बैसवारे की माटी का "सुमन"


हिंदी साहित्य के उपवन में शिवमंगल सिंह नाम का यह "सुमन" बीसवीं सदी के शुरुआती वर्ष 1916 में खिला था. रीवा राज्य की सेना में जनरल रहे ठाकुर साहब बख्श सिंह के आंगन में श्रावण मास की पंचमी (नाग पंचमी) पर किलकारी भरने वाले इस सुमन का लालन-पालन सैनिक अनुशासन, कुछ-कुछ राजसी वैभव में हुआ और शिक्षा-दीक्षा ग्वालियर में लेकिन  रगों में वीरता-विद्वता अपने पूर्वजों की पवित्र भूमि "बैसवारा" ( उत्तर प्रदेश  के उन्नाव जनपद) की ही समाई थी. जन्म नाग पंचमी. नाम शिवमंगल और ठिकाना महाकाल की नगरी उज्जैन. उनके स्वभाव में शिव सी फक्कड़ता थी और सरलता-सहजता भी. नौवीं कक्षा में ही अपनी काव्य प्रतिभा का परिचय देने वाले हिंदी के यह सुमन कहते भी थे-" निश्चय ही उन्नाव की धरती के अंतस में कोई न कोई तपस्या अवश्य अंतर्निहित है. उज्जैन भी मुझे इसलिए फल गया कि उन्नाव और उज्जैन की राशि एक है"
वैसे तो हिंदी में सुमन उपनाम वाले ( क्षेमचंद्र सुमन, अंबा प्रसाद सुमन, रामनाथ सुमन आदि) कई कवि हुए लेकिन बैसवारा का यह शिवमंगल 16 वर्ष की उम्र में ही "सुमन" बनकर महकने लगा था. अपने एक पत्र में उन्होंने इस बात का रोचक विवरण इस तरह दिया-" नाम के प्रथमाक्षरों "शि" और "म" में अनुस्वार को पूरा करने पर शिमन और शिमन से सुमन उपनाम 1932 में ग्वालियर के कवि सम्मेलन में  उपहार स्वरूप मिला. सुमन जी को हिंदी में महकने का असली आशीर्वाद गुरुदेव रविंद्र नाथ टैगोर के शांतिनिकेतन में शोध कार्य के लिए आचार्य क्षिति मोहन सेन ने दिया. आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के मार्गदर्शन प्राप्ति हेतु 3 माह के प्रवास के बाद चलते समय सुमन जी ने चरणरज माथे पर लगाई तो आचार्य सेन के मुख से निकला-" सुमन आमी आपनेर जीवनेर सफलता न चाई. आमी आपनेर जीवनेर चरितार्थता चाई" अर्थात मैं आपके जीवन की सफलता नहीं चाहता मैं आपके जीवन की चरितार्थता चाहता हूं. ऐसा आशीर्वाद सुनकर सुमन जी चौक पड़े. तब आचार्य सेन ने अर्थ समझाते हुए कहा-" मेरी मंगल कामना है कि तुमनेेे जो पढ़ा हो, लिखा हो, गुना हो वह तुम्हारे जीवन में चरितार्थ हो, तुम्हारेे बोलचाल व्यवहार शील सभी में ढल जाए".
छायावादी युग के अंतिम प्रतिनिधि कवि  सुमन जी की कविताएं ऐसी कि हर महफिल लूट ले. विद्रोही तेवर सोई आत्मा जगा दे. गांधी की हत्या से व्यथित सुमन जी ने प्रधानमंत्री पंडित नेहरू के जन्मदिवस पर उनकी ही उपस्थिति में अपनी यह कविता पढ़ी-
" स्वतंत्रता को निकल गई यह कैसी कृत्या
तुम सिंहासन पर पथ पर गांधी की हत्या
तुमने ही तो दीन हीन दलितों को निर्भय भाषा दी थी
औरों से उत्तर क्यों मांगू औरों से आशा कब की थी
मेरा वीर जवाहर मुझको वापस कर दो.."
यह कविता सुनने के बाद प्रधानमंत्री पंडित नेहरू ने सुमन जी को अकेले में बुलाया और पूछा-" सुमन क्या तुम्हें सच में लगता है कि मैं बदल गया हूं". यह वही सुमन थे जो पंडित नेहरू के व्यक्तित्व और नीतियों से बेहद प्रभावित थे.
