प्रज्ञा के प्रतीक स्वामी विवेकानंद की पुण्यतिथि पर श्रद्धा सुमन अर्पित


हमीरपुर 4 जुलाई। लॉकडाउन- 2  सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए वर्णिका संस्था के तत्वावधान में विमर्श विविधा अंतर्गत जिनका देश ऋणी है के तहत प्रभावी प्रेरणा और प्रज्ञा के प्रतीक स्वामी विवेकानंद की पुण्यतिथि 4 जुलाई पर उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित किए गए। संस्था के अध्यक्ष डॉक्टर भवानीदीन ने कहा की स्वामी विवेकानंद भारतीय पुनर्जागरण के पुरोधा थे। वह एक सन्यासी योद्धा थे। 12 जनवरी 1863 को बंगाल के प्रतिष्ठित कायस्थ परिवार में विश्वनाथ दत्त के घर जन्म हुआ था। मां का नाम भुनेश्वरी देवी था।जो धार्मिक विचारों की थी। इनका नाम वीरेश्वर रखा गया।साथ ही इनके बचपन का नाम नरेंद्र नाथ दत्त था। यह पढ़ने में बहुत मेधावी रहे। आध्यात्मिकता इनके जीवन में प्रारंभ में ही प्रवेश कर गई थी। यह बचपन में ही ध्यानस्थ हो जाते थे। परिव्राजक सन्यासियों के लिए नरेंद्र के मन में बहुत आदर रहता था। इन्हें बचपन में ही रामायण महाभारत के लंबे उद्धरण और मुग्धबोध नामक संस्कृत व्याकरण कंठस्थ हो गई थी। इनके बचपन में ही सामाजिकता भाषण पटुता और मधुर गायन एवं सत्यवादिता घर कर गई थी। जे एस मिल और स्पेंसर जैसे विचारकों के विचारों से प्रभावित होकर यह अनीश्वरवादी हो गए थे। यह तार्किक पहले से थे। साथियों के साथ जब यह श्री रामकृष्ण परमहंस से मिले तो इनके दिमाग में था क्या परमहंस को ईश्वर के दर्शन हुए हैं। परमहंस ने जब नरेंद्र को स्पर्श किया तो नरेंद्र को एक अलग प्रकार की अनुभूति हुई। कालांतर में नरेंद्र की ना केवल परमहंस के प्रति अगाध श्रद्धा हो गई अपितु सारी आशंकाएं दूर हो गई। यह बहुचर्चित परिव्राजक बन गए। 16 अगस्त 1886 को इनके गुरु परमहंस ने समाधि ले ली। परमहंस मठ का गठन हो चुका था। इन पर शिष्यों तथा मठ की पूरी जिम्मेदारी आ गई।.स्वामी जी ने बनारस और हाथरस सहित भारत के अनेक शहरों का परिभ्रमण किया। 1891 में
ये एकाकी हो गए। इन्होंने हाथरस के स्टेशन मास्टर शरद चंद्र गुप्त को अपना शिष्य बना लिया जो आगे चलकर सदानंद के नाम से जाने गए। 1892 में ये कन्याकुमारी गए। जहां पर विश्व धर्म सम्मेलन में स्वामी जी के जाने की योजना बनी। 1893 में खेतड़ी महाराज के कहने पर इन्होंने अपना नाम स्वामी विवेकानंद रख लिया। अनेक कठिनाइयों के बावजूद यह विश्व धर्म सम्मेलन में पहुंचे और 11 सितंबर 1893 को विश्व इतिहास रचते हुए भारत का परचम फहराते हुए विश्व में छा गए। कई देशों की यात्राएं की। कई शिष्य बनाए। जिनमें से भगिनी निवेदिता भी रही। इस तरह से इनका देश के लिए अमिट योगदान रहा। यह युवाओं के रोल मॉडल रहे। इनके बहुआयामी योगदान को भुलाया नहीं जा सकता। कालांतर में इनका 4 जुलाई 1902.को निधन हो गया। कार्यक्रम में संदीप सिंह, राजकुमार सोनी सर्राफ, अशोक अवस्थी, कल्लू चौरसिया, लल्लन गुप्ता मौजूद रहे।


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