन सम्मान मुझे तीसरी दुनिया के राजनीतिक दल ने दिया l भारत में तो मुझे हेय दृष्टि से देखा जाता है l इसका फायदा भी है, मैं गोपनीय से गोपनीय जगहों तक पहुच सकता हूँ और बड़े-बड़े सीक्रेट जान सकता हूँ, क्योंकि लोग गधा समझकर मेरे सामने कुछ भी बोलने से गुरेज नहीं करते l


हाँ !, तो मैं बता रहा था कि 15 जून को मैं गलवान घाटी में मौजूद था l लगभग आधी रात का समय था l ठण्ड बहुत अधिक थी l मैं दो पत्थरों के बीच सोने का असफल प्रयास कर रहा था l तभी मुझे बाहर शोरगुल सुनाई पड़ा l लेटे-लेटे ही मैंने अपने दोनों बड़े-बड़े कानों का एंटीना घुमाया l चूँकि सन्नाटा बहुत था इसलिए पूरा सिग्नल मिल रहा था, आवाज साफ़ आ रही थी l मालूम हुआ कि मारपीट हो रही है l मैं उठकर मौके पर पहुंचा l वहां पहुंचा तो देखकर हैरान हो गया कि अचानक बात करते-करते चीनियों ने कर्नल संतोष बाबू पर प्रहार कर दिया l उसके बाद निहत्थी भारतीय सेना चीते के समान चीनियों पर टूट पड़ी l चूँकि चीनी पहले से ही आक्रमण के इरादे में थे, इसलिए उनके पास लोहे की राड, कंटीले लोहे के डंडे और लोहे के अन्य घातक हथियार थे l भारत की सेना का इरादा तो ऐसा था नहीं इसलिए वह निहत्थी थी l इसलिए भारत के जवान हताहत और चोटिल हुए l


चीन के एलीट ट्रेंड कमांडोज निहत्थी भारतीय सेना पर पत्थर और लोहे की राड से प्रहार कर रहे थे l कुछ सैनिक ऊँची पहाड़ी से गिरकर हताहत भी हो गए l यह देखकर मेरा भी खून खौलने लगा l मैं भी चींपों ! चींपों ! की आवाज निकालने लगा, लेकिन इसका असर कब पड़ा है, जो आज पड़ जाता l लेकिन थोड़ी देर बाद पंजाब रेजीमेंट के जवान आए और फिर दुबारा झडप शुरू हुई l फिर तो भारत की सेना ने डेढ़ फुटे चीनियों से उनके ही हथियार छीनकर ऐसा ताण्डव मचाया कि चीनी खेमें में जिंदा बचे लोगों के बीच अपनी जान बचाकर भागने की होड़ लग गई l लेकिन तब तक तो हिंदुस्तान के जवानों ने सैकड़ों चीनियों को मौत की नींद सुला दिया था l कुछ वाहनों को कब्जे में लिया तो कुछ को आग के हवाले कर दिया l भारत के बीस जवान शहीद होने के पहले सैकड़ों चीनियों को अनंत पथ पर रवाना कर चुके थे l


घटना की खबर से दिल्ली से बीजिंग तक ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में हडकंप मच गया l सबसे ज्यादा हडकंप तो भारत के विपक्ष में मचा l यहाँ तो आलम यह हो गया कि बीजिंग की जगह दिल्ली पर सवालों के गोले दागे जाने लगे l सवाल होने लगे कि क्या सेना ने नियंत्रण रेखा पार किया था या नहीं l यदि नहीं; तो इसका मतलब दिल्ली चीनी आक्रमण को छुपा रही है, यदि हाँ तो इसका मतलब भारत की सेना नियंत्रण रेखा के बाहर गई थी l तमाम सवाल उठने लगे, आरोप लगने लगे l तब मैंने निश्चय किया कि अब एक भारतीय गधे का धर्म है कि वह हकीकत सामने लाए l चूँकि मैं गधा था सीमा के उस पार चीन की तरफ वाले खेमें में जा सकता था l क्योंकि सीमा रेखा तो इंसानों के पालन के लिए होती है, गधे तो सीमा रेखा से आजाद होते हैं, उनके लिए तो किसी देश की सीमा मायने नहीं रखती l फिर गधों से नुकसान तो कोई हो नहीं सकता, ऐसा दुनिया का विश्वास है, इसलिए गधों से पूरी दुनिया, धर्म और जाति के लोग आश्वस्त रहते हैं l इन सभी खूबियों से लैश होने के कारण ही आज मैं चीनी खेमें की तरफ पहुँच पाया l


चीन की तरफ वाले खेमें में पहुंचकर मैंने दुबारा चींपों !  चींपों ! की आवाज लगाई l मेरी इस आवाज को न तो हमारे देश के सैनिक समझ सकते थे और न ही चीनी सैनिक, लेकिन मैंने अपनी भाषा में कह दिया था कि यदि आस-पास कोई गधा हो तो आए और मेरी मदद करे l मेरी आवाज सुनकर एक गधा आया l बोला क्या हो गया भाई l मुझे याद आ गया कि 1962 में कहा गया था; हिंदी-चीनी, भाई-भाई l इतने में पीछे से कबूतरों का झुण्ड आसमान की तरफ उड़ा l मैंने चीनी खेमें की तरफ वाले गधे से गधों वाली भाषा में पूछा, आखिर यहाँ ताण्डव किस बात पर हुआ l चीनी गधे ने कहा कि देखिए मामला ऐसा था कि भारत कि तरफ से एक पुल बन रहा था, जिसे मेरी सेना और सरकार रोंकना चाहती थी, इसलिए उसने तुम्हारी सेना और सरकार पर दवाब बनाने के लिए “नो मेंस लैंड” पर स्थायी निर्माण कर लिया, जबकि वह जगह दोनों तरफ से खाली रखी जानी चाहिए थी l भारत की सेना उसे हटाने को कह रही थी इसलिए विवाद हुआ l पूरी बात मेरी समझ में आ गई l चीन भारत में आकर नहीं बल्कि “नो मेंस लैंड” पर शरारत कर रहा है, और भारत उसे हटा रहा है l मतलब भारत में लोग जो सवाल उठा रहे हैं गलत है l भारतीय सैनिक किसी भी रूप में गलत नहीं थे l   


एक गधा होने के बावजूद मुझे विपक्ष पर तरस आ रहा था कि यदि एक गधा हकीकत को समझ सकता है तो विपक्ष क्यों नहीं ? इसी उधेड़बुन में दिल्ली की तरफ चल पड़ा लेकिन रास्ते में ही हूँ कि मालुम हुआ कि चीन अब समझौते पर आ गया है l भारत मार्च की स्थिति से कम पर सहमत नहीं है l चीन ठिकाने आ गया है l उसकी खोपड़ी के दरवाजे खुल चुकें हैं l अब उसकी गीदड़ घुड़की से भारत डरने वाला नहीं है, यह उसे मालुम हो गया है  l अब तो हमारी गधा बिरादरी भी भारत के इरादों के साथ है, कोई उसे तवज्जो दे या न दे l हमारा गधा समुदाय तो ‘अंतिम-आदमी’ की तरह चिर उपेक्षित रहा है; आज कौन सा पहली बार हो रहा है l जिसके लिए गधा समाज गिला-शिकवा करे l      


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