सुमन जी ने कविता के मानदंडों से कभी समझौता नहीं किया चाहे वह किसी कवि सम्मेलन का मंच हो या किसी विश्वविद्यालय की वैचारिक सभा. सरदार पटेल विश्वविद्यालय वल्लभ विद्यानगर गुजरात  कि एक संगोष्ठी में  एक वक्ता  ने  कह दिया- सूरदास  सबसे बड़े कवि हैं" शांत स्वभाव के सुमन जी ने आक्रोश मेंं जवाब दिया-" फतवे देना साहित्यकारोंं का काम नहीं". भारती परिषद उन्नाव के एक कवि सम्मेलन की अध्यक्षता सुमन जी कर रहे थे. एक कवि ने कुछ अश्लील कविताएं पढ़नी शुरू कर दी. सुमन जी तमतमा कर उठे और माइक छीन कर कवि को यह कहते हुए हटा दिया कि जो कविता आप अपनी मां-बहन-बेटी-बहू के सामने नहीं पढ़ सकते उसे कवि सम्मेलन के मंच से पढ़ने का कोई हक नहीं है.
 साहित्य जगत में मान्यता है कि जिस जिस ने सुमन जी से  " राम की शक्ति पूजा" कविता सुनी है  उसने समझो  निराला का "दर्शन" और "श्रवण" कर लिया.  कहा जाता है कि यह कविता पढ़ने के पहले सुमन जी के तन-मन में निराला का तेज और तेवर स्वत: उतर आता था. इसके पाठ के समय सुमन जी कोई भी बाधा स्वीकार नहीं करते फिर चाहे  कुदरत ही क्यों ना हो? 30 वर्ष पहले की बात है. उन्नाव के कवि सम्मेलन में सुबह के 5:00 बज रहे होंगे. श्रोताओं ने सुमन जी से "राम की शक्ति पूजा" कविता सुनाने का आग्रह किया. इधर कविता शुरू हुई उधर बारिश. बारिश अपने में और सुमन जी अपने में. ना बारिश रूकी ना सुमन जी. श्रोता भी डटे रहे. इस हद तक कविता का "धर्म" निभाने वाले थे सुमन जी.
 रीवा राज्य में पैदाइश के बावजूद सुमन जी बैसवारा के गुणागुण से लबालब थे. कलम तो पैनी थी ही अपने छात्र जीवन में क्रांति दूत रहे सुमन जी ने उन्नाव की ही माटी के अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद के दल के सदस्यों को अल्लाह कारतूस पहुंचाने का काम भी खतरे उठाकर किया. देश-विदेश में हिंदी का परचम फहराने वाले  सुमन जी अक्सर कहा भी करते थे- "बैसवारे की मिट्टी का प्रताप ही कुछ ऐसा है  मैं तो निमित्त मात्र हूं". अपनी कविताओं में सुमन जी ने भले ही बैसवारी भाषा के शब्दों का प्रयोग ना किया हो लेकिन निजी पत्राचार में वह बैसवारी में प्रचलित शब्दों का भरपूर इस्तेमाल करते रहे खासकर उस इलाके के खास-ओ-आम के साथ. सुमन जी और बैसवारा के ही सपूत रामविलास शर्मा के बीच अधिकांश पत्रों का आदान-प्रदान बैसवारी भाषा में इसके प्रमाण है. यह पत्र बैसवारी भाषा और अपने पूर्वजोंं की माटी से प्रेम प्रदर्शित करने को पर्याप्त हैं. अपनी माटी से प्रेम करने वाले सुमन जी ने ही "मिट्टी की महिमा" इस तरह गाई कि वह उनका अमर गान हो गई-
" निर्मम कुम्हार की थापी से
कितने रूपों में कुटी पिटी
हर बार भी बिखेरी गई
किंतु मिट्टी फिर भी तो नहीं मिटी
×       ×        ×       ×        ×
मिट्टी की महिमा मिटने में
मिट मिट हर बार सवरती है
मिट्टी मिट्टी पर मिटती है
मिट्टी मिट्टी को रचती है
×     ×       ×        ×
कवि मिट जाता लेकिन उसका उच्छवास अमर हो जाता है,
मिट्टी गल जाती पर उसका विश्वास अमर हो जाता है!
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बैसवारे ( रायबरेली-उन्नाव जनपदों का एक विशेष भूभाग) के सपूत डॉ शिवमंगल सिंह सुमन को 104 वी जयंती (नाग पंचमी 25 जुलाई 2020)  पर शत-शत नमन!


◇ गौरव अवस्थी


आज के राष्ट्रीय सहारा में डॉ शिवमंगल सिंह सुमन की जयंती पर प्रकाशित भाव लेख.


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