अल्पायु की शहादत का साक्षी दिनेश गुप्ता की पुण्यतिथि 7 जुलाई पर श्रद्धांजलि
हमीरपुर 7 जुलाई। लॉकडाउन को ध्यान में रखकर सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए वर्णिता संस्था सुमेरपुर द्वारा विमर्श विविधा के अंतर्गत जरा याद करो कुर्बानी के तहत अल्पायु की शहादत का साक्षी दिनेश गुप्ता की पुण्यतिथि 7 जुलाई पर श्रद्धांजलि देते हुए संस्था के अध्यक्ष डॉक्टर भवानी दीन ने कहा कि कितने ऐसे लोग हैं,.जो यह जानते हैं कि 20 वर्ष का एक युवा देश की आजादी के लिए क्रूर अंग्रेज अधिकारी की हत्या कर न केवल कैदियों के अपमान और यातनाओं का बदला लिया अपितु हंसते-हंसते अपने को मातृभूमि के लिए न्योछावर कर दिया। आज के इतिहासकारों ने पक्षपात करते हुए कहा है कि केवल अहिंसा का झंडा लेकर चलने वालों ने ही देश की आजादी के लिए प्रमुख योगदान दिया है, जबकि हकीकत कुछ और है, अहिंसा वादियों से हटकर गरम दल के सशस्त्र क्रांतिकारियों का कम प्रति भाग नहीं रहा है। दिनेश गुप्ता जैसे कम उम्र के क्रांतिकारियो के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है। देश की आजादी के लिए क्रांतिकारियों के अनुदानय को नकारा नहीं जा सकता है। दिनेश गुप्ता का जन्म 6 दिसंबर 1911 को बंगाल के मुंशीगंज जिले के जोशोलाग गांव में सतीश चंद्र गुप्ता के घर हुआ था। मां का नाम विनोदिनी देवी था। अपने शिक्षा काल में दिनेश गुप्ता सुभाष चंद्र बोस के बंगाल के क्रांतिकारी संगठन से जुड़ गए दिनेश के अंदर देश प्रेम की प्रबल भावना जाग उठी। उसने उन क्रूर अंग्रेजों को दंडित करने का मन बनाया जो क्रांतिकारी कैदियों को यातनाएं देते थे। दिनेश ने हथियारों की ट्रेनिंग ली और जेल के कुख्यात और क्रूर अधिकारी सिंपसन को सजा देने का मन बनाया। वह अपने साथी विनय बसु और बादल गुप्ता के साथ योजना के अनुरूप गोरों की राइटर्स बिल्डिंग में घुसकर सिंपसन को 8 दिसंबर 1930 को मौत के घाट उतार दिया। इससे गौरों में हड़कंप मच गया। वहीं पुलिस ने तीनों को घेर लिया। तीनों ने अपने को खत्म करने की योजना बनाई। बादल ने जहर खाकर अपने को खत्म किया। शेष दोनों ने अपने को गोली मार ली। घायल विनय ने अस्पताल में दम तोड़ा। दिनेश बच गए दिनेश के खिलाफ गौरों का न्याय का नाटक प्रारंभ हुआ। उन्हें 7 जुलाई 193 को फांसी पर लटका दिया गया। एक 20 वर्ष का युवा शहीद हो गया। इनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है। कार्यक्रम में अवधेश कुमार गुप्ता एडवोकेट, राजकुमारसोनी सरार्फ, लल्लन गुप्ता, राधारमण गुप्ता और कल्लू चौरसिया मौजूद रहे।