आम ( बुंदेली आलेख )
बसंत पाँचे आबे के पैले सेईं आम के पेड़ बौरान लगत। बोर सें लदे-फदे आम के पेड़ देखतनईं आम के शौकीन मान्सन के हिये में पीरीं पीरीं रसीलीं अमियन खों ओंठन सें दबावे की मन्सा हिलोरें लेन लगत। आम के फरबे औ पकवे की बाठ में दिल में ऐसी हूक रै रै कें उठत , जैसी तौ 'मेघदूतम्' के यक्ष खों ने उठी हुइयै।
संस्कृत में आम खों आम्र कत हैं। जनबन नें कई है कै आम्र शब्द अम्र या अम्ल शब्द कौ रूपांतर आय। अम्र कौ मतलब ' खट्टौ ' होत है।आम वैदिक काल में पनी खटाई के लाने जानौ जात तौ। वैदिक आर्यन ने ई फल की जादां कदर नईं कर पाई। ऊ समै ई के पेड़ हिमालै के जंगलन में होत ते औ इनमें हल्के हल्के खट्टे फल फरत ते । कजन की दार पके तौऊ खट्टे रत ते। हाँ , जब जे पेड़ बौरात ते तौ असफेर भर खों मोहित कर देत ते। ऐसी कानात है कै आम के बौर मदन देवता के खास बाण आएँ। जब आम के पेड़ गंगा के मैदानन में उतरे तौ देस की माटी ने चमत्कार कर दऔ। हौलें हौलें इनकौ काया कलप हो गऔ। फल बडे़ बडे़ हौन लगे। कछू डार पै पकन लगे तौ कछू खों पाल लगाकें मान्स पकाउन लगो। कलमी आप की नसले काड़ीं गईं। ई तरा सें जौ धीरें धीरें फलन कौ सिरमौर हो गऔ।
वात्स्यायन के कामसूत्र में तौ आम औ माधवी लता के विवाहोत्सव को बड़ौ मनोरंजक बरनन है। वात्स्यायन के जमाने में मिल-जुर कें आम के नय टिकोरन खों खावे कौ उत्सव होत तो,जियै उनने ' नवाम्रखादनिका ' नाव दऔ है।
जा बड़ी खुशी की बात है कै जौ कहाउत तौ आम है पै हो गऔ खास। जौ इतनौ रसीलौ, गूदेदार, मीठौ औ मजेदार है कै इयै फलन के राजा कौ सम्मान दऔ गऔ है। हमाए बब्बा केन लगत ते कै ' गधा है जो आम नईं खात ' ।
एक बेर कविवर रवीन्द्र नाथ टैगोर चीन गए, उतै उनै आम खाबे नईं मिले। उनने हँसी में पने दोस्त सें कई कै ' मैं जितनें साल जिऊँ, ऊकौ हिसाब लगावे के बाद ऊ में सें एक साल कम कर दियौ, काय कै जी साल मैंनें आम नईं खा पाए ऊ साल खों मैं अखारथ गऔ समजत हों।' सो भैया हौ, ऐसी महिमा है ' आम ' की।
अब मैं जाने माने शायर ' सागर खय्यामी ' की आम पै लिखी एक नज्म की बानगी देत भऔ पनी बात खों विराम देत हों-
" जो आम में है वो लव-ए-शीरीं में नहीं रस
रेशों में है जो शेख की दाढ़ी से मुकद्दस
आते हैं नज़र आम तो जाते हैं वदनख़स
लगड़े भी चले जाते है खाने को बनारस
होंठों पै हसीनों के जो अमरस का मजा है
ये फल किसी आश़िक की मोहब्बत का सिला है "